![मौजूदा कांग्रेस विधायक के सामने विजयवर्गीय खुद को अगले सीएम के तौर पर कर रहे प्रोजेक्ट मौजूदा कांग्रेस विधायक के सामने विजयवर्गीय खुद को अगले सीएम के तौर पर कर रहे प्रोजेक्ट](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2023/08/Kailash-Vijayvargiya--380x214.jpg)
भोपाल, 22 अक्टूबर : भले ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपना मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से परहेज किया है, लेकिन इसके राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रचार के दौरान पहले से ही खुद को इस पद के लिए पेश करना शुरू कर दिया है. सार्वजनिक बैठकों के दौरान विजयवर्गीय, जिन्हें इंदौर-1 से मैदान में उतारा गया है, अक्सर यह कहते हुए सुना जा सकता है, “मैं सिर्फ विधायक बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा हूं. पार्टी मुझे कोई बड़ी जिम्मेदारी देगी.” इंदौर जिले की विभिन्न सीटों से 1990 से 2013 के बीच लगातार छह विधानसभा चुनाव जीतने वाले 67 वर्षीय विजयवर्गीय को 17 नवंबर को होने वाले चुनाव में कांग्रेस के मौजूदा विधायक संजय शुक्ला के खिलाफ मैदान में उतारा गया है.
हालांकि, राजनीतिक हलकों में लोग विजयवर्गीय और शुक्ला के बीच करीबी रिश्तों से वाकिफ हैं, इसलिए इन दोनों नेताओं के बीच मुकाबला चर्चा का विषय बना है.पिछले रविवार को कांग्रेस द्वारा अपनी पहली सूची घोषित करने से काफी पहले भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने विजयवर्गीय को इंदौर-1 सीट से उम्मीदवार बनाया था. उस समय तक, कांग्रेस के भीतर
अटकलें थीं कि शुक्ला को इंदौर जिले की किसी अन्य सीट पर स्थानांतरित किया जा सकता है. लेकिन राज्य कांग्रेस नेतृत्व ने शुक्ला पर भरोसा जताया और उन्हें बरकरार रखा. 2018 के चुनावों में, शुक्ला इंदौर के शहरी क्षेत्रों की सभी पांच सीटों में से कांग्रेस के एकमात्र विजेता उम्मीदवार थे. बाकी चार सीटें बीजेपी के खाते में गईं. उस चुनाव में शुक्ला ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार भाजपा के सुदर्शन गुप्ता को 8,163 वोटों से हराया था. यह भी पढ़ें : UP: योगी सरकार के रडार पर 4000 मदरसे, कट्टरपंथ-धर्मांतरण के लिए अवैध विदेशी फंडिंग, जांच के लिए SIT गठित
इंदौर स्थित एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा, “पार्टी ने शुक्ला को बरकरार रखा है, क्योंकि वह विजयवर्गीय को चुनौती देने के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार हैं, वह उनकी ताकत और कमजोरियों को जानते हैं. मुकाबला बहुत कांटे का होगा और विजयवर्गीय भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं, यही कारण है कि वह बड़े पैमाने पर सार्वजनिक बैठकें कर रहे हैं. कांग्रेस के सूत्रों ने यह भी कहा कि पार्टी ने विजयवर्गीय को घेरने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है, जो आखिरी समय में उन्हें आश्चर्यचकित कर देगी. इसके अलावा कांग्रेस इंदौर-1 के जातीय समीकरण पर भी फोकस कर रही है, जो इस चुनाव में अहम फैक्टर होगा. अपना दूसरा विधानसभा चुनाव लड़ रहे शुक्ला ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. ओबीसी मतदाताओं को लुभाने की अपनी नई रणनीति के साथ कांग्रेस यादव मतदाताओं का अधिकतम समर्थन हासिल करने की कोशिश करेगी. विशेष रूप से, इंदौर-1 विधानसभा सीट पर चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदाय के सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होने की उम्मीद है,
शुक्ला के करीबी सूत्रों ने कहा कि इस विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरणों को संतुलित करने के लिए कांग्रेस द्वारा एक नई योजना तैयार की जा रही है. इसके साथ ही विपक्षी दल के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार बैठकों की भी तैयारी की जा रही है. सूत्रों ने कहा कि शुक्ला और विजयवर्गीय ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी रणनीति बदल दी है. शुक्ला खुद को इंदौर-1 के स्थानीय निवासी के रूप में पेश कर रहे हैं और मतदाताओं को याद दिला रहे हैं कि उन्होंने हमेशा लोगों की मदद की है, विजयवर्गीय, जो आमतौर पर एक आत्मविश्वासी और शांतचित्त नेता हैं, भी अब हर दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उन्हें इंदौर-1 से उम्मीदवार बनाए जाने के एक दिन बाद, विजयवर्गीय को यह कहते हुए सुना गया, "वोट के लिए लोगों के सामने कौन हाथ जोड़ेगा." लेकिन, अब मुकाबला कांटे का होने का एहसास होने पर उन्होंने न चाहते हुए भी ऐसा करना शुरू कर दिया है.
सार्वजनिक कार्यक्रमों में भक्ति गीत गाने के शौक के लिए जाने जाने वाले विजयवर्गीय इंदौर-1 के तेजी से विकास और नशीली दवाओं के व्यापार पर अंकुश लगाने के वादे के साथ मतदाताओं का विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी ओर, पिछले पांच वर्षों में कई धार्मिक आयोजनों और भंडारों (सार्वजनिक भोज) का आयोजन करने वाले शुक्ला दावा कर रहे हैं कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के साथ हर सुख-दुख में खड़े रहे हैं. चूंकि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद की दौड़ खुली रखी है, इसलिए इस चुनाव में भाजपा के भीतर की आंतरिक लड़ाई से कांग्रेस को भी फायदा होगा, क्योंकि भगवा पार्टी के कई बड़े नाम मैदान में हैं, जिन्हें लगता है कि विजयवर्गीय दावेदारी पेश कर सकते हैं. अगर भाजपा राज्य में सत्ता में वापस आती है, तो उनके लिए चुनौती है.