गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण का बिल राज्यसभा में भी पास हो गया है. विपक्ष के भारी विरोध के बाद मुद्दे पर करीब 8 घंटे की जोरदार बहस चली. इस बहस के बाद वोटिंग हुई. मतदान में बिल के पक्ष में 165 वोट पड़े, वहीं बिल के विरोध में मात्र 7 वोट पड़े. अब ये बिल राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए जाएगा. उपसभापति ने सदन को बताया कि बिल पर करीब 10 घंटे तक चर्चा हुआ जबकि इसके लिए 8 घंटे का वक्त तय किया गया था. बहस के दौरान विपक्ष ने मांग की कि संविधान संशोधन विधेयक को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. विपक्ष ने कहा कि हम बिल के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम बिल को पेश करने के सरकार के तरीके के खिलाफ हैं.
बता दें कि यह विधेयक लोकसभा में मंगलवार को पारित हुआ. लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 323 वोट और विरोध में महज तीन वोट पड़े. लोकसभा के बिल आसानी से बहुमत के साथ पास हो गया था. राज्यसभा में इस विधेयक पर बुधवार को करीब 10 घंटे तक जमकर बहस हुई. राज्यसभा में उपसभापति ने शीतकालीन सत्र में हुए कामकाज का ब्यौरा देते हुए सदन की कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया है. यह भी पढ़ें- सवर्ण आरक्षण पर कपिल सिब्बल ने कहा- सालाना 2.50 लाख से ज्यादा कमाने वाले टैक्स देते हैं तो 8 लाख वाले गरीब कैसे
Parliament passes bill granting 10% quota to economically-weaker sections of general category
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— ANI Digital (@ani_digital) January 9, 2019
राज्यसभा में सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि अच्छे मन से और अच्छी नीति के साथ नरेंद्र मोदी की सरकार यह बिल लेकर आ रही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस बताए कि वो कैसे इस बिल को लाती, क्योंकि सवर्णों को आरक्षण देने का वादा तो उसने भी किया था. मंत्री ने कहा कि करीब 36 लोगों ने इस बिल के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं और 2-3 दलों को छोड़कर बाकी सभी ने इसका समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि देश की परंपरा है कि उच्च वर्ग के लोगों ने पिछड़ो को आरक्षण देने का काम किया आज पिछड़ी जाति के होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सवर्णों को आरक्षण देने का काम कर रहे हैं. यह भी पढ़ें- सवर्ण आरक्षण पर AAP सांसद संजय सिंह ने कहा- दलित आरक्षण खत्म कर देगा ये बिल
सवर्ण आरक्षण पर बीजेपी को विरोध का काफी सामना करना पड़ा. विपक्षियों ने भले इस बिल को पास करवाने भी बीजेपी का साथ दिया लेकिन वे इसे चुनावी जुमला बताते रहे. विरोधियों का मानना है कि सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण लाने की सरकार की योजना, संविधान के मूल सिद्धांतों के विपरीत है. संविधान ने केवल उन जातियों को आरक्षण दिया है कि जिन्हें जातीय आधार पर सदियों से सामाजिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा.'