National Nutrition Week 2020: भारत में हर साल 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) मनाया जाता है. नेशनल न्यूट्रीशन वीक के पहले दिन विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों (Public Health Experts) ने कहा कि बच्चों और महिलाओं में पोषक तत्वों की कमी पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा 1982 में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुआत मानव शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से की गई थी.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के अनुसार, भारत में हर चार वयस्कों में से एक और स्कूल जाने वाले पांच बच्चों में एक का वजन अधिक है, जबकि लगभग एक तिहाई बीमारियों को उचित आहार से नियंत्रित किया जा सकता है. साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 190.7 मिलियन लोग कुपोषित हैं और भारत में पांच साल से कम उम्र के करीब 38.4 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.
नई दिल्ली में एकीकृत स्वास्थ्य और कल्याण (आईएचडब्ल्यू) परिषद के सीईओ कमल नारायण ओमर (Kamal Narayan Omer) के अनुसार, करीब 45 साल पहले एकीकृत बाल विकास सेवाओं की तरह विशेष रूप से बच्चों पर केंद्रित पोषण-उन्मुख विकास कार्यक्रमों की शुरुआत के बावजूद भारत में अभी भी बच्चे कुपोषण और शरीर में पोषक तत्वों की कमी जैसी कई अन्य समस्याओं से पीड़ित हैं. वहीं दूसरी तरफ संपन्न परिवारों में बच्चे कार्बोनेटेड पेय और रिफाइंड आहार का सेवन करने के कारण मोटोपे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं.
ओमर ने कहा कि सही खान-पान और सही तरह का भोजन करना वयस्कों में गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases) के खतरे को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. हमें उन खाद्य पदार्थों के सही विकल्प खोजने के लिए काम करना चाहिए जो हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग में इस पोषण असंतुलन का कारण बन रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत नॉन-न्यूट्रीशियस, नॉन-बैलेंस्ड, ओवर-न्यूट्रीशियनस माइक्रो-न्यूट्रीशियन इत्यादि का घर है. यह भी पढ़ें: World Food Day 2019: विश्व खाद्य दिवस आज, अन्न संपन्नता है और विपन्नता भी, कारण नहीं निवारण की है जरूरत
अन्य विशेषज्ञों को लगता है कि इस समय हर किसी को विशेष रूप से महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए संतुलित और पौष्टिक भोजन को प्रोत्साहित करने और उन्हें पोषण प्रदान करने की जरूरत है. नई दिल्ली में उजाला साइग्नस हेल्थकेयर के संस्थापक और निदेशक शुचिन बजाज (Shuchin Bajaj) का कहना है कि कुपोषण को दूर करने के लिए समुदायों के भीतर कुपोषण की शुरुआती पहचान करना और उसका प्रबंधन करना जरूरी है.
एक अन्य डॉक्टर मनीषा रंजन जो मदरहुड अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विभाग में एक सलाहकार हैं, उनका कहना है कि महामारी के बाद अतिरिक्त 100 मिलियन भारतीय खाद्य संकट की चपेट में है. भारत के पुरुष प्रधान पारिवारिक संरचना में बच्चे (विशेष रूप से बालिकाएं) और महिलाएं इस आपदा का खामियाजा भुगतेंगी. एक महिला को अपने किशोरावस्था में पोषक तत्वों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, क्योंकि वे शरीर को तैयार करने के लिए बहुत सारे हार्मोनल असंतुलन से गुजरती हैं.
इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में पोषण संबंधी हस्तक्षेप पर एक डॉलर खर्च करने पर 19.35 डॉलर से 22.21 डॉलर का सार्वजनिक आर्थिक रिटर्न उत्पन्न हो सकता है, जो वैश्विक औसत से कई गुना अधिक है. हालांकि लॉकडाउन और आर्थिक मंदी और कोविड-19 की वजह से पोषण संबंधी कमी के कारण लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं.