श्रमिक स्पेशल ट्रेनों ने देश के श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने का जो बीड़ा उठाया, उसमें लोगों के सहयोग की बहुत जरूरत है. लोगों को यह समझना होगा कि जिन कॉन्ट्रैक्टरों की सहायता रेलवे लेता है, उसके खुद के पास श्रमिकों की कमी है. उसके बावजूद 12 लाख रेलकर्मी सभी को सुरक्षित घर पहुंचाने में जुटे हुए हैं. इस बीच ट्रेन में 30 से अधिक महिलाओं का प्रसव होने की घटना पर रेलवे ने गर्भवती महिलाओं (Pregnant Womens) को ट्रेन का सफर नहीं करने की अपील की है. साथ ही वृद्धों और जो लोग किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, उनसे भी रेलवे ने श्रमिक ट्रेनों में सफर नहीं करने की अपील की है. साथ ही सभी से धैर्य रखने को कहा है.
रेलवे बोर्ड के आध्यक्ष विनोद कुमार यादव ने शुक्रवार को प्रेसवार्ता में कहा कि जिन महिलाओं की ट्रेन में डिलीवरी हुई उनकी प्रेगनेंसी एडवांस स्टेज में थीं. जाहिर है उनकी मजबूरी रही होगी. लेकिन रेलवे ने उनकी हर संभव मदद की. भारतीय रेल के डॉक्टर व नर्सें मौके पर पहुंचीं और डिलीवरी करायी. बाद में अस्पताल में भर्ती कराने में भी मदद की. ट्रेनों में अव्यवस्था की खबरों पर विनोद कुमार ने कहा, "यह एक वैश्विक महामारी का समय है, पूरे विश्व के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं. इस दौरान श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए रेलवे प्रतिबद्ध है। इस काम में रेलवे के 12 लाख लोग इस काम में जुटे हुए हैं. रेलवे ज्यादा से ज्यादा ट्रेनों का संचालन दोपहर 2 बजे से रात्रि 12 बजे के बीच कर रहा है, ताकि लोगों को यात्रा करने में दिक्कत नहीं हो. यह भी पढ़े: बड़ी लापरवाही: स्पेशल श्रमिक ट्रेन से वड़ोदरा से भेजे गए 1908 प्रवासी मजदूर, लेकिन बांदा पहुंचने पर 338 हो गए कम
ट्रेनों को डायवर्ट करने व अधिक समय लगने पर रेलवे का जवाब
ट्रेनों को डायवर्ट किये जाने के मामले पर उन्होंने बताया कि 1 से 19 मई और 25 से 28 मई के बीच एक भी ट्रेन डायवर्ट नहीं हुई। वहीं 20 से 24 मई के बीच कुल 71 ट्रेनें डायवर्ट करनी पड़ीं। वो भी इसलिए क्योंकि इस दौरान यूपी और बिहार से ज्यादा डिमांड आ गई थी। देश के दक्षिण व पश्चिमी हिस्से से आने वाली 90 प्रतिशत ट्रेनें यूपी व बिहार के लिए जाने वाली थीं, जिस वजह से ट्रैफिक कंजेशन हुआ. उन्होंने बताया कि कुल 3840 में से केवल 71 ट्रेनें डायवर्ट की गईं. क्योंकि इस दौरान हम राज्य सरकारों ने जो मांग की थी उसे पूरा करना चाहते थे.
हाल ही में खबरें आयीं कि पूर्वोत्तर राज्यों को जाने वाली कई ट्रेनों को पहुंचने में चार दिन का समय लगा। इस पर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि यह खबर पूरी तरह गलत है. 3840 ट्रेनों में से केवल तीन ऐसी ट्रेनें थीं जिनको गंतव्य तक पहुंने में 72 घंटों से अधिक का समय लगा. ये ट्रेनें पूर्वोत्तर की ओर जा रही थीं, और लेट होने का कारण असम में हुआ लैंडस्लाइड था.दूसरी बात ये ट्रेनें पहले से ही लंबी दूरी की थीं। इसके अलावा गैस लीक की वजह से ट्रेनें विलंब करनी पड़ीं.
भोजन पानी मुहैया कराने पर रेलवे का जवाब
विनोद कुमार यादव ने कहा कि आम तौर पर आईआरसीटीसी कॉट्रैक्टरों के माध्यम से भोजन की व्यवस्था करता है. चूंकि कॉन्ट्रैक्टरों के पास भी श्रमिकों की कमी हो गई है, जिसके चलते स्काउट गाइड, एनसीसी के कैडेट्स की मदद ली जा रही है. और तो और रेलवे कर्मियों के परिवारों से महिलाएं भी आगे आयीं और कम्युनिटी किचन स्थापित कर भोजन पकाने में मदद की. आम दिनों में क्यों नहीं होता कंजेशन? इस पर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि आम दिनों में करीब तीन हजार से अधिक एक्सप्रेस ट्रेनें और चार हजार से अधिक पैसेंजर ट्रेनें देश के 70 हजार किलोमीटर के नेटवर्क पर चलती हैं.
वर्तमान में ट्रेनें चुनिंदा स्टेशनों के बीच ही चल रही हैं. दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की सबसे ज्यादा डिमांड यूपी और बिहार से आयी. यानी देश के सभी कोनों से चलने वाली ट्रेनों में से 90 प्रतिशत यूपी और बिहार जाने वाली हैं। इस वजह से जंक्शन पर कंजेशन बढ़ा. और यह भी समझना होगा कि कंजेशन के वक्त रेलवे ट्रेन के लिए वैकल्पिक रूट चुनता है। वो पड़ोसी राज्यों से होता हुआ भी जा सकता है.