Dussehra 2020: भारत भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों वाला देश है. ये विभिन्नताएं धर्मों और भाषाओं से लेकर खान-पान, तीज-त्यौहार और रीति-रिवाजों तक में नजर आती है. विजयादशमी (Vijayadashami) का पर्व हर वर्ष आश्विन मास के शुक्लपक्ष की दशमी के दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 2020 में विजयादशमी जिसे दशहरा (Dussehra) भी कहते हैं 25 अक्टूबर को मनाया जायेगा. इस पर्व का मूल भाव यूं तो धर्म की अधर्म पर विजय है, लेकिन विजयादशमी की मूल परंपरा के साथ-साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में छोटी-बड़ी तमाम किंवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं, मसलन नीलकंठ पक्षी (Neelkantha) का दर्शन, सोना पात्रों का आदान-प्रदान, शमी वृक्ष (Shami) का पूजन और आयुधों तथा गाड़ियों की विशेष पूजा की जाती है. इन किंवदंतियों के पीछे के तर्क क्या हैं, आज हम इसी विषय पर बात करेंगे.
शमी वृक्ष का पूजन
हमारे देश में विभिन्न पर्वों पर पशु-पक्षियों, आयुधों, नदी-तालाबों के साथ-साथ वृक्षों की पूजा की भी पुरानी परंपरा रही है. इन्हीं परंपराओं के तहत दशहरे के दिन हम शमी वृक्ष की भी पूजा करते हैं. शमी पूजा का जिक्र हमारे पौराणिक कथाओं में भी उल्लेखित है. कहा जाता है कि महाभारत काल में अपने वनवास काल के अज्ञातवास के दिनों में खुद की पहचान मिटाने के लिए पांडवों ने शमी के वृक्ष के भीतर अपने सभी अस्त्र-शस्त्र छिपा दिए थे. पांडव कौरवों पर विजय के पीछे शमी की भी अहम भूमिका मानते हैं और यह संयोग ही था कि विजयादशमी के दिन ही कौरवों पर पांडवों ने विजय हासिल की थी, इसीलिए विजयदशमी के दिन शमी का पूजन किया जाता है.
इस दिन घर की पूर्व दिशा में शमी की टहनी को प्रतिष्ठित कर उसकी विधि पूर्वक पूजा की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से पांडव की तरह हर व्यक्ति के जीवन में एवं घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है. महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. कहा तो ये भी जाता है कि जिसके घर के सामने शमी का वृक्ष हो, उस घर के सदस्यों पर शनि के अशुभ प्रभाव नहीं पड़ते, बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर सकतीं. यह भी पढ़ें: Dussehra 2020: कब है दशहरा? जानें 25 या 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी विजयादशमी, क्या है शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पारंपरिक कथा
नीलकंठ पक्षी के दर्शन
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है. मान्यता है कि विजयादशमी के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण पर विजय पाने के लिए भगवान श्रीराम ने सबसे पहले नीलकंठ का दर्शन किया था. नीलकंठ का दर्शन करने से भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन नीलकंठ का दर्शन होने से जीवन में धन-धान्य, भाग्योदय तथा सुख-समृद्धि आती है.
पान खाने की पंरपरा
हमारे देश में पान का बीड़ा खाना शौर्यता का प्रतीक माना जाता है. पुराने जमाने में जब राजा महाराजा युद्ध के लिये प्रस्थान करते थे, तो रानियां उन्हें पान का बीड़ा खिलाकर उनके विजयी होकर लौटने की कामना करती थीं. लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर लौटने की खुशी में दशहरा के दिन पान खाने की पुरानी परंपरा आज भी जारी है. चूंकि श्रीराम की इस विजय में भगवान हनुमान की विशिष्ठ भूमिका रही है, इसलिए दशहरा के दिन हनुमान जी को मीठी बूंदी के भोग के साथ पान भी चढाया जाता है.
सोना पत्ती का आदान प्रदान कर देते हैं दशहरे की बधाइयां
शमी के पत्ते को ही सोना पत्ती भी कहते हैं. मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पूर्व शमी के पेड़ के सामने शीश झुकाकर उसके पत्ते को स्पर्श करते हुए विजय की कामना की थी. इससे इस पत्ती का महत्व निरंतर बढ़ता गया. दशहरा के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का दहन करने के बाद एक दूसरे को सोना पत्ता देकर दशहरे की शुभ कामनाएं दी जाती हैं. इससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है. यह रिवाज सदियों से चला आ रहा है. शमी का उल्लेख विक्रमादित्य काल के समय भी मिलता है. कुसुमलता नामक ग्रंथ में उल्लेखित है कि जिस वर्ष शमी का वृक्ष ज्यादा फलता-फूलता है उस वर्ष सूखे की स्थिति बनती है. इसलिए इस वृक्ष को कृषि विपत्ति का पूर्व संकेत देने के कारण इसकी महत्ता बढ़ जाती है. यह भी पढ़ें: Navratri 2020: नवरात्रि में इन नौ पौधों को लगाना होता है बेहद शुभ, मिलती है मां दुर्गा की विशेष कृपा और पर्यावरण की भी होती है रक्षा
अस्त्र-शस्त्र एवं वाहनों की पूजा
सनातन धर्म में दशहरा का दिन बहुत शुभ माना गया है, इसीलिए इस दिन अधिकांश लोग शस्त्र-शास्त्र, आभूषणों और वाहनों की खरीदारी और पूजा करते हैं. पूजा नये वाहनों की ही नहीं बल्कि पुराने वाहनों की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि इससे वाहन से अशुभ साया दूर होता है और उसकी शुभता में वृद्धि होती है. अर्थात वह आपके लिए अनुकूल होता है. उसकी चोरी, खराबी, अड़चनें आदि से छुटकारा मिलता है. इसी तरह घर के अस्त्र-शस्त्र की भी पूजा होती है. इस दिन क्षत्रिय समाज के लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं, मान्यता है कि यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीते के रूप मनाया जाता है, इसीलिए इस दिन शास्त्रों की पूजा करके भगवान राम को भी याद किया जाता है.