Emergency: आजाद भारत के इतिहास का काला पन्ना! जब पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई
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 48 years of emergency 2023:          25 जून 1975 आजाद भारत के  इतिहास का काला पन्ना! जब पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई! स्वतंत्र भारत के इतिहास में 25 जून 1975 का काला दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता. यही वह तारीख थी, जब कांग्रेस सरकार ने देशवासियों पर इमरजेंसी थोपा था. गौरतलब है कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 माह की अवधि में देश में इमरजेंसी लगाई थी. तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में इमरजेंसी की घोषणा की थी. यह भी पढ़े: Disqualified From Lok Sabha: राहुल गांधी ही नहीं, दादी इंदिरा और मां सोनिया भी खो चुकी हैं संसद की सदस्यता, जानें कब-क्यों और कैसे?

इस दरमियान लोकतांत्रिक देश की दुहाई देने वाली कांग्रेस ने आम चुनाव स्थगित करने में भी अहम भूमिका निभाई थी. आइये जानें किन परिस्थितियों में इंदिरा सरकार ने आपात काल की घोषणा की थी, और इसका क्या हश्र हुआ... क्या था इंदिरा गांधी का आदेश?   इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 की प्रातःकाल राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था, ‘आज एक व्यक्ति (जयप्रकाश नारायण) द्वारा देश में जिस तरह का माहौल (सेना, पुलिस और अधिकारियों को भड़काना) बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए जरूरी हो गया है कि देश में आपातकाल लगाया जाए, ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके.

हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है, जहां जनमत से चुनी सरकार देश को संचालित करती है, अंततः हमें विषम परिस्थितियों को देखते हुए आज 25 जून 1975 से राष्ट्रीय आपातकाल लगाना पड़ रहा है.’ भारतीय संविधान में आर्टिकल 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध में उल्लेखित हैं कि इस स्थिति में केंद्र सरकार को विशेष पावर (सर्वशक्तिमान) प्राप्त होता है. ऐसी स्थिति में सभी स्टेट, पूर्णतः केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाते हैं. किस स्थिति में लगती है इमरजेंसी?   भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. यह व्यवस्था उस समय लगाई जाती है, जब संपूर्ण देश अथवा राज्य विशेष में युद्ध अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है. आजाद भारत में पहली और अंतिम बार नेशनल इमरजेंसी इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था, जो निरंतर 21 माह तक चला था. किस तरह की धांधली का आरोप था इंदिरा गांधी पर?

साल 1969 में 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण होने के कारण भारतीय बैंकों पर रईस घरानों का नियंत्रण खत्म होने और प्रिवी पर्स (राजघरानों को मिलने वाले भत्ते) खत्म होने और 'गरीबी हटाओ' जैसे नारों से इंदिरा गांधी 'गरीबों की मसीहा' के रूप में मुखर हुईं. शायद इसी वजह से मार्च 1971 में हुए आम चुनाव में 518 में से 352 सीटें हासिल कर कांग्रेस को प्रचण्ड जीत मिली थी. स्वयं इंदिरा गांधी ने रायबरेली (उ प्र) लोक सभा सीट में अपने प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को एक लाख से ज्यादा मतों से हराया था. राज नारायण ने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी, और यहीं से इमरजेंसी की नींव पड़ी.

कोर्ट का निर्णय इंदिरा के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बनें जाएं, और उन्हें प्रधानमंत्री पद सौंप दें. लेकिन संजय गांधी ने सलाह दिया कि यदि इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद छोड़ा, तो फिर वह व्यक्ति इसे नहीं छोड़ेगा और पार्टी पर पकड़ ख़त्म हो जाएगी. इंदिरा गांधी ने तय किया कि वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी. इस केस की सुनवाई जज जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने करते हुए कहा कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पूरा रोक नहीं लगाएंगे. इंदिरा गांधी पद पर बनी रहेगी.

इमरजेंसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था कांग्रेस के सामने  सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी. जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी पर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया. उन्होंने ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा बुलंद किया था. जयप्रकाश ने विद्यार्थियों, सैनिकों, और पुलिस वालों से अपील की कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें, क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री पद से हटने का आदेश दिया है. बस इसी रैली के आधार पर इंदिरा गांधी ने 25 जून की रात्रि से आपातकाल लगाने का फैसला किया था.