यूरोप की प्रमुख नदियों में खतरनाक स्तर पर पहुंचा माइक्रोप्लास्टिक
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूरोप की ज्यादातर प्रमुख नदियों में माइक्रोप्लास्टिक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. वैज्ञानिकों ने जिन नदियों की पड़ताल की है, उन सबका यही हाल है.टेम्स से लेकर टीबर तक पूरे यूरोप की नदियां माइक्रोप्लास्टिक से भरी हैं. यूरोपीय नदियों में माइक्रोप्लास्टिक के बारे में 14 रिसर्च रिपोर्टें एक साथ सोमवार, 7 अप्रैल को प्रकाशित हुईं. फ्रेंच वैज्ञानिक जां फ्रांसोआ गिलियो ने 9 प्रमुख नदियों में बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययन का नेतृत्व किया है. गिलियोने का कहना है, "वो सारी नदियां प्रदूषित हैं" जिन पर अध्ययन किया गया. "सारी नदियों के प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 3 माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं," जो चिंताजनक है. 'एनवायरनमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च' जर्नल ने यह रिपोर्ट छापी है.

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नदियों के पानी में माइक्रोप्लास्टिक

हालांकि यह दुनिया की 10 सबसे अधिक प्रदूषित नदियों के माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण से काफी कम है. सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 40 माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं. इन नदियों में येलो रिवर, यांग्त्जे, मेकोंग, गंगा, नील, नाइजर, सिंधु, अमूरत पर्ल और हाइ हैं. ये नदियां उन देशों को सींचती हैं जहां सबसे ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन या फिर प्लास्टिक कचरे की प्रोसेसिंग होती है.

इसमें नदियों के बहते पानी में मौजूद प्लास्टिक को नहीं जोड़ा गया है. फ्रांस के वैलेंस में रोन नदी के तेज बहाव में प्रति सेकेंड 3,000 प्लास्टिक के कण होते हैं. इसी तरह पेरिस में बहने वाली सेन के पानी में भी 900 माइक्रोप्लास्टिक प्रति सेकेंड मौजूद रहते हैं.

गिलियोने का कहना है, "माइक्रोप्लास्टिक की विशाल मात्रा जो नंगी आंखों से नहीं दिखाई देती वह दिखाई देने वाले प्लास्टिक से कहीं ज्यादा अहम है." गिलियोने फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (सीएनआरएस) के मरीन माइक्रोबायल इकोटॉक्सिकोलॉजी के रिसर्च प्रमुख भी हैं. उनका कहना है कि रिसर्च के नतीजों ने रिसर्चरों को भी हैरान कर दिया है. यह रिसर्च 2019 में शुरू हुई थी.

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गिलियोने ने बताया "बड़े माइक्रोप्लास्टिक सतह पर बहते हैं, जबकि दिखाई नहीं देने वाले माइक्रोप्लास्टिक पूरे पानी में बिखरे रहते हैं और कई जानवरों और जीवों के पीने के दौरान उनके पेट में चले जाते हैं."

पानी के नमूने सबसे पहले एल्बे, एब्रो, गारोन, लोइर, रोन, राइन, सेन, टेम्स और टीबर नदियों के मुहाने से जमा किए गए. रिसर्च टीम में 19 प्रयोगशालाओं के रसायनशास्त्री, जीवविज्ञानी और भौतिकविज्ञानी शामिल थे. इसके बाद रिसर्चर नदी की धाराओं के पहले प्रमुख शहर में पहुंचने वाली जगह पर गए.

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टुलूस के सीएनआरएस की रसायनशास्त्री अलेक्जैंड्रा टेर हाले ने भी नदियों के पानी के विश्लेषण में हिस्सा लिया है. उनका कहना है, "माइक्रोप्लास्टिक चावल के दाने से छोटे हैं." इन कणों का आकार पांच मिलीमीटर से छोटा है. जो सबसे छोटे कण हैं वे नंगी आंख से दिखाई नहीं देते. इनमें सिंथेटिक कपड़ों के रेशे हैं जो कपड़े धोने के दौरान निकलते हैं. इनके अलावा कार टायरों से निकलने वाले और प्लास्टिक बोतल के ढक्कन को खोलने के दौरान टूट कर अलग होने वाले प्लास्टिक के टुकड़े भी शामिल हैं. रिसर्चरों को प्लास्टिक के पैलेट भी मिले हैं. ये कच्चे कण प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होते हैं.

एक रिसर्च में माइक्रोप्लास्टिक पर ऐसे बैक्टीरिया भी मिले जो इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं. यह नमूना फ्रांस की लोइर नदी का था. रिसर्चरों को इस बात से भी हैरानी हुई कि करीब एक चौथाई माइक्रोप्लास्टिक कचरे से नहीं बल्कि इंडस्ट्रियल प्लास्टिक पैलेट के थे. ये पैलेट कई बार समुद्री दुर्घटनाओं के बाद समुद्र तटों पर भी मिले हैं.

एनआर/आरपी (एएफपी)