World Tribal Day 2020: कब और क्यों मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस? क्यों आज भी मुख्य धारा से दूर हैं ये? जानें भारत में आदिवासियों की स्थिति!
आदिवासी (Photo Credits: Wikimedia commons)

'आदिवासी' शब्द मूलत: 'आदि' और 'वासी' शब्दों से मिलकर बना है, यानी स्थान विशेष का मूल निवासी. सामान्यत: 'आदिवासी' (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है, जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से सबसे पुराना ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा हो. आदिवासी समाज के लोग प्रायः अपने धार्मिक स्‍थलों, खेतों, घरों आदि जगहों पर एक विशिष्‍ट प्रकार का पताका लगाते हैं, जो अन्‍य धमों क पताकाओं से अलग होते हैं. इन पर सूरज, चांद, तारे, वृक्ष इत्यादि कोई भी निशान हो सकते हैं, जिसका संबंध प्रकृति से होता है. दरअसल आदिवासी प्रकृति पूजक होते है. वे प्रकृति से जुड़ी हर चीजों जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी की पूजा करते है. उनके अनुसार प्रकृति प्रदत्त हर वस्‍तु में जीवन होता है. आम समाज से अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति और प्रशासन की निष्क्रियता के कारण इनका मूल विकास नहीं हो सका. जिसका कुपरिणाम यह हुआ कि इनके कई समूह या तो विलुप्त हो चुके हैं अथवा विलुप्त होने की कगार पर हैं. लिहाजा आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा दिसंबर 1994 से विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत की गई. यहां हम विश्व आदिवासी दिवस मनाने के उद्देश्यों और उनकी समस्याओं आदि पर बात करेंगे.

21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO)ने महसूस किया कि आदिवासी समाज उपेक्षा, बेरोजगारी एवं बंधुआ बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रस्त है. उनकी इन समस्याओं को सुलझाने, आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए United Nations Working Group on Indigenous Peoples का गठन किया गया, जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी. उसके बाद से (UNO) ने अपने सदस्य देशों के साथ प्रतिवर्ष 9 अगस्त को 'विश्व आदिवासी दिवस' मनाने की घोषणा की. साल 2004 में, असेंबली ने 'ए डिसैड फ़ॉर एक्शन एंड डिग्निटी' की थीम के साथ, 2005-2015 से एक दूसरे अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दशक की घोषणा की.

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उद्देश्य और कारण:

आदिवासी समूहों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के संदेशों को फैलाने के लिए विभिन्न देशों के लोगों को इस दिवस विशेष पर होनेवाले आयोजनों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इस दिवस विशेष के आयोजन की एक वजह यह भी है कि आम समाज उनकी तमाम उपलब्धियों, योगदानों के साथ-साथ यह भी स्वीकारती है कि आदिवासी समुदाय पर्यावरण संरक्षण जैसे विश्व के मूल मुद्दों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा से प्रयासरत रहे हैं, जिसका लाभ पूरे विश्व को प्राप्त होता है.

भारत में आदिवासी:

भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का है. देश के प्रमुख आदिवासी समुदायों में जाट, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, संथाल, मीणा, उरांव, परधान, बिरहोर, पारधी, आंध,टोकरे कोली, महादेव कोली,मल्हार कोली, टाकणकार आदि शामिल हैं. देश में आदिवासियों के चार मुख्य वर्ग देखने को मिलते हैं. पहले वर्ग में पर-संस्कृति प्रभावहीन समूह, दूसरे में पर संस्कृतियों द्वारा अल्पप्रभावित समूह, तीसरे में पर संस्कृति द्वारा प्रभावित किंतु स्वतंत्र सांस्कृतिक अस्तित्ववाले समूह और चौथे वर्ग में पर संस्कृतियों को इस हद तक स्वीकृत कर लिया गया है कि अब वे नाममात्र के आदिवासी कहे जाते हैं. प्राचीनकाल में आदिवासियों ने भारतीय परंपरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया था. उनके रीति-रिवाज एवं संस्कृति में थोड़े बहुत परिवर्तित स्वरूप आज के हिंदू समाज में देखे जा सकते हैं, लिहाजा वे काफी पहले ही भारतीय समाज और संस्कृति के विकास की प्रमुख धारा से अलग-थलग हो गए थे. आदिवासी समूह हिंदू समाज से न केवल अनेक महत्वपूर्ण पक्षों में भिन्न है, बल्कि उनके इन समूहों में तमाम महत्वपूर्ण अंतर हैं. संतोष इस बात का है कि समसामयिक आर्थिक शक्तियों तथा सामाजिक प्रभावों के कारण वर्तमान में आदिवासी समूह और आम भारतीय समाज के बीच की दूरियां क्रमश: कम हो रही है.

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आदिवासियों की मुख्य समस्याएं:

आदिवासियों की मुख्य समस्या है, कुपोषण एवं इससे उत्पन्न बीमारियां, संक्रामक रोग, गर्भवती महिलाओं के इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने से माँ एवं शिशु की मृत्यु दरों में निरंतर वृद्धि, गरीबी, कर्ज, बंधुवा मजदूरी, अज्ञानता, बाल मजदूरी, बेरोजगारी, अशिक्षा इत्यादि. साल 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों में 41 प्रतिशत लोग अशिक्षित हैं. इनके सामाजिक उत्थान में एक और अहम कारण है शराब और अन्य ड्रगों की लत. जिसकी वजह से ये कर्जदार होने के साथ-साथ हिंसक होकर लूटपाट जैसे कृत्यों में लिप्त रहते हैं. जानकारों के अनुसार अंग्रेज शासित भारत में एक समान राजनीतिक व्यवस्था लागू की गई थी, जिससे इनके परंपरागत अधिकार छिन लिये गये और वही परंपरा आज भी जारी है. कभी विकास की गतिविधियों के कारण तो कभी संपर्क में नहीं रहने की प्रवृत्तियों के कारण भी आदिवासियों समस्याओं का उन्मूलन नहीं हो सका. इस तरह कहा जा सकता है कि विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर भारत सरकार और आम समाज को आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए काफी प्रयास करने होंगे.