
अमेरिका में कानूनी और गैरकानूनी, दोनों ही तरह के प्रवासी ट्रंप सरकार की सख्त इमिग्रेशन नीति के कारण चिंता में हैं. सिलिकॉन वैली में उनके फैसले का विरोध हो रहा है जिसके केंद्र में है अस्थायी एच-1बी वीजा.कबीर (बदला हुआ नाम) भारतीय इंजीनियर हैं और सिलिकॉन वैली की एक स्टार्टअप कंपनी में काम करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर उनकी नौकरी चली गई तो यह उनके लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि वह अमेरिका में एच-1बी वीजा पर रहते हैं. इस वीजा के लिए जरूरी है कि उनकी कंपनी उनको स्पोंसर करे और यूएस सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) में याचिका दायर करे. नौकरी के बिना वह अमेरिका में नहीं रह सकते. उन्हें चिंता है कि कहीं ट्रंप सरकार इसके खिलाफ कोई नया नियम न ले आए.
कबीर ने कहा, "हम इस देश में निवेश करते हैं, योगदान देते हैं, फिर भी वर्क वीजा मिलना कठिन है. पहले दिन से ही हम पर दबाव होता है – अगर नौकरी चली जाए तो सिर्फ 90 दिन का समय मिलता है. जल्द से जल्द नई नौकरी खोजो या देश छोड़कर जाओ. यह दबाव हमेशा बना रहता है."
उन्होंने बताया कि ग्रीन कार्ड मिलने से अमेरिका में स्थायी निवास की अनुमति मिल सकती है और वह बिना किसी प्रतिबंध के यहां रह कर काम कर सकते हैं. लेकिन आवेदकों की संख्या इतनी अधिक है कि आधिकारिक अनुमान के अनुसार उन्हें ग्रीन कार्ड पाने के लिए 108 साल का समय लग सकता है.
एच-1बी वीजा धारकों में चिंता
कई अन्य एच-1बी वीजा धारकों की तरह अमेरिका में कबीर का भविष्य भी संकट में है. एच-1बी वीजा कार्यक्रम कुशल विदेशी कामगारों के लिए 1990 में बनाया गया था ताकि अमेरिकी बाजार में कामगारों की कमी को पूरा किया जा सके. शुरुआत में इस वीजा की अवधि तीन साल होती है, जिसे बाद में तीन साल और बढ़ाया जा सकता है.
विशेषज्ञों की मानें तो यह कार्यक्रम अपने उद्देश्य के अनुसार सफल नहीं हुआ. वॉशिंगटन डी.सी. के हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ रॉन हीरा का कहना है कि कंपनियां इसका दुरुपयोग करती हैं. वह विदेशी कर्मचारियों को रखती हैं, प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं और उन्हें कम पैसों में रखकर अमेरिकी कामगारों को नुकसान पहुंचाती हैं.
हीरा ने डीडब्ल्यू को बताया कि एच-1बी वीजा पर काम करने वाले लोग ज्यादातर अस्थायी होते हैं और वह पूरी तरह से एंप्लॉयर पर निर्भर होते हैं. उन्हें अमेरिकी कर्मचारियों के समान अधिकार नहीं होते है. वह अपने बॉस को "ना" कहने से डरते हैं क्योंकि "नौकरी खोने का मतलब वीजा खोना होता है."
ग्रीन कार्ड या एच-1बी वीजा: सिलिकॉन वैली का ‘गहरा राज'
सिलिकॉन वैली की लाइफ साइंस कंपनी वाओनिक्स बायोसाइंस के सीईओ, विवेक वाधवा, इसे "उद्योग जगत की खामी" और सिलिकॉन वैली का "गहरा राज" कहते हैं.
सिलिकॉन वैली का टेक्नोलॉजी उद्योग विदेशी कुशल कामगारों पर निर्भर है लेकिन बड़ी टेक कंपनियां ग्रीन कार्ड आवेदकों की बजाय एच-1बी वीजा धारकों को प्राथमिकता देती हैं.
