लॉकडाउन और कोरोना महामारी के बीच एक अच्छी खबर लोगों के लिए सबसे बड़ी इम्युनिटी है. यकीन कीजिए कश्मीर में कोरोना महामारी को लेकर ठप्प पड़े कारोबार के बीच खबर आयी है कि कश्मीरी सैफरन यानी जाफ़रान को जीआई टैग मिल गया है. यानी दुनिया भर में मसाला उद्योग से जुड़े कारोबार में कश्मीर की शान में इजाफा हुआ है. जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने बाकायदा सर्टिफिकेट जारी कर कश्मीरी सैफरन को जी आई टैग नंबर 635 प्रदान किया है.
दुनिया भर में सैफरन सबसे महंगे मसाले के रूप में बाज़ार में उपलब्ध है. हालाँकि भारत के सैफरन को ईरान से जबरदस्त कम्पटीशन मिलता है. बहुतायत के साथ साथ ईरान का सैफरन बाजार में थोड़ा सस्ता भी है. भारतीय बाज़ारों भी ईरान ने अपनी धाक जमाई हुई है, लेकिन जी आई टैग मिलने से कश्मीर के सैफरन का महत्व एक्सपोर्ट कारोबार में ज्यादा होगा. वैसे भी खुश्बू और क्वालिटी के मामले में कश्मीर का सैफरन सबसे ऊँचे दर्जे पर है. भारत और ईरान के अलावा स्वीडन में भी इसकी पैदावार होती है. यह भी पढ़े: उत्तराखंड के औली में बर्फबारी का नजारा होता है जन्नत जैसा, यहां बनाएं अपने विंटर वेकेशन को यादगार
Kashmir saffron, which is a spice and health rejuvenator and the pride of Jammu and Kashmir, has been given geographical indication (GI) tag, protecting the uniqueness of the farm produce.
Via @CIPAM_India pic.twitter.com/cEYTjNRvgO
— PIB in Jammu and Kashmir (@PIBSrinagar) May 2, 2020
ईरान प्रतिवर्ष अपने 30,000 हेक्टेयर क्षेत्र में 300 टन से ज्यादा सैफरन पैदा करता है वहीं भारत में सैफ्रन कश्मीर के कुछ इलाकों में लगभग 3 हजार हेक्टर क्षेत्र में उगाया जाता है। लेकिन भारत सरकार के नेशनल सैफरन मिशन ने तक़रीबन 400 करोड़ रुपये खर्च करके न केवल ज्यादा से ज्यादा किसानों को सैफरन खेती के लिए प्रोत्साहित किया है, बल्कि उसके पैकेजिंग से लेकर मार्केटिंग तक में सरकारी सहायता उपलब्ध कराई है. जाहिर है, पिछले वर्षों में मिशन सैफरन ने कश्मीर में काफी विस्तार पाया है.
जाफ़रान को केसर, कांग, कांग पोश, आदि भी कहते हैं. घाटी में जाफ़रान के फूलों को ताज़गी और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। जब घाटी में जाफ़रान के फूल खिलते हैं तो ऐसा लगता है कि नई दुल्हन शॉल उढ़े सो रही है। करीब 1.6 से 1.7 लाख फूलों से एक किलो जाफ़रान बनती है। 10 ग्राम जाफ़रान की कीमत करीब 1 हजार रुपए होती है। कश्मीर के कुछ हिस्सों में चाय में भी जाफ़रान का प्रयोग किया जाता है.
नेशनल सैफरन मिशन केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना
एक समय था जब बाजार में केसर की मांग के बावजूद कश्मीर में सैफरन की खेती से किसानो का मोहभंग होने लगा था। दरअसल लागत और श्रम के हिसाब से कश्मीर में केसर की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर कम रही थी। बाद में भारत सरकार ने इस दिशा में एक समग्र योजना के साथ नेशनल सैफरन मिशन की शुरुआत की और किसानों के साथ स्थानीय कृषि विश्वविद्यालयों को भी जोड़ा। यह पहला मौका है जब कश्मीर में इस बार केसर के उत्पादन में 200 फीसद की वृद्धि दर्ज हुई है। पहले यह खेती पुलवामा जिला के पाम्पोर इलाके तक सिमित थी. आज, इसका दायरा जम्मू के किश्तवाड़ तक फैल गया है.
कश्मीरी केसर में औषधीय गुणों के अलावा कई पारम्परिक खान-पान में केसर के बगैर पकवान अधूरा है.भारत के बाजारों में ईरानी केसर इसे चुनौती देती आयी है। उम्मीद है कि जीआई टैग मिलने से इसके रुतबे में इजाफा होगा और इससे जुड़े हजारों किसानो को पैदावार का उचित मूल्य मिलेगा.