नई दिल्ली. 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है...मैं इसे लेकर रहूंगा' का नारा देन वाले और अंग्रेजो की नींद उड़ाने वाले स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूलों में 8वीं कक्षा की एक बुक में 'आतंक का पितामह' बताया गया है. वहीं इस मामले ने जैसे ही तूल पकड़ा तो प्रकाशक ने इसे अनुवाद की गलती मानते हुए सुधार की बात कही है. तो दूसरी तरफ कांग्रेस अब इस पुस्तक को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग कर रही है.
दूसरी तरफ बाल गंगाधर तिलक को 'आतंक का पितामह' बताए जाने पर राजस्थान सरकार की खूब किरकिरी हो रही है. बता दें कि पुस्तक के पेज संख्या 267 पर 22वें अध्याय में स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के बारे में लिखा गया है कि राष्ट्रीय आंदोलन का रास्ता तिलक ने दिखाया था, इसलिये उन्हें आतंकवाद का जनक कहा जाता है. 18वीं और 19वीं शताब्दी के राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में तिलक के बारे में पुस्तक में लिखा गया है. पुस्तक में तिलक के हवाले से बताया गया है कि ब्रिटिश अधिकारियों से प्रार्थना करने मात्र से कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता. ऐसे में तिलक ने शिवाजी और गणपति महोत्सवों के जरिये देश में अनूठे तरीके से जागरूकता फैलाने का कार्य किया.
A reference book for Class 8 #SocialStudies has described #freedomfighter #BalGangadharTilak as the 'father of terrorism'.
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— ANI Digital (@ani_digital) May 12, 2018
बाल गंगाधर तिलक
महानायक तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को शिवाजी की कर्मभूमि महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश के रत्नागिरि नामक स्थान पर हुआ था. भारत की गुलामी के दौरान अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले लोकमान्य तिलक ने देश को स्वतंत्र कराने में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया. लोकमान्य तिलक का जब राजनैतिक पदार्पण हुआ तब देश में राजनैतिक अंधकार छाया हुआ था. दमन और अत्याचारों के काले मेघों से देश आच्छादित था। जनसाधारण में इतना दासत्व उत्पन्न हो गया था कि स्वराज और स्वतंत्रता का ध्यान तक उनके मस्तिष्क में नहीं था। उस वक्त आम जनता में इतना साहस न था कि वह अपने मुंह से स्वराज का नाम निकाले. ऐसे कठिन समय में लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता के युद्ध की बागडोर संभाली. साल 1891 में उन्होंने केसरी और मराठा दोनों ही पत्रों का संपूर्ण भार स्वयं खरीदकर अब इन्हें स्वतंत्र रूप से प्रकाशित करना शुरू कर दिया. केसरी के माध्यम से समाज में होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने पर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था.