नई दिल्ली: चीन ने भारत और नेपाल के बीच में दूरी पैदा करने के लिए एक और बड़ा चाल चला है, इसी कड़ी में चीन ने नेपाल को लुभाने का काम शुरू कर दिया है. जो भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है. नेपाल का भारत पर से निर्भरता कम करने के प्रयासों में चीन ने शुक्रवार को नेपाल को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है. अभी नेपाल आवश्यक वस्तुओं और ईंधन के लिए काफी हद तक भारत पर निर्भर है. दूसरे देशों से व्यापार करने के लिए नेपाल भारत के बंदरगाहों का भी इस्तेमाल करता है.
ऐसे में माना जा रहा है कि यह चीन का यह दांव अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य के लिए जमीन से घिरे नेपाल की भारत पर व्यापारिक निर्भरता कम करने की कोशिशों के मद्देनजर है. चीन के इस दांव से स्पष्ट है कि नेपाल का झुकाव चीन की ओर और बढ़ जाएगा. यह भी पढ़े-चीन की ओर से आयी इस मुसीबत में देवदूत बनकर आयी भारतीय सेना
वही व्यापारिक गतिविधियों को लेकर नेपाल जिस तरह से चीन के करीब जा रहा है, उससे भारत से उसके रिश्तों में खटास आने की आशंका जाहिर की जा रही है.
विदेशी मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, नेपाल चीन के शेन्ज़ेन, लिआनयुंगांग, झांजियांग और टियांजिन तक पहुंचने में सक्षम हो जाएगा. इनमें से तियानजिन बंदरगाह नेपाल की सीमा से सबसे नजदीक बंदरगाह है, जो करीब 3,000 किमी की दूरी पर स्थित है. ठीक इसी तरह से चीन ने नेपाल को लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टों (ड्राई पोर्ट्स) के इस्तेमाल करने की भी अनुमति दे दी. यह भी पढ़े- चीन ने कहा भारत बेल्ट एंड रोड में स्वाभाविक साझेदार, कश्मीर को लेकर कही बड़ी बात
बहरहाल, नेपाल ने ईंधन की आपूर्ति को पूरा करने के लिए भारत पर अपनी निर्भरता कम करने के लिहाज से चीन से उसके बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत मांगी है.
गौरतलब है कि 2015 और 2016 में भारत ने कई महीनों तक नेपाल को तेल की आपूर्ति रोक दी थी. इसकी वजह से इस पहाड़ी देश के साथ भारत के रिश्तों में खटास आ गई थी.