अर्थव्यवस्था के लिहाज से अगला साल दुनिया के लिए कैसा रहेगा? किसका डर और किसका इंतजार रहेगा? कई चुनौतियां हैं और इनमें बहुतों का संबंध अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनकी रक्षात्मक प्रवृत्तियों से है.1. डॉनल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल जनवरी में शुरू होगा
2025 और उसके बाद के लिए भी बहुत संभव है कि की तरह की अनिश्चितता कायम रहेगी. इनमें से आधी से ज्यादा तो एक ही आदमी के हाथ में होगी और वो हैं दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप.
उनकी तथाकथित अमेरिका फर्स्ट की नीति देश की सीमाओं से बहुत दूर तक जाएगी. ट्रंप की मनमर्जियां दुनिया की व्यवस्था को नया रूप देंगी, यह हम सब जानते हैं. समृद्धि, वैश्वीकरण, और दूर दराज के इलाकों में लड़ाइयां मोटे तौर पर अमेरिका में तय होंगी. इसमें कुछ नया नहीं है. जो नया है वो है इसकी अनिश्चिता और इसके चारों ओर वो अव्यस्थाएं जिनसे ये फैसले हर तरफ से घिरे होंगे.
ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर सवाल उठाने के साथ ही अपने सहयोगियों और नाटो की उपेक्षा की है. नए कारोबारी संबंध और अमेरिका के अपनी ओर देखने के ऐसे नतीजे भी हो सकते हैं जिनके बारे में सोचा नहीं गया होगा. स्पष्ट अमेरिकी नेतृत्व की कमी चीन, भारत और रूस जैसे देशों के लिए सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक फासलों को भरने का अवसर बनाएंगी.
2. शुल्क, कारोबारी जंग और ऊंची कीमतें
कारोबार को पहले से योजना बनाना पसंद आता है, यही वजह है कि शुल्क की धमकियां इतनी ज्यादा हतोत्साहित कर रही हैं. ट्रंप इसकी बड़ी तारीफ करते हैं क्योंकि यह उनके लिए उन देशों को सजा देने का एक तरीका है जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा ज्यादा है. इसी साल अक्टूबर में उन्होंने कहा, "शब्दकोश में सबसे खूबसूरत शब्द है शुल्क."
2024 के चुनाव अभियान के दौरान, ट्रंप ने अमेरिका में आने वाली सभी चीजों पर 10-20 फीसदी शुल्क लगाने की धमकी दी. इसके साथ ही कार्यकाल शुरू होने के पहले दिन से चीन के सामानों पर 60 फीसदी शुल्क लगाने की उन्होंने बात कही.
हाल ही में उन्होंने सुधार कर के मेक्सिको और कनाडा से आने वाली सभी चीजों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की बात कही है. चीनी सामानों पर अब सिर्फ 10 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा. मेक्सिको ने इसके जवाब में अमेरिकी सामानों पर कर लगाने की बात कही है. चीन भी यही कर सकता है. कनाडा के प्रधानमंत्री ने फ्लोरिडा जा कर ट्रंप से मुलाकात की ताकि इन सब से बचा जा सके.
ग्लोबल सप्लाई चेन वाले कारोबारों के लिए शुल्क का बढ़ना बुरी खबर होगी. ये शुल्क अमेरिका के पड़ोसियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और आशंका है कि अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा का समझौता खत्म हो जाएगा. मुक्त व्यापार का यह समझौता ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुआ था.
फिलहाल मेक्सिको का लगभग 80 फीसदी और कनाडा का 75 फीसदी से ज्यादा निर्यात अमेरिका जाता है. अमेरिका में आयात होने वाले फल और सब्जियों का आधे से ज्यादा मेक्सिको से आता है. अमेरिका कनाडा से करोड़ों बैरल कच्चा तेल हर दिन खरीदता है.
आखिर में अमेरिकी खरीदारों पर ऊंची कीमतों की मार पड़ेगी और इसके नतीजे में दुकानों के शेल्फ पर सामान कम दिखेंगे. कुछ लोगों का दावा है कि ट्रंप शुल्क की धमकियों का इश्तेमाल मोलभाव के औजार के रूप में कर रहे हैं. हालांकि ऐसी कोशिशें जवाबी कार्रवाई के लिए उकसाएंगी और बहुत जल्द दुनिया भर में एक कारोबारी जंग का रूप ले लेंगी.
3. दुनिया भर में आप्रवासन पर संकट घिरेगा
केवल सामानों के सामने ही दीवारें नहीं खड़ी होंगी. वैश्विक आप्रवासन के सामने भी वास्तविक दीवारें होंगी. दुनिया भर के नेता यह दिखाने की जरूरत महसूस कर रहे हैं कि सीमाओं को आप्रवासियों के लिए कठोर बना कर वो उन पर नियंत्रण रखेंगे. यह दुनिया के खुलेपन और उसकी गतिशीलता को घटाएगा.
