
चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन कब्रिस्तान से पुरातत्वविदों को एक अनोखी खोज मिली है. तुर्पान सिटी, झिंजियांग में स्थित इस कब्र से एक महिला का कंकाल मिला है, जिसके दांतों को विशेष रूप से सिनाबार (Cinnabar) नामक जहरीले लाल खनिज से रंगा गया था. यह कब्र लगभग 2,200 से 2,050 साल पुरानी मानी जा रही है और इसे गूशी जनजाति से संबंधित बताया जा रहा है, जो अपनी घुड़सवारी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध थी. यह खोज विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि प्राचीन समाजों में दांतों को सिनाबार से रंगने की कोई अन्य मिसाल अब तक दर्ज नहीं की गई है.
सिनाबार लगे दांतों की पहली ज्ञात घटना
'आर्कियोलॉजिकल एंड एंथ्रोपोलॉजिकल साइंसेज' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यह पहली बार है जब किसी मानव के दांतों पर सिनाबार का उपयोग पाया गया है. टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ डेंटिस्ट्री के प्रोफेसर कियान वांग के अनुसार, अब तक दुनिया के किसी अन्य प्राचीन दफन स्थल में इस तरह का कोई प्रमाण नहीं मिला था. वैज्ञानिकों ने दांतों पर पाए गए लाल रंग के इस पदार्थ का विश्लेषण स्पेक्ट्रोस्कोपी विधियों से किया, जिससे पता चला कि यह सिनाबार है और इसे संभवतः अंडे की जर्दी या सफेदी के साथ मिलाकर दांतों पर लगाया गया था.
संभावित सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
हालांकि, इस लाल रंग का उपयोग किस उद्देश्य से किया गया था, यह अब भी रहस्य बना हुआ है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह सौंदर्य प्रसाधन, सामाजिक प्रतिष्ठा या फिर किसी शमन (Shamanic) अनुष्ठान से जुड़ा हो सकता है. झिंजियांग क्षेत्र की अन्य कब्रों में चेहरे पर रंग और शरीर पर टैटू जैसे प्रमाण मिले हैं, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि उस समय शरीर सजाने की कोई परंपरा रही होगी.
दिलचस्प बात यह है कि झिंजियांग क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से सिनाबार नहीं पाया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि इसे कहीं और से आयात किया गया होगा. संभवतः यह खनिज पश्चिम एशिया, यूरोप या चीन के अन्य भागों से लाया गया होगा.
स्वास्थ्य पर प्रभाव और संभावित खतरे
कोलिन कॉलेज के भूविज्ञान विशेषज्ञ प्रोफेसर ली सन के अनुसार, सिनाबार का उपयोग स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसमें पारा (Mercury) होता है, जो तंत्रिका तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, महिला के कंकाल की जांच में पारा विषाक्तता के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं, जिससे यह पता नहीं चल सका कि वह इस जहरीले तत्व के प्रभाव में कितने समय तक रही होगी.
यह खोज प्राचीन चीनी समाज की अज्ञात परंपराओं और उनके सांस्कृतिक रीति-रिवाजों पर नई रोशनी डालती है. यह स्पष्ट है कि गूशी जनजाति न केवल व्यापार और घुड़सवारी में माहिर थी, बल्कि उनके सौंदर्य और अनुष्ठानिक रीति-रिवाज भी जटिल और रहस्यमयी थे.