बर्फ घटने से ध्रुवीय भालुओं के सामने भोजन का संकट
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कनाडा की हडसन बे में ध्रुवीय भालुओं के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है. जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है और बिना बर्फ के मौसम लंबे हो रहे हैं. इसलिए इन सफेद जीवों के लिए जीवन मुश्किल हो गया है.उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले सफेद भालुओं के सामने बड़ा संकट है. खाने का संकट. हालांकि वे जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अपने खान-पान में बदलाव करने की भी कोशिश कर रहे हैं लेकिन लंबी होती गर्मियां और घटती बर्फ उनके लिए जीवन को लगातार मुश्किल बना रही है.

ध्रुवीय भालुओं का मुख्य भोजन है मोटे-ताजे और दाढ़ी वाले सील. वे उन्हें आर्कटिक सागर में मिलते हैं जो सर्दियों में सतह पर आ जाते हैं. समुद्र की सतह पर जमी बर्फ पर चलते हुए वे अपने शिकार तक पहुंचते हैं. मौसम बदलता है तो ये भालु शीतनिद्रा में चले जाते हैं ताकि अपनी ऊर्जा को बचाकर रख सकें.

लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां अब लंबी हो रही हैं और बर्फ का मौसम छोटा होता जा रहा है. बाकी दुनिया के मुकाबले अब आर्कटिक क्षेत्र दो से चार गुना तक ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. इसलिए भालुओं को ज्यादा समय जमीन पर बिताना पड़ रहा है.

कैसे हुआ शोध

हाल ही में वैज्ञानिकों ने हडसन बे में 20 ध्रुवीय भालुओं की निगरानी की और पाया कि गर्मियों में भी अब ये भालू भोजन की तलाश में भटक रहे हैं.

अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के बायोलॉजिस्ट एंथनी पांगो इस अध्ययन के प्रमुख थे. वह कहते हैं, "ध्रुवीय भालू एक रचनात्मक जीव है. वे बहुत खोजी किस्म के होते हैं. उत्साहित हो जाएं तो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए वे इलाके में खाना खोजने और जिंदा रहने के तरीके खोजते रहते हैं.”

नेचर कम्युनिकेशंस नाम की पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने भालुओं पर जीपीएस कॉलर लगा दिए थे. इनमें कैमरे भी लगे थे. तीन साल तक हर साल के तीन हफ्तों में वैज्ञानिकों ने इन भालुओं की निगरानी की.

ये भालू पश्चिमी हडसन बे में रहते हैं जहां 1975 से 2015 के बीच बर्फ-रहित समयावधि तीन हफ्ते बढ़ चुकी थी. इसका अर्थ है कि पिछले एक दशक में भालुओं को सालाना लगभग 130 दिन सूखी जमीन पर बिताने पड़े.

बदल रहे हैं भालू

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन 20 भालुओं की वे निगरानी कर रहे थे, उनमें से दो ने तो अपनी गतिविधियां ही कम कर दीं ताकि शीतनिद्रा के दौरान उनकी ऊर्जा बची रहे. लेकिन बाकी 18 लगातार सक्रिय रहे.

शोध कहता है कि संभव है बदलती जरूरतों ने इन भालुओं को सक्रिय रखा हो क्योंकि उन्होंने अलग-अलग तरह का खाना खाया. इसमें घास से लेकर बेरी, पक्षी और छोटे-मोटे समुद्री जानवर भी शामिल थे.

तीन भालुओं ने तो भोजन के लिए लंबी समुद्री यात्राएं भी कीं. एक भालू तो 175 किलोमीटर दूर तक तैरा. कुछ अन्य को जो भोजन मिला उसे ही चबाने में समय बिताया.

शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन भालुओं की भरसक कोशिशों के बावजूद सैकड़ों किलोग्राम वजनी इन प्राणियों को अपनी जरूरत का पूरा भोजन नहीं मिल पाया.

20 में से 19 भालुओं का वजन उतना ही कम हुआ, जितना वे शीतनिद्रा के दौरान खो देते हैं, जब वे कुछ नहीं खाते. इसका अर्थ है कि जितने ज्यादा समय तक भालू सूखी जमीन पर रहेंगे, उनके भूख से मरने का खतरा उतना बढ़ता जाएगा.

बर्फ खत्म तो भालू खत्म

कई विशेषज्ञ इस शोध के नतीजों से सहमति जताते हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड में आर्कटिक प्रजातियों की विशेषज्ञ मेलनी लैंकास्टर कहती हैं, "ये नतीजे पहले हो चुके कई शोधों की बात को और पुख्ता करते हैं. यह एक और सबूत है जो चेतावनी देता है.”

वैज्ञानिक कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में बचे मात्र 25 हजार ध्रुवीय भालू खतरे में हैं.

पोलर बेयर्स इंटरनेशनल के मुख्य़ वैज्ञानिक जॉन व्हाइटमैन कहते हैं यह शोध एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यह बर्फ-रहित मौसम में ध्रुवी भालुओं के ऊर्जा खर्च का सीधे तौर पर विश्लेषण करता है. उन्होंने कहा, "बर्फ खत्म तो ध्रुवीय भालू भी खत्म. बर्फ को खत्म होने से रोकने के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं.”

वीके/एए (एएफपी)