World Food Day 2019: विश्व खाद्य दिवस आज, अन्न संपन्नता है और विपन्नता भी, कारण नहीं निवारण की है जरूरत
विश्व खाद्य दिवस 2019 (Photo Credits:Pixabay)

World Food Day 2019: 16 अक्टूबर की तारीख किसी भी विकासशील देश के लिए महत्वपूर्ण कही जा सकती है, क्योंकि इस दिन को दुनिया भर में ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य दिवस’ (World Food Day) के रूप में मनाया जाता है. महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि खाद्य और जनसंख्या के बीच संतुलन ही देश के सही विकास का ग्राफ तय करते हैं. विश्व की जनसंख्या (Population) में हो रही निरंतर वृद्धि और खाद्य पदार्थों के सीमित भंडार को देखते हुए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत हर देश शिद्दत से महसूस कर रहा है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्टूबर, 1945 को रोम में "खाद्य एवं कृषि संगठन" (एफएओ) की स्थापना की थी. विश्व में व्याप्त भुखमरी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने एवं इसे खत्म करने के लिए 16 अक्टूबर 1980 को 'विश्व खाद्य दिवस' के रूप में मनाना शुरू किया गया. आज इस दिवस विशेष को मनाते हुए 39 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन हम अपने उद्देश्य में सफल हो सके? क्या हममें जागरुकता आई? क्या हम खाद्य उत्पादन और जनसंख्या के बीच किसी भी हद तक संतुलन बना पाने में सफल रहे? क्या हम भुखमरी और कुपोषण पर नियंत्रण रख पाने में सफल रहे हैं? शायद नहीं! आखिर कहां पर सुई अटक रही है आइये देखते हैं.

जब भी हम खाद्य व्यवस्था पर चर्चा शुरू करते हैं, हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाए बढ़ती जनसंख्या की समस्या आकर खड़ी हो जाती है. हमारी सारी योजनाएं वहीं फ्रीज हो जाती हैं. विश्व में आज भी कई देश भुखमरी से जूझ रहे हैं. इसमें विकासशील या विकसित देशों में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक जब विश्व की कुल आबादी 9 अरब तक पहुंच जायेगी, तब तक हमारी खाद्य व्यवस्था कितनी जर्जर हो चुकी होगी, सोचकर भी दहशत होती है.

भारत में कुपोषण

विश्व खाद्य दिवस और कुपोषण के परिप्रेक्ष्य में अगर हम भारत की तरफ देखते हैं तो बहुत अलग नहीं पाते हैं. यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन लगभग 5 हजार बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. इसकी दो मुख्य वजहें हैं, जन वितरण प्रणाली के माध्यम से जहां ग़रीबों को मिलने वाला अनाज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है, वहीं कृषि क्षेत्र भी निरंतर सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रहा है. आज देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की महज 14 फीसदी है, और इस कमजोर व्यवस्था पर करीब 55 फीसदी कामगारों के भविष्य की गाड़ी चल रही है.

कहीं भुखमरी तो कहीं खाने की बर्बादी

भारत में एक तरफ जहां एक बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी मुश्किल से नसीब नहीं हो पाती है, वहीं शादी एवं सार्वजनिक समारोहों, होटलों आदि में भारी मात्रा में खाने की बर्बादी हो रही है. पिछले दिनों देश के प्रधान मंत्री ने इस संदर्भ में चेताया भी कि ‘हम प्लेटें भर लेते हैं, लेकिन खा नहीं पाते और जूठन छोड़कर चले जाते हैं. आप स्वयं सोचें कि अगर आप जूठन नहीं छोड़ेंगे, तो उससे कितने लोगों का पेट भर सकता है?’ बावजूद इसके हम अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहे हैं. यह भी पढ़ें: World Food Day 2019: दुनिया भर में करोड़ों लोग हैं भुखमरी के शिकार, वर्ल्ड फूड डे पर लें खाने की बर्बादी को रोकने का संकल्प

आपूर्ति प्रबंधन और भंडारण का अभाव है बड़ी समस्या

दिनों-दिन बढ़ती खाद्यान्न की कमी ने विश्व के सर्वोच्च संगठनों और सरकारों को भी सोचने पर विवश कर दिया है. भारत में हाल ही में "खाद्य सुरक्षा बिल" लाया गया है, लेकिन क्या इस बिल के पास होने या ना होने मात्र से इसकी समस्या का समाधान हो जायेगा? हम सभी जानते हैं कि 80 प्रतिशत ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले भारत में खाद्यान्न समस्या बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. बल्कि असली समस्या है सार्वजनिक आपूर्ति प्रणाली और खाद्यान्न भंडारण की व्यवस्था कर पाना. आज भी भारत के विभिन्न अनाज गोदामों में लाखों टन अनाज खुले में पड़े होने के कारण मौसम की मार में सड़ जाते हैं. 'भारतीय खाद्य निगम' ने भी माना है की उसके गोदामों में हर साल 50 करोड़ रुपये का 10.40 लाख मीट्रिक टन अनाज बारीश में भीगकर सड़ जाता है. इतने अनाज में हर साल लगभग सवा करोड़ लोगों का पेट भर सकता है! यह सब उस देश में हो रहा है, जहां 6 साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. करोड़ों लोग खाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण भूखे पेट सो जाते हैं. साल 1979 में 'खाद्यान्न बचाओ' मिशन शुरू किया गया था. इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियाँ उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है.

बढ़ती आबादी और भुखमरी

सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले भारत में, जहां सरकारी आंकड़ों के अनुसार 32 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. एफएओ के अनुसार, भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग भूखमरी से जूझ रहे थे. आज 10 साल बाद भी स्थिति जस का तस है. देश में खाद्यान्न का प्रयाप्त उत्पादन होने के बावजूद एक बड़ी आबादी भुखमरी का दंश झेल रही है. इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि एक तरफ हम तेजी से महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं, वहीं हम विश्व भुखमरी सूचकांक में 88 देशों में 66वें स्थान हैं. राज्य स्तर पर तो और भी व्यापक असमानता देखने को मिलती है. झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान में भूख एवं कुपोषण से पीड़ितों की संख्या अन्य प्रदेशों से कहीं ज्यादा है. आबादी बढ़ने एवं खाद्यान्न की स्थिर पैदावार के कारण देश में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत निरंतर घटती जा रही है, जो देश के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है.