नयी दिल्ली, 20 अप्रैल उच्च न्यायालयों में करीब 57 लाख लंबित मामलों का जिक्र करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की दो से तीन साल की अवधि के लिए अस्थायी न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति का रास्ता साफ करने के लिए एक ‘निष्क्रिय’ संवैधानिक प्रावधान को लागू किया ताकि लंबित मामलों की संख्या घटे।
न्यायालय ने यह भी कहा कि पूर्व न्यायाधीशों की अस्थायी जजों के तौर पर नियुक्ति नियमित न्यायाधीशों की जगह पर नहीं की जाएगी।
दुर्लभ स्थिति में ही इस्तेमाल होने वाले संविधान के अनुच्छेद 224ए में उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान है। इसमें कहा गया है, ‘‘किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश किसी समय राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के साथ उस न्यायालय या अन्य किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर रहे किसी व्यक्ति से राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर कार्य करने के लिए अनुरोध कर सकते हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इन मुद्दों से संबंधित दिशानिर्देश जारी किये। इन मुद्दों में कार्यकाल, नियुक्ति की प्रक्रिया, वेतन, ऐसे न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या और उनकी भूमिका आदि शामिल है।
प्रधान न्यायाधीश ने एनजीओ ‘लोक प्रहरी’ की जनहित याचिका पर 37 पन्नों का फैसला लिखा। जनहित याचिका में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए अनुच्छेद 224ए के तहत उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अनुरोध किया गया है।
पीठ ने विधि एवं न्याय मंत्रालय से इस बारे में एक रिपोर्ट मांगी है कि नियुक्तियों पर किस तरह प्रगति हुई है।
पीठ ने फैसले में कहा, ‘‘हालांकि हम यह भी जोड़ना चाहते हैं कि उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के नियमित पदों के बजाय अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोई उद्देश्य नहीं है (जैसी कि उच्चतम न्यायालय बार संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने आशंका जताई थी)।’’
सिंह ने सुनवाई के दौरान चिंता जताते हुए कहा था कि अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति नियमित न्यायाधीशों के खर्च पर की जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने याचिका पर चार महीने बाद विचार करने का फैसला किया।
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