Swami Vivekananda Jayanti 2024 Date and National Youth Day: युवा पीढ़ी किसी भी देश के विकास की रीढ़ होती है। रीढ़ अगर क्षतिग्रस्त हो जाए तो शरीर का सीधे खड़े रहना मुमकिन नहीं होता। अर्थात रीढ़ के क्षतिग्रस्त होने पर शरीर का विकास होना भी संभव नहीं। ठीक इसी प्रकार देश के विकास के लिए विकास की रीढ़ यानि युवा वर्ग की मानसिकता का स्वस्थ रहना है और यह बेहद जरूरी है। इससे भी जरूरी होता है वैसे परिवेश का होना जहां युवा वर्ग की मानसिकता का स्वस्थ रह सके। यदि बात करें देश की आजादी से पहले की तो युवाओं को उस वक्त ऐसा परिवेश नहीं मिलता था। इसलिए देश की सबसे बड़ी चिंता भी यही थी। ऐसे में स्वामी विवेकानंद युवाओं के मार्गदर्शक बने। उन्होंने देश की युवा शक्ति को जागृत कर उसे देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराया और उन्हें सही दिशा में प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया।
हमें भूलना नहीं चाहिए कि देश की आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व बलिदान कर लोगों में क्रांति का बीजारोपण करने वाले अधिकांश युवा उन्हें अपना आदर्श मानते थे। स्वामी विवेकानंद ने देश की आन-बान और शान के लिए अपने निजी जीवन के समस्त सुखों का त्याग कर दिया था और अपना समस्त जीवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया था। ऐसे में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर उनके बारे में जानना हर युवा के लिए बेहद अहम है।
युवाओं का उचित मार्गदर्शन बेहद महत्वपूर्ण
दरअसल, देश के युवा आधुनिक युग में ऐसे क्रांतिकारी युवाओं की जीवन गाथाओं को भूल रहे हैं। यही कारण है कि वर्तमान युग में भी युवाओं का उचित मार्गदर्शन बेहद जरूरी है। वर्तमान सरकार भी 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के माध्यम से युवाओं को स्वामी विवेकानंद से परिचित कराने का अहम कार्य करती है। प्रतिवर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जाती है। वर्ष 1984 में, भारत सरकार ने 12 जनवरी को 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में घोषित किया था और 1985 से यह आयोजन प्रतिवर्ष किया जा रहा है।
स्वामी विवेकानंद का 'विश्व धर्म सम्मेलन' का संबोधन रहा था ऐतिहासिक
स्वामी विवेकानंद के वक्तव्यों की बात करें तो आम जनमानस और खासकर युवा वर्ग के मन-मस्तिष्क पर उनका कितना प्रभाव पड़ता था, इसका उनके शिकागो भाषण से बेहतरीन उदाहरण मिल सकता है। 11 सितम्बर, 1893 को जब शिकागो के 'विश्व धर्म सम्मेलन' में हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत उन्होंने ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ के साथ की थी तो बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही थी। दरअसल, उनसे पहले जो कोई वक्ता मंच पर आया था सभी ने लेडीज एंड जेंटलमैन से अपने संबोधन की शुरुआत की थी। ऐसे में स्वामी विवेकानंद के संबोधन की शुरुआत ही वहां मौजूद लोगों के दिलों को छू गई। केवल इतना ही नहीं उस दौरान उन्होंने अपने उस भाषण के जरिए दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाया था।
विदेशी मीडिया में उनकी जमकर तारीफ की गई। यह स्वामी विवेकानंद का अद्भुत व्यक्तित्व ही था कि वे यदि मंच से गुजरते भी थे तो तालियों की गड़गड़ाहट होने लगती थी। उन्होंने 01 मई 1897 को कोलकाता (तब कलकत्ता) में रामकृष्ण मिशन तथा 9 दिसंबर 1898 को कोलकाता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। 04 जुलाई 1902 को इसी रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण किए वे चिरनिद्रा में लीन हो गए।
स्वामी विवेकानंद सही मायनों में युवाओं के प्रेरणास्रोत
स्वामी विवेकानंद सही मायनों में युवाओं के प्रेरणास्रोत और आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्हें उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही जाना जाता है। विवेकानंद सदैव कहा करते थे कि उनकी आशाएं देश के युवा वर्ग पर ही टिकी हुई हैं। वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे और खासकर भारतीय युवाओं के लिए उनसे बढ़कर भारतीय नवजागरण का अग्रदूत अन्य कोई नेता नहीं हो सकता।
39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में देश को सौंपी बेशकीमती पूंजी
39 वर्ष के छोटे से जीवन काल में स्वामी विवेकानंद अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी। उनका कहना था कि मेरी भविष्य की आशाएं युवाओं के चरित्र, बुद्धिमत्ता, दूसरों की सेवा के लिए सभी का त्याग और आज्ञाकारिता, खुद को और बड़े पैमाने पर देश के लिए अच्छा करने वालों पर निर्भर है। उन्होंने देश को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए हमेशा युवा शक्ति पर भरोसा किया। युवा शक्ति का आह्वान करते हुए उन्होंने इसी प्रकार के अनेक मूल मंत्र दिए जो आज भी देश की युवा शक्ति के लिए सार्थक सिद्ध हो रहे हैं।