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वाधवा का कहना है, "अगर आप एक बड़ी टेक कंपनी चलाते हैं तो आप ऐसे कर्मचारी रखना चाहेंगे जो लंबे समय तक रहें और कम सैलरी पर काम करें. यह आर्थिक तौर पर लिया गया फैसला है."
हालांकि सिलिकॉन वैली के कई बड़े उद्योगपति खुद इमिग्रेंट हैं. जैसे कि गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला भारतीय मूल के हैं. एनवीडिया के संस्थापक जेन्सेन हुआंग ताइवान से हैं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कंपनी जूम के सीईओ एरिक युआन चीन से हैं. यहां तक कि स्पेसएक्स और टेस्ला के सीईओ इलॉन मस्क भी दक्षिण अफ्रीका से हैं.
सिलिकॉन वैली का प्रभावी गुट
बड़ी टेक कंपनियां एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा फायदा उठाती हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यही कारण है कि सिलिकॉन वैली का सबसे ताकतवर समूह ट्रंप के करीब आ गया और उनके दूसरे राष्ट्रपति चुनावी मुहिम में जमकर आर्थिक मदद की है.
सिलिकॉन वैली सेंट्रल चैंबर ऑफ कॉमर्स की सीईओ हरबीर कौर भाटिया का मानना है, "टेक इंडस्ट्री के प्रमुख ट्रंप की एच-1बी नीति को प्रभावित कर सकते हैं." भाटिया ने डीडब्ल्यू को बताया कि जब पहली बार ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने "अमेरिकी खरीदो, अमेरिकियों को नौकरी दो" का नारा दिया था और एच-1बी वीजा का विरोध किया था. लेकिन इस बार उनका रुख नरम नजर आ रहा है और वह कुशल प्रवासियों का समर्थन कर रहे है.
भारतीय टेक माइग्रेशन के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं
नई वीजा नीति में होने वाले बदलाव भारतीय कामगारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्यूंकि 70% से अधिक एच-1बी वीजा धारक भारतीय हैं. इसके अलावा भारतीय नागरिकों को अक्सर नफरती हमलों का भी सामना करना पड़ता है. उन पर आरोप लगाया जाता है कि वह अमेरिकियों की नौकरियां छीन रहे हैं और वेतन घटा रहे हैं.
रॉन का कहना है कि भारत एच-1बी वीजा को बनाए रखना चाहता है क्योंकि भारतीय कामगार अमेरिका से हर साल अरबों डॉलर अपने देश भेजते हैं. इसके अलावा भारतीय आईटी कंपनियां अपने आउटसोर्सिंग बिजनेस के लिए एच-1बी वीजा पर काफी निर्भर करती हैं.
हीरा ने कहा कि यह भारत के लिए एक बड़ा आर्थिक स्रोत है और यही वजह है कि भारतीय कंपनियां ऐसे किसी भी सुधार के खिलाफ हैं जो उनके मुनाफे को कम कर सकता है.
लेकिन इस अनिश्चित प्रणाली से परेशान होकर कई कुशल कामगार अमेरिका छोड़कर भारत लौट रहे हैं और अपनी खुद की कंपनियां शुरू कर रहे हैं. विवेक वाधवा का मानना है कि अगले पांच से दस साल में भारत में कई सिलिकॉन वैली होंगी. उन्होंने खुद भी अपनी कंपनी भारत में स्थापित कर दी है.
वाधवा का मानना है कि अगर ट्रंप प्रशासन ने कुशल प्रवासियों के लिए हालात और बिगाड़े तो यह इमिग्रेशन बहस अमेरिका पर भारी पड़ सकती है. कई प्रतिभाशाली लोग अपनी इनोवेशन और स्किल्स लेकर किसी और देश में जा सकते हैं.