लखनऊ: अनुसूचित जाति-जनजाति (SC/ST) अधिनियम मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा आदेश दिया है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में अपराध सात वर्ष से कम सजा योग्य हो, उनमें गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट (SC) के 2014 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि 7 साल से कम सजा के मामलों में आरोपी को गिरफ्तारी से पहले नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया जाए. आरोपित अगर नोटिस की शर्तों का पालन करता है तो उसे विवेचना के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जाएगा.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए का पालन करने का आदेश दिया है. सीधे गिरफ्तारी तब ही संभव है जब यह आवश्यक हो. यह भी पढ़े-SC/ST ऐक्ट के विरोध में सवर्णों ने गांव में लगाया पोस्टर, लिखा- वोट मांगकर शर्मिंदा ना करें
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी से पहले अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 2014 के फैसले का पालन किया जाए. इसी के साथ कोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया.
क्या है मामला?
गोंडा जिले की अनुसूचित जाति की शिवराजी देवी ने 19 अगस्त 2018 को गोंडा के खोड़ारे थाने में याची राजेश मिश्रा और अन्य तीन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. आरोप लगाया कि विपक्षीगण पुरानी रंजिश को लेकर उसके घर में घुस आए फिर उसे और उसकी बेटी को जातिसूचक गालियां दी. लात-घूंसों व लाठी-डंडे से पीटा. एफआईआर (FIR) के खिलाफ याचिका करते हुए मिश्रा व तीन अन्य ने इसे खारिज करने की प्रार्थना की थी.
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने अनरेश कुमार मामले में फैसला दिया था कि यदि किसी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में अपराध की अधिकतम सजा सात साल तक की है, तो ऐसे मामले में सीआरपीसी (CRPC) 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन किया जाएगा. जांचकर्ता को पहले सुनिश्चित करना होगा कि गिरफ्तारी अपरिहार्य है, अन्यथा न्यायिक मजिस्ट्रेट गिरफ्तार व्यक्ति की न्यायिक रिमांड नहीं लेगा.