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बीजिंग, 10 जून चीन की संसद ने बृहस्पतिवार को विदेशी प्रतिबंध विरोधी कानून पारित किया जिसके तहत चीनी अधिकारियों और संस्थाओं के खिलाफ विदेशी प्रतिबंधों को रोकने के लिए व्यापक कानूनी सुरक्षा प्रदान की जा सकेगी।
चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति ने यह कानून पारित किया।
हांगकांग में चीन का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किए जाने और शिनजियांग क्षेत्र में मुस्लिम उइगरों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर कई चीनी संस्थाओं और अधिकारियों के खिलाफ अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की पृष्ठभूमि में यह कानून पारित किया गया है।
यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा द्वारा समन्वित प्रयास के रूप में प्रतिबंध शुरू किए गए थे। इसके जवाब में चीन ने यूरोपीय अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया।
हांगकांग के समाचार पत्र साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की खबर के अनुसार नए कानून में पारदर्शिता की कमी और चीन में व्यवसायों पर संभावित प्रभाव को लेकर विदेशी कंपनियों में चिंता पैदा हो गयी है और विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी कंपनियों को सावधान रहने की आवश्यकता होगी।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कानून का बचाव करते हुए बृहस्पतिवार को मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि चीन की राष्ट्रीय संप्रभुता, गरिमा और प्रमुख हितों की रक्षा करने तथा पश्चिमी आधिपत्य और सत्ता की राजनीति का विरोध करने के लिए चीनी सरकार ने कुछ देशों के संबंधित लोगों और संस्थाओं के खिलाफ जवाबी कदमों की घोषणा की है।
उन्होंने इस बात से इनकार किया कि यह कानून अन्य देशों के साथ चीन के संबंधों को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि विदेशी प्रतिबंधों का मुकाबला करने के लिए देश में विशिष्ट कानून होना आवश्यक है ताकि जवाबी उपाय के लिए हमारे पास कानूनी आधार और गारंटी हो।"
चीन के कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी प्रतिबंध विरोधी कानून चीन में अपनी तरह का पहला कानून है और इससे विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए एकतरफा और भेदभावपूर्ण कदमों के खिलाफ देश को मजबूत कानूनी समर्थन और गारंटी मिलेगी।
अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों का हवाला देते हुए हुवेई और जेडटीई सहित कई चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा रही है। इसके अलावा अमेरिका ने पिछले साल कई वरिष्ठ चीनी अधिकारियों पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे।
चीन ने अभी तक कानून का ब्यौरा नहीं दिया है, लेकिन उसके इस कदम को संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि वह अमेरिका के साथ आगे टकराव में पीछे नहीं हटेगा।
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