मणिपुर के हिंसा पीड़ितों पर अब जबरन उगाही की मार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जातीय हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर के लोग बीते कुछ महीनों से जबरन उगाही से परेशान हो रहे हैं. उग्रवादी गुट आम लोगों, सरकारी नौकरी करने वालों और राजनेताओं से जबरन उगाही में जुटे हैं.बीते छह महीने के दौरान जबरन उगाही करने के आरोप में अकेले इंफाल घाटी से ही करीब ढाई सौ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. भारत की सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि दान के नाम पर हो रही इस जबरन उगाही का इस्तेमाल हिंसा भड़काने और कुकी समुदाय से बदला लेने के लिए किया जा रहा है.

तीन मई, 2023 से ही यह पर्वतीय राज्य मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा का शिकार रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हिंसा में अब तक 205 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि गैर-सरकारी आंकड़ों में यह संख्या इससे कहीं ज्यादा है. इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापन के शिकार हैं. अब भी हजारों लोग राहत शिविरों और पड़ोसी राज्यों में रहने पर मजबूर हैं.

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जबरन उगाही के बढ़ते मामले

मणिपुर में वर्ष 2023 की मई में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद जबरन उगाही के मामले तेजी से बढ़े हैं. उसके बाद सरकार को आम लोगों के अलावा शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी अधिकारियों की ओर से लगातार उग्रवादी गुटों की ओर से जबरन वसूली की शिकायतें मिल रही हैं. राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) की ओर से लोगों को बाकायदा पत्र भेज कर समुदाय की रक्षा के नाम पर दान मांगा जाता है. दान देने से इंकार की स्थिति में गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी जाती है.

इन धमकियों के आगे घुटने टेकते हुए राज्य के कई नेताओं और मंत्रियों ने भी संगठन को मोटी रकम दी है. पैसों के लेन-देन की जांच करने वाली ईडी ने भी अपनी चार्जशीट में यह आरोप लगाया है. राज्य के आईजी (पुलिस) के. कबीब बताते हैं, "बीते छह महीने में कम से कम ढाई सौ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें कई भूमिगत संगठनों के सदस्य शामिल हैं." मणिपुर को भारत से अलग करने के मकसद के साथ वर्ष 1964 में उग्रवादी संगठन यूएनएलएफ का गठन किया गया था.

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एंटी-एक्सटॉर्शन सेल

जबरन वसूली के मामलों की तादाद तेजी से बढ़ने के कारण सरकार ने इससे निपटने और आम लोगों में भरोसा पैदा करने के लिए अब एक एंटी-एक्सटॉर्शन सेल का गठन किया है. इनमें राज्य पुलिस से लेकर केंद्रीय बलों और असम राइफल्स के प्रतिनिधि शामिल होंगे. सरकार ने ऐसे मामलों की शिकायत के लिए एक टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है.

राज्य के मुख्य सचिव प्रशांत कुमार सिंह ने राजधानी इंफाल में जारी एक बयान में कहा है कि सरकारी अधिकारियों से लेकर आम लोगों तक को जबरन उगाही के सिलसिले में लगातार धमकियां मिलने की शिकायतें बढ़ी हैं. उनका कहना था, "लोगों को फोन, पत्र और ई-मेल के जरिए पैसे देने के लिए धमकाया जा रहा है. इन मामलों से निपटने और आम लोगो की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही इस सेल का गठन किया गया है. यह राज्य पुलिस के साथ तालमेल बनाते हुए काम करेगा."

मुख्य सचिव ने लोगों से असुरक्षित इलाकों में जाने से बचने की भी सलाह दी है. आईजी (पुलिस) के. कबीब बताते हैं, "लोग टोल-फ्री नंबर पर जबरन उगाही के मामलों की जानकारी दे सकते हैं. इससे उनका परिचय गोपनीय बना रहेगा. इस समस्या पर काबू पाने के लिए आम लोगों को भी आगे आना होगा."

