एक कहावत बहुत मशहूर है कि शेर का साथी भी शेर से कम बहादुर नहीं होता है, और यह कहावत क्षत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के महाबलशाली सेनापति ताना जी मालुसरे (Tanaji Malusare) पर शत-प्रतिशत सही बैठती है. तानाजी मालुसरे का नाम भारत के मराठा साम्राज्य के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. वह एक महान योद्धा थे और 'सिंह' (शेर) के नाम से मशहूर थे. आइए जानें कि इस महान योद्धा ने कैसे सिंहगढ़ की पौराणिक लड़ाई लड़ते हुए अपनी जान की बाजी लगाकर जीजा मां की सौगंध को पूरा किया, और इतिहास में अमर हो गये. आइये जानें क्या था जीजा मां की सौगंध और कैसे पूरा किया सिंह जैसा वीर और शौर्य के प्रतीक ताना जी ने, जिनका आज पूरा देश 351वीं पुण्य-तिथि.मना रहा है.
ऐसा था तानाजी का बचपन
तानाजी का जन्म 1626 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक छोटे से गांव गोदोली में हुआ था. शिवाजी के बचपन के मित्र होने के नाते वे अकसर उनके साथ ही तलवारबाजी सीखते थे. तलवारबाजी में पारंगत होने तथा अपनी कर्तव्यनिष्ठा के कारण उन्हें काफी कम उम्र में मराठा साम्राज्य में मुख्य सुबेदार की नियुक्ति मिल गयी. उन्होंने शिवाजी के साथ बहुत सी लड़ाइयां लड़ी और विजयी रहे, लेकिन एक लड़ाई ऐसी थी, जिसके कारण शूरवीरता में उन्हें शिवाजी के समकक्ष तक माना जाता है. आज उसी युद्ध की चर्चा यहां करेंगे. यह भी पढ़े: Tanaji Malusare Death Anniversary 2021: वीर मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे की पुण्यतिथि पर इन HD Images, Quotes, WhatsApp Stickers, Messages के जरिए करें उन्हें याद
कोंडाणा किले (सिंहगढ़) का वह अविस्मरणीय युद्ध
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार वर्ष 1665 में पुरंदर के समझौते के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज को कोंडाढ़ा का किला मुगलों को सौंपना पड़ा था. कहा जाता है कि औरंगजेब ने छल से शिवाजी महाराज के साथ ताना जी को भी कैद कर लिया था. मगर दोनों योद्धाओं ने युक्ति निकाल कर मिठाई के टोकरों में छिप कर औरंगजेब की कैद से आजाद हो गये. इसके बाद शिवाजी महाराज ने एक एक कर अपने किलों पर कब्जा करना शुरु कर दिया. लेकिन काफी प्रयासों के बावजूद वे कोंडाणा जिले पर कब्जा नहीं कर सके थे. इस किले को फतह करना मराठों ने अपनी नाक का सवाल बना लिया था, और इसकी वजह थी, शिवाजी की मां जीजामाता की वह सौगंध, जिसमें उन्होंने सौगंध खाई थी, कि जब तक कोंडाणा का किला हम नहीं जीत लेंगे, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे. शिवाजी भी जानते थे कि इस किले पर पुनः कब्जा करना इतना आसान नहीं था. कहा जाता है कि तानाजी उन दिनों अपने पुत्र के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे, लेकिन जब पत्र द्वारा उन्हें जीजा मां की शपथ की बात पता चली, तो वह बिना वक्त गंवाएं घोड़े पर सवार होकर शिवाजी के पास पहुंच गये. वे किसी भी कीमत पर जीजा मां को कोंडाणा जिला सौगात के रूप में देकर उनकी कसम खत्म करवाना चाहते थे. शिवाजी ने उन्हें आगाह किया था कि इस समय कोंडाणा किले के आसपास पहुंच पाना बहुत मुश्किल है, किले को जीतना तो असंभव ही है.क्योंकि वह किला मुगलों की भी नाक की बात बन चुकी थी, फिर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी मुगलों ने उदयभानु राठौड़ के हाथों सिपुर्द कर रखी थी, जो मुगल सेना का नेतृत्व कर रहा था. बताया जाता है कि इस किले की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर लगभग पांच हजार मुगल और राजपूत सेनाएं चौकसी कर रही थीं, और यह किला इतनी ऊंचाई पर था कि किले में पहरा दे रहे सिपाही सैकड़ों किमी दूर की हर गतिविधियों को आसानी से देख सकते थे.
तानाजी सारी दुर्गम बातों को भुलाकर अपने तीन हजार सैनिकों के साथ किला जीतने के लिए निकल पड़े. किले के करीब पहुंचकर ताना जी ने ऊंचाई पर स्थित किले पर चढ़ने के लिए घोरपड़ नामक सरीसर्प की मदद ली. इन जीवों की खास बात यह थी कि ये किसी भी किस्म के पहाड़ियों पर चढ़ने में कुशल होते थे. कहा जाता है कि इन जीवों की मदद से ताना जी और उनके सैनिकों ने बड़ी खामोशी से पहाड़ी के शिखर पर स्थित किले में घुस गये. ताना जी चुपचाप किले के भीतर जाकर मुख्य द्वार को खोल दिया. अपने तीन हजार सेना के साथ तानाजी मुगल सैनिकों पर टूट पड़े, और देखते ही देखते किले पर कब्जा कर लिया. लेकिन इस महान युद्ध में लड़ते हुए ताना जी की मृत्यु हो गयी. शिवा जी ने कोंडाणा का किला अपनी मां को सिपुर्द कर दिया. लेकिन जब जीजा मां ने पूछा कि मेरा शेर ताना जी कहां है? शिवाजी के मुख से बस यही निकला कि गढ़ तो मिल गया मगर हमने सिंह को खो दिया. मराठों की यह पहली जीत थी, जिसका जश्न नहीं मनाया गया. शिवाजी और मां जीजा मां की आंखों में आंसू थे उस जीत की रात.