Sankashti Chaturthi 2019: आज है संकष्टी चतुर्थी, व्रत में इन बातों का रखें ध्यान, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
संकष्टी चतुर्थी (Photo Credits: rupixen from Pixabay)

Sankashti Chaturthi 2019: आज 15 नवंबर 2019 को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2019) मनाई जा रही है. आज के दिन गणपति मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जमा हुई है. इस दिन जो भक्त बाप्पा के दर्शन कर लेते हैं, उनके सारे दुःख तर जाते है. संकष्टी चतुर्थी का शुभ दिन भगवान गणेश को समर्पित है. यह दिन हिंदू पंचांग के प्रत्येक चंद्र माह में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है. यदि संकष्टी मंगलवार को पड़ती है तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. संस्कृत में अंगारक का अर्थ है कोयले के जलने की तरह लाल, जो मंगल ग्रह को संदर्भित करता है. अंगारकी संकष्टी चतुर्थी सभी संकष्टी चतुर्थी दिनों में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि यह लगभग 700 ईसा पूर्व पहले शुरू हुआ था, यह अभिषेक महर्षि द्वारा अपने शिष्य को बचाने के लिए शुरू किया गया था.

इस दिन भक्त उपवास रखते हैं. गणेश की पूजा से पहले चंद्रमा के शुभ दर्शन होने के बाद रात में व्रत का पारण करते हैं. ऐसा मानना है कि इस दिन व्रत रख विधि विधान से पूजा करने पर सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है. इस व्रत को करने से समस्याओं में कमी आती है क्योंकि गणेश सभी बाधाओं को दूर करने और बुद्धिमत्ता के सर्वोच्च स्वामी हैं. चांदनी से पहले गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भगवान गणेश के आशीर्वाद के लिए किया जाता है.

व्रत में इन बातों का रखें ध्यान:

भगवान गणेश को उनका पसंदीदा मोदक जरुर चढ़ाएं.

बाप्पा को दूर्वा बहुत ही प्रिय है, इसलिए इसके बिना संकष्टी की पूजा अधूरी रह जाएगी.

चन्द्र के दर्शन किए बिना व्रत का पारण न करें, नहीं तो पूजा सफल नहीं होगी.

व्रती दिन में सोने से और ज्यादा बोलने से बचें.

शुभ मुहूर्त

चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 15 नवंबर 2019 को शाम 07.46 बजे से,

चतुर्थी तिथि समाप्त- 16 नवंबर 2019 को शाम 07.15 बजे तक.

चंद्रोदय का समय- शाम 07.48 बजे

पूजा विधि:

भगवान गणेश की मूर्ति को दुर्वा घास और ताजे फूलों से सजाएं.

भगवान गणेश को उनका पसंदीदा मोदक और लड्डुओं का भोग लगाएं.

धूप नैवेद्य जलाकर व्रत कथा का पाठ करें.

आरती के बाद सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें.

शाम को भगवान गणेश की पूजा और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करें.

इस दिन 'गणेश अष्टोत्र', 'संकष्टनाशन स्तोत्र' और 'वक्रतुंड महाकाय' का पाठ करना शुभ होता है.

हिंदू कैलेंडर में प्रत्येक चंद्र महीने में दो चतुर्थी तीथियां होती हैं. पूर्णिमासी या कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और शुक्ल पक्ष की अमावस्या के बाद पड़नेवाली को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है. वैसे तो संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने किया जाता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण संकष्टी चतुर्थी माघ और पौष के महीने में पड़ती है.