
नयी दिल्ली, 31 जनवरी चालू वित्त वर्ष (2024-25) के लिए बजट-पूर्व दस्तावेज में अनाज के अधिक उत्पादन को हतोत्साहित करने तथा दलहन एवं खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार करने का सुझाव दिया गया है। देश दलहन और खाद्य तेलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए फिलहाल आयात पर निर्भर है।
शुक्रवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2024-25 में इस बात पर जोर दिया गया है कि विभिन्न विकास पहल के बावजूद भारत के कृषि क्षेत्र में ‘आगे विकास की अपार क्षमता है जिसका अभी तक उपयोग नहीं किया जा सका है।’
इसमें कहा गया है कि किसानों को बाजार से बिना किसी बाधा के मूल्य संकेत प्राप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए, साथ ही कमजोर परिवारों की सुरक्षा के लिए अलग तंत्र होना चाहिए।
समीक्षा में तीन प्रमुख नीतिगत बदलावों की रूपरेखा दी गई है - मूल्य जोखिम हेजिंग के लिए बाजार तंत्र स्थापित करना, अत्यधिक उर्वरक उपयोग को रोकना तथा ऐसी फसलों के उत्पादन को हतोत्साहित करना जिनमें बिजली और पानी की जबर्दस्त खपत होती है।
समीक्षा में कहा गया, ‘‘ये नीतिगत बदलाव करने से, कृषि क्षेत्र में भूमि और श्रम उत्पादकता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिलेगी।’’
समीक्षा कहती है कि भारत दलहनों और तिलहनों के उत्पादन में लगातार कमी का सामना कर रहा है। तिलहनों की धीमी वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत होना चिंता का विषय है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि भारत घरेलू खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है।
इस समस्या से निपटने के लिए, आर्थिक समीक्षा में प्रतिकूल जलवायु-सहिष्णु फसल किस्मों को विकसित करने, उपज बढ़ाने और फसल क्षति को कम करने के लिए केंद्रित अनुसंधान का सुझाव दिया गया है। चावल-परती क्षेत्रों में दालों के अंतर्गत क्षेत्र का विस्तार करने के प्रयासों से मदद मिलने की संभावना है।
इसमें विस्तार गतिविधियों को बढ़ावा देने और किसानों के लिए खेती के सर्वोत्तम तौर-तरीकों, अधिक उपज और रोग प्रतिरोधी बीज किस्मों के उपयोग, तथा दलहन एवं तिलहन के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में खेती के तरीकों में सुधार के लिए लक्षित हस्तक्षेप के बारे में प्रशिक्षण देने की बात रखी गई है।
इसमें मिट्टी के क्षरण, विशेष रूप से कार्बनिक कार्बन सामग्री में गिरावट को देखते हुए उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर दिया गया, जो भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
वित्त वर्ष 2016-17 से 2022-23 के दौरान कृषि क्षेत्र की वृद्धि औसतन पांच प्रतिशत रही है, जो चुनौतियों के बावजूद इस क्षेत्र की जुझारू क्षमता को दर्शाता है।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि 3.5 प्रतिशत रही है। इससे पिछली चार तिमाहियों में कृषि क्षेत्र 0.4 से 2.0 प्रतिशत की दर से बढ़ा था।
वर्तमान मूल्यों पर वित्त वर्ष 2023-24 के अस्थायी अनुमानों के अनुसार, यह क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 16 प्रतिशत का योगदान देता है और लगभग 46.1 प्रतिशत आबादी का भरण-पोषण करता है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कृषि प्रदर्शन को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक मौसम की स्थिति का होने वाला प्रभाव है।
इसमें कहा गया है, ‘‘जलवायु बदलाव महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश कर सकता है; हालांकि, विविध आय स्रोतों वाले किसान इन अनिश्चितताओं से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में हैं।’’
दस्तावेज़ में आय विविधीकरण के लिए पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों के बढ़ते महत्व पर जोर दिया गया है।
हालांकि, इसने जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी जैसी चुनौतियों को चिह्नित किया, जिनके लिए लक्षित हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाना और ‘ई-नाम’ जैसे मंच के माध्यम से बेहतर बाजार बुनियादी ढांचे को महत्वपूर्ण ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्रों के रूप में रखा गया है।
सरकारी योजनाओं ने सकारात्मक प्रभाव दिखाया है। 31 अक्टूबर, 2024 तक 11 करोड़ से अधिक किसान पीएम-किसान से लाभान्वित हुए हैं और 23.61 लाख किसान पीएमकेएमवाई पेंशन योजना के तहत नामांकित हैं।
रिपोर्ट में छोटे किसानों को समर्थन देने और विशेष रूप से दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में खाद्यान्न भंडारण प्रणालियों को आधुनिक बनाने के लिए निजी क्षेत्र के निवेश की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)