Vivekananda Death Anniversary 2023: प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई को भारतीय युवाओं के प्रतीक स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि देश भर में पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाई जाती है. विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता विश्वनाथ ब्रिटिश शासनकाल कलकत्ता हाईकोर्ट में कार्यरत थे, माँ भुवनेश्वरी देवी गृहिणी थी. पिता उन्हें नरेंद्र दत्त के नाम से पुकारते थे. नरेंद्र नाथ को विवेकानंद नाम खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने दिया था. स्वामी परमहंस से उनकी पहली मुलाकात बहुत रोचक थी. विवेकानंद को जब परमहंस की विद्वता का पता चला, तब उन्होंने उनसे शास्त्रार्थ करने का मन बनाया. दोनों आमने-सामने आए तो परमहंस स्वामी जी को देखते ही समझ गये कि उन्हें लंबे अरसा से जिसकी जरूरत थी, वह मिल गया. विवेकानंद 25 वर्ष की आयु में भगवा वस्त्र पहनकर रामकृष्ण के शिष्य बन गये, और संपूर्ण देश की यात्रा पर निकल गये. यह भी पढ़े: Swami Vivekananda Death Anniversary: युवाओं की तकदीर बदल सकते हैं स्वामी विवेकानंद जी के ये अनमोल विचार
बड़े-बड़े नेताओं और दार्शनिकों ने भी अपनायी उनकी जीवन शैली
विवेकानंद एक दार्शनिक थे, जिन्होंने पश्चिम देशों में ‘योग’ और ‘वेदांत’ की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया. 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उन्होंने हिंदू धर्म को प्रमुख विश्व धर्मों में से एक के रूप में स्थापित किया. स्वामीजी दर्शन, साहित्य और इतिहास के अच्छे जानकार थे. आध्यात्मिकता और देशभक्ति पर विवेकानंद की ज्ञानवर्धक टिप्पणियों ने देश के युवाओं को प्रभावित किया है. बाद में, बड़ी तादाद में भारतीय नेताओं और दार्शनिकों ने भी उनके शुद्ध जीवन शैली को स्वेच्छा से अपनाया. भारत में उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
जब शिक्षक रह गए दंग
स्वामी विवेकानंद बहुत मेधावी छात्र थे. एक दिन स्कूल में विवेकानंद एक क्लास ब्रेक के दौरान अपने सहपाठी छात्रों से बात कर रहे थे. उसी बीच क्लास रूम में शिक्षक आ गये. ब्रेक होने के कारण विवेकानंद छात्रों के साथ बात में मशगूल रहे. शिक्षक छात्रों को पढ़ाना शुरू कर देते हैं, लेकिन विवेकानंद अपने सहपाठियों के साथ बातों में मशगूल ही रहे. इस पर शिक्षक को गुस्सा आ गया. उन्होंने बातों में मशगूल छात्रों को उठा-उठाकर पढ़ाई हुई चीजों के बारे में पूछना शुरू कर दिया. लेकिन अध्यापक के सवालों का कोई भी छात्र जवाब नहीं दे सका. इसके बाद शिक्षक ने विवेकानंद से भी पूछा, उन्होंने उनके सारे सवालों का जवाब दे दिया. शिक्षक हैरान रह गये, क्योंकि विवेकानंद भी बच्चों से बातों में मशगूल थे.
मृत्यु का पूर्वाभास था
स्वामी जी को अपनी मृत्यु का पूर्व अहसास था. सूत्रों के अनुसार अंतिम दिन यानी 4 जुलाई को बेलूर मठ में उन्होंने अपने शिष्यों के बीच शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या करते हुए कहा, इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया? देश-समाज को एक और विवेकानंद की जरूरत है. उनके शिष्यों के अनुसार स्वामी जी ने इस दिन सारे कार्य अपनी नित दिनचर्या के अनुरूप किया था. सबसे अंत में उन्होंने दो-तीन घंटा ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही ब्रह्मरंध्र को भेद कर महासमाधि ले ली. चिकित्सकों के अनुसार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन स्वामी जी के परमगुरू श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपनी दिव्य दृष्टि से पहले ही समझ लिया था, कि स्वामीजी ने एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए जन्म लिया है, वह चाहते थे कि विवेकानंद अपने आध्यात्मिक अवस्था के चरम पर पहुंचने से पूर्व उस उद्देश्य को पूरा कर लें. मृत्यु के समय वह 39 वर्ष के थे.