चुनावी अभियान के दौरान ही रिपब्लिकन नेताओं ने अमेरिकी इतिहास के सबसे बड़े प्रत्यर्पण का वादा किया. यह ट्रंप का ही विचार है. मेक्सिको के साथ लगती सीमा पर कठोर नियंत्रण और प्रत्यर्पण के अलावा उन्होंने दिसंबर की शुरुआत में एक इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका में पैदा होने वाले हर किसी को अपने आप मिलने वाली नागरिकता को खत्म करेंगे.
अनियमित आप्रवासन के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति के पास बहुत अधिकार हैं. हालांकि उसके ज्यादातर प्रस्ताव कोर्ट की दहलीज पर पहुंच जाएंगे. राष्ट्रपति के पास वैध आप्रवासन को कम करने का भी अधिकार है. वह शरणार्थियों की संख्या घटाकर या फिर वीजा और ग्रीन कार्ड हासिल करना मुश्किल बना कर भी ऐसा कर सकते हैं.
आप्रवासियों को बाहर रखना या फिर उन्हें घर भेजने का देश के श्रम बाजार पर बुरा असर हो सकता है. फसलें खराब हो सकती हैं या फिर उद्यमी अपने देशों में ही अपनी दुकान लगा सकते हैं. मेक्सिको की सीमा पर कठोरता का असर खास तौर से क्यूबा, हेती और वेनेज्वेला जैसे लातिन अमेरिकी देशों पर होगा.
अमेरिका अकेला नहीं है जो आप्रवासन को मुश्किल बनाना चाहता है. यूरोपीय संघ ने भी अनियमित आप्रवासन को रोकने की बात कही है. इटली अल्बानिया में शरणार्थियों को भेजने की कोशिश में है. जर्मनी के चुनाव में भी आप्रवासन एक बड़ा मुद्दा है.
4. यूक्रेन, मध्यपूर्व और दूसरी जगहों की लड़ाइयां
2025 में दाखिल हो रही दुनिया कई लड़ाइयां झेल रही है. इन लड़ाइयों ने तबाही और मानवीय आपदाएं पैदा की हैं. इनका खर्च भी बहुत ज्यादा है जो दूसरे रचनात्मक कामों के लिए इस्तेमाल हो सकता था.
ट्रांप का दावा है कि वे यूक्रेन में रूसी जंग को 24 घंटे के भीतर खत्म कर देंगे. करीब तीन साल पहले हुए आक्रमण के बाद से चले आ रहे अमेरिकी धन के बहाव को वे रोक सकते हैं. अमेरिका सबसे ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है तो ऐसे में यूक्रेन बातचीत की मेज पर आने के लिए विवश हो सकता है.
हमास के खिलाफ गाजा में इस्राएल की जंग हाल ही में लेबनान तक पहुंच गई. यह जंग अभी जारी है जो भविष्य में और फैल सकती है. एशिया में चीन अब भी ताइवान पर अपना हक जता रहा है, जो भविष्य में आक्रमण की आशंका बढ़ाता है.
कई दशकों से अमेरिकी नेतृत्व वैश्विक स्तर पर संतुलन बनाने में मदद करता आया है. हालांकि ट्रंप ने उस पर भी सवाल उठा दिए हैं. अगर अमेरिका अपने सहयोगियों की रक्षा में मदद नहीं करता तो दशकों से चली आ रही नीतियां धुआं हो जाएंगी. इसके बाद बनी दुनिया की नई व्यवस्था में ईरान औरउत्तर कोरिया जैसे देश अपने सैन्य अभियानों की क्षमता परख सकते हैं.
5. क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उभार आ रहा है
नवंबर, 2022 के आखिर में ओपन एआई के चैट जीपीटी का आगमन बड़े स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की शुरुआत बना. कुछ हफ्तों के भीत ही उसके 10 करोड़ से ज्यादा यूजर बन गए. आम लोगों की जिंदगी और कारोबार को बदलने में एआई का दखल धीमा है. हालांकि तकनीक का इस्तेमाल दवाइयां बनाने या फिर सैन्य रक्षा में बड़ी मदद कर सकता है. कंपनियों को इस बारे में नीतियां बनाने की जरूरत है कि एआई का कैसे और कब इस्तेमाल करना है. साथ ही, कर्मचारियों को इसके उपयोग के लिए उत्साहित भी करना होगा.
एआई की सेवा देने वाले होड़ में बने रहने के लिए बड़े डाटा सेंटरों पर भारी निवेश कर रहे हैं. इन सेंटरों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में बिजली की जरूरत होगी. माइक्रोसॉफ्ट इसके लिए पेन्सिल्वेनिया में परमाणु बिजली घरों को फिर से शुरू कराने की योजना के पीछे है. इसी तरह गूगल अपने डाटा सेंटरों को बिजली देने के लिए छोटे न्यूक्लियर रिएक्टर पर दांव लगा रहा है.
क्या 2025 वो साल होगा जब एआई आखिरकार गेमचेंजर बन जाएगा जिसका वादा इसके समर्थक करते आ रहे हैं. इतनी बिजली का इस्तेमाल सचमुच काम आ रहा है यह देखने के लिए निवेशकों, क्रिएटरों और यूजरों को अभी इंतजार करना होगा या फिर वे सीधे चैट जीपीटी से पूछ सकते हैं.