नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट 11 दिसंबर सोमवार को अनुच्छेद 370 (Article 370) को निरस्त करने के मामले में अपना फैसला सुनाएगा. सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ (Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) की अध्यक्षता वाली जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्यकांत की संविधान पीठ पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) राज्य को दिए गए विशेष दर्जे को छीनने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले 2019 के राष्ट्रपति के आदेश की संवैधानिकता पर फैसला करेंगे. 5 जजों की संविधान पीठ ने 5 सितंबर को दोनों पक्षों की मौखिक दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बदल रहा कश्मीर, 33 साल में पहली बार बिना किसी प्रतिबंध के मनाया जा रहा स्वतंत्रता दिवस (Watch Videos)
सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी. इन याचिकाओं में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती दी गई है. अनुच्छेद 370 के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.
अनुच्छेद 370 क्या था और इसे कैसे हटाया गया?
भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 शामिल किया गया था. यह जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग रखता था. इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार था कि वो अपना संविधान स्वयं तैयार करे. इसके अलावा संसद को अगर राज्य में कोई कानून लाना है तो इसके लिए यहां की सरकार की मंजूरी लेनी होती थी. इस धारा के तहत पहले जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज भी अलग था और यहां के लोगों के लिए राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था. दूसरे राज्य के लोग जम्मू कश्मीर में कोई जमीन या प्रापर्टी नहीं खरीद सकते थे.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना नरेंद्र मोदी की सरकार का ऐतिहासिक फैसला माना जाता है. पांच अगस्त 2019 इसे काफी हंगामे के बीच पेश किया गया था और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद यह फैसला लागू किया गया.
मोदी सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा खत्म कर दिया था. अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया, जिसमें से एक जम्मू-कश्मीर तो दूसरा लद्दाख बना.