Dussehra 2020: क्या विभीषण राष्ट्रद्रोही थे? अगर वे राम की मदद नहीं करते तो क्या रावण के प्राण बच जाते?
दशहरा 2020 (Photo Credits: File Image)
Dussehra 2020: रावण (Ravana) भगवान शिव (Lord Shiva) का अनन्य भक्त था, उस पर शिव की विशेष कृपा थी. वह महाबलशाली एवं प्रकाण्ड पंडित था, मायावी था और तंत्र-मंत्र से युद्ध में भी माहिर था, इसीलिए युद्ध के मैदान में श्रीराम (Shri Ram) के लिए रावण का संहार करना आसान नहीं था. उनके तरकश से शक्तिशाली बाण समाप्त हो रहे थे और रावण अकेले श्रीराम की सेना का समूल नाश कर रहा था. राम के तीक्ष्ण बाणों से रावण के सिर कटते और अगले पल नये शीश आ जाते. तब विभीषण ने श्रीराम को संकेत में बताया कि रावण की नाभि में अमृत है और श्रीराम उसे अपने ब्रह्मास्त्र से सुखाकर उसका संहार कर सकते हैं. अंततः विभीषण के कथनानुसार श्रीराम रावण का वध करने में सफल होते हैं. लेकिन विभीषण के इस छोटे से संकेत ने विभीषण को आजन्म देशद्रोही करार दिया, उन पर 'घर का भेदी लंका ढाए' जैसी कहावत चस्पा हो गयी. लेकिन क्या विभीषण सच में देशद्रोही थे? क्या उनके ही कारण महाबलशाली रावण का अंत और श्रीराम को विजय प्राप्त हुई? आइये जानते हैं.
दशानन लंकाधिपति रावण का भाई विभीषण रामायण का अकेला ऐसा पात्र है, जिन्हें लेकर भारतीय समाज दो धड़ों में बंटा देखा जा सकता है. एक उनके पक्ष में इसलिए है क्योंकि उन्होंने धर्म यानी राम का साथ देकर धर्म की अधर्म पर विजय दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई, जबकि समाज का दूसरा घटक उन्हें संकटकाल में देश और देश के राजा का साथ छोड़ने और भाई की हत्या का मुख्य दोषी मानते हुए उनकी भर्त्सना करता है, जिसकी वजह से आज भी कोई माता-पिता अपनी संतान का नाम विभिषण नहीं रखते. यह भी पढ़ें: Vijayadashami 2020: दशहरा के शुभ दिन से जुड़ी हैं कई लोकमान्यताएं! जानें क्यों विजयादशमी पर नीलकंठ को देखना होता है शुभ, क्यों की जाती है शमी और शस्त्रों एवं वाहनों की पूजा
 
विभीषण का चरित्र चित्रण करते समय हमें समाज में प्रसारित और प्रचारित उनके प्रति नकारात्मक विचारों का विश्लेषण करना आवश्यक होगा कि क्या वाकई वे देशद्रोही थे? और अपने भाई की मौत के दोषी थे? और क्या यह सब उन्होंने लंका का राजपाट हासिल करने के लिए ? इन प्रश्नों पर एक प्रतिप्रश्न उठता है कि क्या एक 'राजा' को 'राष्ट्र' समझना उचित होगा? खासकर तब जब वह घमंडी, निरंकुश, अधर्मी, अभिमानी, राष्ट्र विध्वंशक और अनीति के रास्ते चल रहा हो? आम नागरिकों की तरह वह भी राष्ट्र की ईकाई से ज्यादा कुछ नहीं था. रावण ने यह जानते हुए भी कि श्रीराम आम इंसान नहीं हैं, विष्णु द्वारा अवतरित हैं, उन पर विजय पाना आसान नहीं है, इसके बावजूद अपनी अहम के लिए उसने देश को युद्ध की महाविभीषिका की ओर ढकेल दिया. रावण की जगह कोई और राजा
होता तो उसे कारागार अथवा मृत्युदण्ड का भागीदार बनना पड़ता.
क्या कहता है विभीषण का पक्ष?
भरी सभा में अपने ही भाई द्वारा अपमान करके देश से बाहर निकाले गये विभीषण ने कभी भी अपने राष्ट्र यानी लंका का त्याग नहीं किया. उन्होंने देश को पतन की ओर ले जा रहे राजा की सोच का विरोध किया था. अगर उन्हें अपना देश प्रिय नहीं होता तो वे वहां से अकेले नहीं पत्नी और पुत्रों के साथ कहीं जंगल-पहाड़ पर जाकर बसते और नये सिरे से अपने राज्य का गठन करते. अगर उन्हें लंका की जनता की चिंता नहीं होती तो वे श्रीराम से हर दिन यह प्रार्थना नहीं करते कि 'प्रभु निर्दोष जनता को नुकसान नहीं हो यानी उन्हें लंका और लंकावासियों से मोह था. वाल्मीकि रामायण से लेकर  श्रीरामचरितमानस तक किसी भी प्रसंग में विभीषण ने लंका-विरोधी बात नहीं की. विभीषण जानते थे कि राम के साथ रहकर वे लंका को न्यूनतम हानि से बचा सकते थे. इसीलिए अपने परिवार को वहीं छोड़कर लंका को बचाने के लिए श्रीराम की शरण में पहुंचे थे. यह भी पढ़ें: Dussehra 2020: कब है दशहरा? जानें 25 या 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी विजयादशमी, क्या है शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पारंपरिक कथा
विभीषण राज नहीं खोलते तो क्या रावण बच जाता?
यहां यह तर्क उठता है कि रावण एवं राक्षसों के सारे भेद श्रीराम को बताकर उन्होंने लंका की किस तरह से भलाई की? दरअसल रावण ने पृथ्वी से लेकर आकाश पाताल और देवलोक के देवताओं तक को अपना दुश्मन बना लिया था. युद्धभूमि में अगर विभीषण ने रावण के पतन की वजह नहीं बताई होती तो यह कार्य रावण के प्रबल शत्रु देवता कर देते. यानी विभीषण की अनुपस्थिति में भी रावण का संहार भगवान श्रीराम के हाथ होना ही था, और अगर ऐसा होता तो रावण के बाद लंका पर अयोध्या अथवा किष्किंधा का राज स्थापित होता. ऐसे में सबसे ज्यादा संकट लंका की जनता को सहन करना पड़ता. उनका अस्तित्व ही मिट जाता. इसलिए राम के पक्ष में जाकर विभीषण ने लंका की शक्ति, सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की. ऐसे में तर्कों और तथ्यों के बजाय भावनाओं में आकर विभीषण के चरित्र का अंकन करेंगे तो निश्चित रूप से वे राष्ट्रद्रोही ही साबित होंगे. लेकिन नीति और नियति के साथ, अपने देश की जनता के प्रति अगाध प्रेम को देखते हुए मूल्यांकन किया जायेगा तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लंका में उनके जैसा राष्ट्रभक्त कोई और नहीं हो सकता.