आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में रेडी टू ईट फूड (Ready to Eat Food) और फास्ट फूड ने लोगों की थाली में अपनी खास जगह बना ली है. रेडी टू ईट फूड खाना इन दिनों बहुत अधिक पॉपुलर हो चुका है. क्यों कि इसे बनाने में किसी को भी बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है और ना ही इनमें अधिक समय लगता है, इसलिए लोग इन फूड्स को खाना काफी पसंद करते हैं. लेकिन क्या ये सुविधाजनक खाने के विकल्प हमारे स्वास्थ्य के लिए सही हैं? या आराम के चक्कर में हम अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? नई रिसर्च ने इन रेडी टू ईट फूड आइटम्स पर सवाल खड़े किए हैं.
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क्या सही है रेडी टू ईट फूड खाना?
चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, रेडी टू ईट फूड और कंवीनियंस फूड्स में 70% से अधिक कैलोरी कार्बोहाइड्रेट से आती हैं.
रेडी टू ईट फूड में सबसे अधिक कार्बोहाइड्रेट सामग्री होती है. रिसर्च के मुताबिक हेल्थ ड्रिंक मिक्स में सबसे ज्यादा कार्बोहाइड्रेट पाया गया, जो 100 ग्राम में 35 से 95 ग्राम के बीच था.
रेडी टू ईट फूड में कितना प्रोटीन?
अगर आप रेडी टू ईट फूड को हेल्दी समझकर खा रहे हैं तो संभल जाइए. रिसर्च में इन खाद्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा बेहद कम पाई गई. हेल्थ बेवरेज मिक्स में औसतन 15.8 ग्राम प्रोटीन था, जो सबसे ज्यादा था. इडली मिक्स में 12.2 ग्राम प्रोटीन प्रति 100 ग्राम पाया गया.
फैट से भरे हुए रेडी टू ईट फूड हार्ट हेल्थ के लिए खतरनाक
कॉर्न, आलू, सोयाबीन और गेहूं से बने फूड आइटम्स में वसा (Fat) का स्तर सबसे अधिक (100 ग्राम में 28 ग्राम) पाया गया. इनमें मौजूद बैड फैट कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकता है और दिल की बिमारियों का खतरा बढ़ा सकता है. इनकी खराब पोषण गुणवत्ता की वजह से मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
कैसे तैयार होते हैं रेडी टू ईट फूड आइटम
रेडी टू ईट फूड को इस तरह तैयार किया जाता है कि उसमें कई तरह के प्रिजर्वेटिव्स, फ्लेवर्स और आर्टिफिशियल कलर आदि का इस्तेमाल किया जाता है. ये खाने की शेल्फ लाइफ को भेल ही बढ़ाते हों, लेकिन इनके सेवन से सेहत को बहुत अधिक नुकसान हो सकता है. इन सभी प्रिजर्वेटिव्स व प्रोसेस्ड इंग्रीडिएंट्स के कारण कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
रेडी टू ईट फूड्स में सुधार की जरूरत
इस रिसर्च की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. आर.एम. अंजना ने बताया, “हमारी रिसर्च से यह स्पष्ट होता है कि ऐसे खाद्य पदार्थों को रीफॉर्मुलेट करने की जरूरत है. इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम करनी चाहिए और प्रोटीन की मात्रा बढ़ानी चाहिए.” उन्होंने आगे कहा कि जब तक यह सुधार नहीं होता, उपभोक्ताओं को प्रोसेस्ड फूड का सेवन सोच-समझकर करना चाहिए और इसे जितना हो सके टालने की कोशिश करनी चाहिए.
गुमराह करने वाले दावों से बचें
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कई उत्पाद, जो अपने पैकेज पर उच्च प्रोटीन या फाइबर का दावा करते हैं, वे भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (FSSAI) के मानकों पर खरे नहीं उतरते.
डॉ. अंजना के अनुसार "जो उत्पाद खुद को होल ग्रेन बताते हैं, अगर उनकी सामग्री सूची में यह नहीं दिखता, तो ऐसे दावे भ्रामक हो सकते हैं. इसलिए उपभोक्ताओं को केवल पैकेजिंग पर लिखे दावों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि सामग्री सूची को जरूर पढ़ना चाहिए."
एक बाजार अध्ययन के अनुसार, भारत में खाद्य उद्योग का राजस्व 2021 में $58 बिलियन था और यह 2022-2027 के बीच 9.5% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है.
स्वस्थ विकल्प कैसे चुनें?
फूड पैकेट पर दी गई जानकारी को ठीक से पढ़ें. कम फैट वाले स्नैक्स को चुनें. इसी तरह कम सोडियम वाले सूप अपनाएं. अधिक फाइबर और प्रोटीन की तलाश करें
डॉ. शंमुगम ने सुझाव दिया कि दालों का ऑप्शन जोड़ने से प्रोटीन सामग्री को बढ़ाया जा सकता है. हालांकि इससे उत्पादों की कीमत बढ़ सकती है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा.
रेडी टू ईट फूड आइटम्स समय की बचत जरूर करते हैं लेकिन इनमें मौजूद फैट और कार्बोहाइड्रेट स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि इनका सेवन सीमित करें और जहां तक संभव हो, घरेलू और ताजे भोजन को प्राथमिकता दें. पैकेजिंग के आकर्षक दावों के बजाय सामग्री पर ध्यान दें और संतुलित आहार को अपनाएं.