Sankashti Chaturthi 2019: जानें संकष्टी चतुर्थी के दिन मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए क्या करें क्या न करें
शास्त्रों के अनुसार इस दिन मिट्टी के भीतर पैदा होने वाले कंद मूल, अथवा आलू का सेवन हरगिज नहीं करना चाहिए (File Photo)

Ganesh Sankashti Chaturthi 2019: सनातन धर्म में मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की गणेश संकष्टी चतुर्थी का विशेष महात्म्य है. मान्यता है कि इस दिवस विशेष पर उपवास रखते हुए अगर गणेश जी की विधिवत पूजा अर्चना की जाए तो भगवान श्रीगणेश बहुत प्रसन्न होते हैं और अभीष्ठ फलों की प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं. इस दिन की विशेषताओं को देखते हुए ज्योतिषियों का कहना है कि किसी जानकार पुरोहित से षोडशोपचार विधि से पूजा अर्चना करवाना चाहिए. क्योंकि गणेश जी के बारे में विख्यात है कि वे जल्दी खुश होकर भक्त पर सब कुछ अर्पित कर देते हैं.

करियर, शिक्षा, व्यवसाय, परीक्षा सभी क्षेत्रों में इंसान लाभ प्राप्त करता है, संतान की आयु लंबी होती है लेकिन रुष्ठ होने पर भक्त का बनता काम बिगड़ जाता है. पंडित रवींद्र पाण्डेय बताते हैं कि इस दिन गणेश जी का व्रत एवं उपासना करते समय किन किन बातों का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए.

इन वस्तुओं का सेवन न करें:

कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी का विशेष महात्म्य होता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन मिट्टी के भीतर पैदा होने वाले कंद मूल, अथवा आलू का सेवन हरगिज नहीं करना चाहिए. यहां तक कि मूली, चुकंदर और गाजर से भी परहेज करना चाहिए. ऐसा करने से आर्थिक मामलों में भारी नुकसान की संभावना होती है.

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इस तरह करें गणेशजी की पूजा:

मार्गशीर्ष मास की संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास अवश्य रखना चाहिए और स्नानादि के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए मंत्रोच्चारण करना चाहिए. इसके पश्चात गणेश जी को जल अर्पित करना चाहिए. शरद ऋतु के प्रारंभ के इस पहले गणेश चतुर्थी को गणेश जी को तिल चढाना आवश्यक बताया गया है. आप साफ लोटे में शुद्ध जल में थोड़ा गंगाजल एवं तिल मिलाकर गणेश जी को अर्घ्य देना चाहिए, मान्यता है कि ऐसा करने से घर-परिवार के लोगों की सेहत अच्छी रहती है.

सायंकाल में चंद्रमा को जल-तिल-गुड़ का अर्घ्य दें:

पूरे दिन उपवास रखने के बाद सायंकाल चंद्रोदय होने पर एक साफ तांबे के लोटे में जल में तिल-गुड़ डालकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. इस दिन तिल-दान का बहुत महत्व माना जाता है. गणेशजी की पूजा के बाद तिल से बनी मीठी वस्तुओं का प्रसाद खाना चाहिए. अगर कोई किसी वजह से इस दिन व्रत रख पाने में असमर्थ है तो उसे भी गणेश जी की पूजा-अर्चना करके सायंकाल के समय तिल से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन तिल नाम का उच्चारण करने मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. अच्छा होगा अगर किसी ब्राह्मण को इस दिन तिल का दान करें.

दुर्वा से करें भगवान गणेश की पूजा:

गणेश जी को दुर्वा बहुत प्रिय है. मान्यता है कि दुर्वा में अमृत का वास होता है. ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है, अकारणी बीमारी से मुक्ति मिलती है. दफ्तर एवं समाज में मान-प्रतिष्ठा और धन सम्मान में वृद्धि होती है. शास्त्रों में तो लिखा है कि प्रत्येक दिन पूजा करते वक्त गणेश जी को दुर्वा चढ़ाना चाहिए. पुरोहितों के अनुसार दुर्वा के बिना पूजा करने से गणेश जी नाराज हो जाते हैं.

गणेश जी को तुलसी कत्तई नहीं चढ़ाएं:

पूजा करते समय विष्णु भगवान एवं लक्ष्मी जी को तुलसी चढ़ाने का विधान है, लेकिन इस बात का भी अवश्य ध्यान रखें कि गणेश जी को भूलकर भी तुलसी का पत्ता नहीं चढाएं, क्यों कि आध्यात्मिक पुस्तकों में उल्लेखित है कि तुलसी जी ने श्रीगणेश जी को शाप दिया था.

गणेशजी को ये सब भी कर सकते हैं अर्पित:

मार्गशीर्ष मास की संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करते समय दूर्वा के अलावा शमी का पत्ता, बेलपत्र, गुड़ और तिल से बने लड्डू भी चढ़ाया जा सकता है. ऐसा करने से गणेश जी प्रसन्न होकर भक्तों को मनोवांक्षित फल प्रदान करते हैं.

अगर विवाह के लंबे अर्से के बाद भी किसी को संतान-सुख नहीं मिल पाया है तो संकष्ठी चतुर्थी के दिन सायंकाल के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद गणेश जी के सामने घी का दीपक जलाते हुए मन ही मन संतान कामना का की प्रार्थना करें. इसके अलावा पूजा में प्रसाद के रूप में अपनी उम्र के (वर्ष के अनुसार) बराबर तिल का लड्डू चढ़ाएं. यह पूजा पत्नी और पति को मिलकर करना श्रेयस्कर होता है.

इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.