Govardhan Puja 2019 Date & Shubh Muhurat: गोवर्धन पूजा से जुड़ी है श्रीकृष्ण एक खास लीला, जानें शुभ मुहूर्त, अन्नकूट पूजा विधि, महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा 2019 (Photo Credit- Instagram)

Govardhan Puja 2019 Date & Shubh Muhurat: दीपावली  (Deepawali) यानी लक्ष्मीपूजन (Lakshmi Pujan) के अगले दिन गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का त्योहार हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो इस बार 28 अक्टूबर 2019 को पड़ रही है. इस पर्व को भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की जन्मभूमि मथुरा, गोकुल और वृंदावन में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन पूरा वातावरण कृष्णमय हो जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्रीकृष्ण और गायों की पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा (Annakut Puja) के नाम से भी जाना जाता है. गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की एक खास लीला से जुड़ी हुई है.

चलिए पांच दिवसीय दिवाली उत्सव के चौथे दिन मनाए जाने वाले इस त्योहार की शुभ तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं.

गोवर्धन पूजा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पर्वतों के राजा गोवर्धन पर्वत भगवान विष्णु के प्रिय माने जाते हैं. एक बार श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र के अहंकार को तोड़ा था, जिसके पीछे उनका उद्देश्य ब्रजवासियों और गायों की रक्षा करना थी. इंद्र देव से इन सबकी रक्षा करने के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था, इसलिए दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत की पूजा और गायों की सेवा का विधान है. कहा जाता है कि श्रद्धापूर्वक गोवर्धन पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समुद्धि की प्राप्ति होती है.

गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 28 अक्टूबर 2019 को सुबह 09.08 बजे से,

प्रतिपदा तिथि समाप्त- 29 अक्टूबर 2019 को सुबह 06.13 बजे तक.

पूजा का शुभ मुहूर्त- दोपहर 03.27 बजे से शाम 05.41 बजे तक.

अवधि- 02 घंटे 14 मिनट. यह भी पढ़ें: Happy Govardhan Puja 2019 Wishes: लक्ष्मी पूजन के अगले दिन होती है गोवर्धन पूजा, भेजें ये प्यारे हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Photo Messages, SMS, GIF Images और दें प्रियजनों को शुभकामनाएं

अन्नकूट पूजा विधि-

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सुबह अपने सभी कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है. इसके बाद गोवर्धन पर्वत को पूजा के लिए सजाया जाता है. गोवर्धन पर्वत के साथ गायों और मनुष्य के आकार बनाए जाते हैं. इसके साथ ही श्रीकृष्ण के पूजन का भी विधान है. इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत को पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है. गोवर्धन पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि का इस्तेमाल किया जाता है

श्रीकृष्ण की लीला से जुड़ी पौराणिक कथा-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोवर्धन पूजा से श्रीकृष्ण की एक लीला जुड़ी हुई है. इस कथा के मुताबिक द्वापर युग में ब्रजवासी इंद्र की पूजा करते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि हमें इंद्र की पूजा करके कोई लाभ नहीं होता है. इंद्र देव वर्षा करके सिर्फ अपना कर्म ही कर रहे हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत ब्रज की गायों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनका संरक्षण भी करते हैं, इसलिए इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए.

श्रीकृष्ण की बातों को सुनकर ब्रज के सभी लोग इंद्र देव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी. इंद्र को अपना यह अपना बर्दाश्त नहीं हुआ. इसके बाद क्रोधित इंद्र ने मेघों को गोकुल का विनाश करने का आदेश दिया. इंद्र के आदेश पर गोकुल में भारी वर्षा होने लगी. मूसलाधार बारिश से ब्रजवासियों और गायों की रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत के संरक्षण में चलने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. श्रीकृष्ण ने पूरे सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा और इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की. यह भी पढ़ें: Diwali 2019 Date & Full Scehdule: दिवाली कब है? जानिए धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन और भाई दूज की महत्वपूर्ण तिथियां

गौरतलब है कि इंद्र ने ब्रज में विनाश लाने के लिए अपनी सभी शक्तियां लगा दी, लेकिन श्रीकृष्ण के आगे उनकी एक भी नहीं चली. जब इंद्र को यह पता चला की भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तब जाकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. गलती का एहसास होने के बाद इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की. दरसअल, इंद्र देव के अहंकार को तोड़ने के लिए ही श्रीकृष्ण ने यह लीला रची थी और तभी से गोवर्धन पूजा का यह त्योहार मनाया जाने लगा.