Lala Lajpat Rai Jayanti 2020: लाला लाजपत राय ने दिया था 'अंग्रेजों वापस जाओ' का नारा, जानें पंजाब के शेर के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें
लाला लाजपत राय जयंती 2020 (Photo Credits: Wikipedia)

Lala Lajpat Rai Jayanti : लाला जी यानी लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का नाम देश के उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों (Freedom Fighters) में शुमार है, जिन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. गरम दल (Garam Dal) के प्रमुख नेता और पंजाब के शेर (Pujab Kesari) कहे जाने वाले लाला लाजपत राय की आज 155वीं जयंती (155th Birth Anniversary of Lala Lajpat Rai) मनाई जा रही है. उनका जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर (मौजूदा मोगा) जिले में हुआ था. उनके पिता मुंशा राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे, जबकि उनकी माता गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं.

लाला लाजपत राय ने न सिर्फ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई, बल्कि उन्होंने आर्थिक और शैक्षणिक गुलामी की जंजीरों को भी तोड़ने का काम किया. उन्होंने पंजाब के लिए कई सारे काम किए जिसके चलते उन्हें 'पंजाब केसरी' यानी 'पंजाब का शेर' भी कहा जाता है. लाला लाजपत राय जी की 155वीं जयंती के इस खास अवसर पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें.

लाला जी ने की थी वकालत की पढ़ाई

लाला लाजपत राय के पिता रेवाड़ी में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक थे और उन्होंने यहीं से अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी. साल 1880 में उन्होंने लॉ की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया. साल 1886 में वो अपने परिवार के साथ हिसार चले गए, जहां उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस की. इसके बाद साल 1888 और 1889 के नेशनल कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के दौरान उन्होंने प्रतिनिधि के तौर पर हिस्सा लिया. साल 1892 में वे हाई कोर्ट में वकालत करने के लिए लाहौर चले गए.

बचपन से ही मन में देश सेवा की थी भावना

लाला लाजपत राय जब छोटे थे तभी से उनके मन में देश सेवा की भावना जाग गई थी और उन्होंने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराने का प्रण ले लिया. ये उनकी देश भक्ति का ही जज्बा था कि वे कॉलेज के दिनों में लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आए. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति के खिलाफ थे और देश को आजाद कराने के लिए क्रांति की राह चुनने के हिमायती थे. उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए वकालत छोड़ दी और देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया.

भगत सिंह की टोली के बने प्रेरणास्रोत

पहले विश्वयुद्ध के दौरान (साल 1914-18) लाला लाजपत राय एक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में इंग्लैंड गए और देश की आजादी के लिए जनमत को जागृत किया. इंग्लैंड से वे जापान और फिर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम के बारे में लोगों को बताया. लाला लाजपत राय युवाओं के प्ररेणास्रोत थे, जिनसे प्रेरित होकर भगत सिंह, उधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों ने देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया. यह भी पढ़ें: Independence Day 2019: भारत के इन वीर क्रांतिकारियों की बदौलत मिली थी देश को आजादी, आइए 73वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें करें नमन

गरम दल के प्रमुख नेता थे लाला जी

लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे. बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था. गरम दल के यही वो तीन नेता थे, जिन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की मांग की थी और बाद में पूरा देश उनके साथ हो गया था.

बुलंद किया अंग्रेजों वापस जाओ का नारा

3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत आया तो उसके विरोध में पूरे देश में विरोध की आग भड़क उठी. साइमन कमीशन कड़ा विरोध करते हुए लाला जी ने 'अंग्रेजों वापस जाओ' का नारा बुलंद किया और इस कमीशन का डटकर विरोध किया. 30 अक्टूबर 1938 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज में लाला जी बुरी तरह से घायल हो गए थे. करीब 18 दिनों तक अपने जख्मों से लड़ते के बाद 17 नवंबर 1928 को उनके जीवन की डोर टूट गई और उनका निधन हो गया.