Bal Gangadhar Tilak Punyatithi 2023: बाल गंगाधर तिलक को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पितामह माना जाता है. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रथम सेनानी बताया जाता हैं. गंगाधर तिलक शिक्षक, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रखर नेता, इतिहास, संस्कृत, खगोल विज्ञान, गणित के प्रकाण्ड पंडित भी थे. संपूर्ण भारतवासी उन्हें सम्मान देता था. इसलिए उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि प्राप्त थी. तिलक ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तमाम नारे बुलंद किये, लेकिन उनका लोकप्रिय और कारगर नारा था, ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’. बाल गंगाधर महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन कभी भी उनका पूर्ण समर्थन नहीं किया, उनके अनुसार अहिंसा सत्याग्रह जरूरी है, लेकिन जरूरत पड़ने पर शस्त्र उठाना भी महत्वपूर्ण है. उनकी पुण्यतिथि पर जानते हैं उनके बारे में विस्तार से.. यह भी पढ़े: Lokmanya Tilak Punyatithi: स्वतंत्रता संघर्ष के महान बलिदानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक- पांच महीने में पेंसिल से लिख डाली ‘गीता रहस्य’
जन्म एवं शिक्षा
संस्कृत प्रशिक्षक गंगाधर रामचन्द्र पंत और पार्वती बाई की पहली तीनों संतानें बेटियां (काशी, अम्बू और यर्वदा) थीं. इसके लंबे समय बाद पुत्र की लालसा से माँ ने निर्जल उपवास रखा, और उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ. बच्चे का नाम बलवंत रखा, प्यार से उन्हें बाल कहकर पुकारते थे. बाद में यही बाल बाल गंगाधर तिलक के नाम से लोकप्रिय हुए. 1871 तापी बाई (सत्यभामा) से उनका विवाह हो गया.
तिलक बचपन से कुशाग्र विद्यार्थी थे. गणित उनका प्रिय विषय था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पिता के सानिध्य में हुई थी. इसके बाद वह प्राथमिक शिक्षा पुणे के एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल में एडमिशन लिया. वह काफी छोटे से थे, जब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई. 1877 में उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से संस्कृत और गणित में बीए की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद बॉम्बे (मुंबई) के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एलएलबी कर 1879 में कानून की पढ़ाई पूरी की.
बाल गंगाधर का करियर
शिक्षा पूरी करने के बाद तिलक पुणे के एक प्राइवेट स्कूल में वह गणित और अंग्रेजी के शिक्षक बन गये, लेकिन स्कूल के प्रशासक और अन्य शिक्षकों से उनके विचार मेल नहीं खाते थे. भारतीय छात्रों के साथ दोहरे बर्ताव उन्हें पसंद नहीं आता था. उन्होंने भारतीय संस्कृति और मान्यताओं के बारे में खूब जागरूकता फैलाई और ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का डटकर विरोध किया, अंततः 1880 में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया.
राजनीतिक सफर
साल 1890 में तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े. इसके तुरंत बाद उन्होंने पार्टी की उदारवादी नीतियों का कड़ा विरोध करना शुरू किया. तिलक का कहना था कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बुनियादी संवैधानिक आंदोलन कारगर नहीं हो सकता. 1907 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी के उदारवादी और कट्टरपंथी गुटों के बीच खुला संघर्ष हुआ. अतः कांग्रेस में दो गुट बन गये.
राजद्रोह के आरोप में जेल
तिलक ने ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का कड़ा विरोध किया और अपने समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ खूब भड़काऊ लेख लिखे, जिससे चापेकर बंधुओं को प्रेरणा मिली. उन्होंने 22 जून को कमिश्नर रैंड और लेफ्टिनेंट प्रथम को पत्र लिखा. 1897 में उनकी हत्या कर दी गई. लोकमान्य तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चला और 6 साल के लिए उन्हें 'निर्वासित' कर दिया गया. 1908 से 1914 तक के लिए उन्हें बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया. जेल में रहते हुए भी उन्होंने आर्टिकल लिखना जारी रखा. वहीं पर उन्होंने 'तुरुंगत गीता रहस्य' नामक पुस्तक भी लिखी.
होम रूल लीग की स्थापना
1915 में कारावास की सजा काटकर जब बाल गंगाधर तिलक बर्मा से भारत लौटे तो उन्होंने पाया कि प्रथम विश्व युद्ध के कारण भारतीय कांग्रेस ब्रिटेन की सहायता कर रहे हैं, उन्हें लगता था कि युद्ध के बाद ब्रिटिश भारत को आजाद कर देंगे, लेकिन भारतीय कांग्रेस समझ गई कि ब्रिटेन ऐसा नहीं करेगा. तिलक और एनी बेसेंट, मुहम्मद जिन्ना, यूसुफ बैपटिस्टा के साथ मिलकर 28 अप्रैल 1916 को दो होम रूल लीग (तिलक की पुणे होम रूल लीग और एनी बेसेंट की मद्रास होमरूल लीग) का गठन किया. इसका उद्देश्य स्वराज प्राप्त तो था, लेकिन शस्त्रों का प्रयोग वर्जित था. इसके लिए तिलक और एनी बेसेंट ने 1917 में एक ध्वज भी बनाया था.
निधन
अमृतसर में जलियांवाला बाग वीभत्स नरसंहार से बाल गंगाधर तिलक काफी प्रभावित हुए. इसके बाद से ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, कुछ दिन बाद वे मधुमेह के शिकार हो गए. उनकी स्थिति दिन-प्रति-दिन बिगड़ने लगी और अंततः 1 अगस्त 1920 को उनकी मृत्यु हो गई. बताया जाता है कि लोकमान्य के अंतिम संस्कार यात्रा में लाखों की संख्या में देश भक्त इकट्ठा हुए थे.