Tanaji Malusare Punyatithi 2024 Marathi Messages: हर साल 4 फरवरी को वीर मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे की पुण्यतिथि (Tanaji Malusare Death Anniversary) मनाई जाती है. मराठा साम्राज्य के महान राजा और वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के बचपन के दोस्त तानाजी मालुसरे ने सन 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनका निधन 4 फरवरी 1670 को हुआ था. दरअसल, अपने बचपन के दोस्त छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर ही उन्होंने मुगलों के खिलाफ सिंहगढ़ का युद्ध लड़ा था और इस युद्ध में उन्होंने इस किले पर विजय भी प्राप्त की, लेकिन इस विजय के लिए उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा. बताया जाता है कि सिंहगढ़ का किला रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता था. यही वजह है कि मुगल इस किले पर फतह पाना चाहते थे, लेकिन तानाजी के कारण वो इसमें सफल नहीं हो सके.
तानाजी मालुसरे का नाम महाराष्ट्र के इतिहास में बड़े गर्व से लिया जाता है, जिन्होंने अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हुए सिंहगढ़ के किले पर विजय पाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. 4 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि पर तानाजी मालुसरे के बलिदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. ऐसे में आप भी इन मराठी मैसेजेस, कोट्स, वॉट्सऐप स्टिकर्स, एचडी इमेजेस के जरिए उन्हें याद कर सकते हैं.
1- नरवीर सुभेदार तानाजी मालुसरे
यांच्या बलिदान दिनानिमित्त
त्यांच्या पावन स्मृतीस विनम्र अभिवादन...
2- छत्रपती शिवाजी महाराजांचे विश्वासू
व स्वराज्याचे शिलेदार सुभेदार
नरवीर तानाजी मालुसरे
यांच्या बलिदान दिनानिमित्त
विनम्र अभिवादन व मानाचा मुजरा!
3- 'गड आला पण सिंह गेला'
स्वराज्यासाठी स्वतःच्या जीवाची पर्वा न करणाऱ्या
नरवीर तानाजी मालुसरे यांना
पुण्यतिथी निमित्त विनम्र अभिवादन!
4- आपल्या बलिदानाने स्वराज्याचा
पाया भक्कम करणाऱ्या, शूरवीर,
नरवीर तानाजी मालुसरे यांना
पुण्यतिथीनिमित्त कृतज्ञतापूर्वक अभिवादन!
5- नरवीर तानाजी मालुसरे यांना
पुण्यतिथी निमित्त विनम्र अभिवादन!
6- नरवीर तानाजी मालुसरे यांना
पुण्यतिथी निमित्त त्रिवार अभिवादन!
सिंहगढ़ की लड़ाई में मुगलों को धूल चटाने वाले तानाजी मालुसरे का जन्म सन 1626 में महाराष्ट्र के सातारा जिले के गोडोली में हुआ था. बचपन में वो शिवाजी महाराज के साथ खेला करते थे. शिवाजी महाराज का मान रखने के लिए उन्होंने अपने बेटे रायबा की शादी जैसे महत्वपूर्ण दायित्व को छोड़कर कोंढाणा किले को जीतना ज्यादा जरूरी समझा. सिंहगढ़ के किले पर विजय पाने और तानाजी के बलिदान की खबर सुनने के बाद शिवाजी महाराज ने कहा था कि उन्होंने किला तो उनके पास आ गया, लेकिन उनका शेर चला गया.