नेता नहीं मानते कि पैसा दिया है

मणिपुर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "हाल के महीनों में सशस्त्र संगठनों में स्वयंसेवकों और लड़ाकों के तौर पर खासकर युवाओं की भर्ती के मामले भी तेजी से बढ़े हैं. यही लोग जबरन उगाही का काम करते हैं. इंफाल घाटी में सक्रिय ऐसे संगठन कुकी उग्रवादियों से मैतेई लोगों की सुरक्षा के नाम पर यह पैसा वसूल रहे हैं. जो लोग पैसा नहीं देते उन पर परिवार के युवा सदस्य को संगठन में भर्ती करने का दबाव डाला जाता है."

राज्य में यूएनएलएफ काडरों की ओर से मनी लांड्रिंग की जांच करने वाली ईडी ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि हिंसा शुरू होने के कुछ महीनों बाद ही यूएनएलएफ समेत विभिन्न मैतेई संगठनों ने राजनेताओं और शैक्षणिक संस्थानों के साथ ही व्यापारिक घरानों से मोटी उगाही शुरू कर दी. उन पैसों का इस्तेमाल काडरों को ट्रेनिंग देने और हथियार खरीदने के लिए किया गया था. किसी भी राजनेता ने उग्रवादियों को पैसे देने का आरोप स्वीकार नहीं किया है, लेकिन ईडी के पास इसके डिजिटल सबूत हैं.

ईडी के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह संगठन लोगों से मैतेई समुदाय की सुरक्षा के नाम पर वसूली करते रहे हैं. लेकिन असल में इसका इस्तेमाल जातीय हिंसा को बढ़ावा देने के लिए किया गया. यूएनएलएफ काडरों ने नेशनल हाईवे पर अवैध टोल टैक्स बना कर भी करोड़ों की रकम वसूल की है."

ईडी ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से दर्ज एक मामले के आधार पर जुलाई, 2023 में जांच शुरू की थी. यह मामला पूर्वोत्तर में सक्रिय म्यांमार में बसे उग्रवादी संगठनों की ओर से 'मणिपुर में अशांति' फैलाने और 'भारत सरकार के खिलाफ युद्ध' का एलान करने से संबंधित एक अंतरराष्ट्रीय साजिश से संबंधित है.

हथियारों के लाइसेंस के आवेदनों में तेजी

उग्रवादियों की बढ़ती धमकियों के कारण बीते साल से राज्य में हथियारों के लाइसेंस के आवेदन की तादाद भी आश्चर्यजनक रूप से कई गुनी बढ़ गई है. एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "पहले जहां महीने में मुश्किल से 50 आवेदन मिलते थे, वहीं अब औसतन चार सौ से ज्यादा आवेदन मिल रहे हैं."

दरअसल, असुरक्षा की बढ़ती भावना के कारण अब वो लोग भी लाइसेंस के लिए आवेदन कर रहे हैं जिन्होंने पहले कभी इस बारे में नहीं सोचा था. अपने आवेदन में किसी ने जबरन उगाही से बचने को वजह बताया है तो किसी ने आत्मरक्षा को.

वैसे, आवेदकों की तादाद बढ़ने के बावजूद सरकार बहुत सोच-समझ कर ही लाइसेंस जारी कर रही है. डर है कि कहीं ऐसे हथियार उग्रवादी गुटों तक नहीं पहुंच जाएं. बीते छह महीनों के दौरान मुश्किल से करीब सौ लाइसेंस ही जारी किए गए हैं.

मणिपुर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी डीडब्ल्यू को बताते हैं, "वर्ष 2023 में हिंसा की शुरुआत से पहले राज्य में जबरन उगाही के मामले काफी कम हो गए थे. लेकिन अब इसने नब्बे के दशक के चरम उग्रवाद के दौर को भी पीछे छोड़ दिया है. इसी वजह से अब सरकारी अधिकारियों से लेकर किसान तक हथियार के लाइसेंस के लिए आवेदन कर रहे हैं."