Guru Purnima: कब है गुरू पूर्णिमा? क्यों मानते हैं वेद व्यास को परमगुरू? जानें इसका महत्व, मुहर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि! प्रत्येक वर्षों की तरह इस बार भी आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन गुरू पूर्णिमा मनाई जाएगी. यह वह दिन है, जब हम उस व्यक्ति की पूजा-अर्चना करते हैं, जो हमें ज्ञान का प्रकाश देकर हमें अंधकार से प्रकाश में लाता है. यह पर्व संपूर्ण भारत में बड़ी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. यूं तो किसी भी तरह का ज्ञान देने वाला गुरू कहलाता है, लेकिन तंत्र-मंत्र-आध्यात्म का ज्ञान देने वाले सद्गुरू कहे जाते हैं, जिनकी प्राप्ति पिछले जन्मों के कर्मों से ही प्राप्त हो पाती है. इस वर्ष गुरू पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई 2023, सोमवार के दिन मनाया जाएगा. आइये जानते हैं. यह भी पढ़े: Guru Purnima 2023 Wishes: पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और अन्य नेताओं ने गुरु पूर्णिमा पर शुभकामनाएं दीं
गुरू पूर्णिमा का महत्व, पूजा विधि, मंत्र एवं मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से गुरू पूर्णिमा पूजा विधि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाएं और स्वच्छ वस्त्र पहनें. मंदिर और मंदिर के आसपास के क्षेत्र की सफाई करें. एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर इस पर गुरू व्यास जी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें. पहले गंगाजल छिड़कें इसके बाद धूप-दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करें. गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा: गुरुर्सात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:अब वेद व्यास जी की तस्वीर पर सुगंधित फूलों की माला पहनाते हुए पुष्प अर्पित करें, व्यासजी के मस्तक पर रोली का तिलक एवं अक्षत लगाएं. अक्षत, वस्त्र, फल, एवं मिष्ठान तथा कुछ दक्षिणा (मुद्रा के रूप में) चढ़ाएं. निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें. ॐ गुं गुरुभ्यो नम: पूजा की समाप्ति विष्णु जी की आरती के साथ करें और लोगों को प्रसाद वितरित करें. इसके पश्चात गुरू अथवा माता-पिता का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें.
गुरू पूर्णिमा तिथि एवं शुभ मुहूर्त पूर्णिमा प्रारंभः 08:22 PM (02 जुलाई 2023, रविवार) से पूर्णिमा समाप्तः 05.09 PM (03 जुलाई 2023 सोमवार) तक गुरू पूजा अथवा व्यास पूजा के लिए प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात पहले तीन मुहूर्तों तक प्रबल है. यदि पूर्णिमा सूर्योदय के पश्चात 3 मुहूर्त से कम है तो पूजा पिछले दिन ही मना लेना चाहिए. गुरु पूर्णिमा महत्व धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेद व्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को पिता ऋषि पराशर के पुत्र के रूप में हुआ था.
वेद व्यास भूत, वर्तमान और भविष्य से अवगत थे. उन्होंने अपनी दिव्य-दृष्टि से देख लिया था कि भविष्य में लोगों की धर्म के प्रति रुचि कम होगी, मानव ईश्वर पर कम विश्वास करेगा. उसकी आयु कम होगी. वह संपूर्ण वेद नहीं पढ़ सकेगा. उसकी सुविधा के लिए उन्होंने वेदों को चार भागों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद विभाजित किया, जिससे वह वेदव्यास कहलाए. चारों वेदों का ज्ञान उन्होंने अपने शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को दिया. चूंकि यह काफी रहस्यमय और कठिन था, इसलिए उन्होंने पांचवें वेद के रूप में पुराणों की रचना की. इसमें वेदों के ज्ञान को रोचक कहानियों के रूप में समझाया. व्यास जी के शिष्यों ने अपने ज्ञान के अनुसार उनके वेदों को कई शाखाओं और उप-शाखाओं में विभाजित किया. यह पर्व उन्हीं की जयंती स्वरूप मनाई जाती है.