ट्रंप बोले, अमेरिका लेने जा रहा ग्रीनलैंड
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ग्रीनलैंड निवासियों को अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस और उनकी पत्नी उषा वैंस के ग्रीनलैंड दौरे में बदलाव से जो थोड़ी राहत मिली थी, ट्रंप ने ग्रीनलैंड पर नियंत्रण करने का नया बयान देकर उसे छीन लिया है.अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वैंस, अपनी पत्नी उषा वैंस के साथ शुक्रवार को ग्रीनलैंड की यात्रा पर जाने वाले हैं लेकिन ग्रीनलैंड निवासियों के विरोध के बाद इस यात्रा के कार्यक्रम में बदलाव कर दिया है. नई जानकारी के मुताबिक अब उषा वैंस, अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस के साथ सिर्फ पिटुफिक स्पेस बेस जाएंगीं. ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिम में यह अमेरिका का मिलिट्री बेस है. जबकि पहले उषा वैंस, ग्रीनलैंड की अवेन्नेटा किमुसेरसुरा डॉगस्लेज रेस देखने जाना चाहती थीं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कई बार ग्रीनलैंड को खरीदने की बात कह चुके हैं. ऐसे में जेडी वैंस और उषा वैंस की यात्रा को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है और ग्रीनलैंड में इस यात्रा का विरोध भी हो रहा है. फिलहाल ग्रीनलैंड, डेनमार्क का अर्धस्वायत्त इलाका है. जेडी वैंस और उषा वैंस की डॉगस्लेज रेस देखने जाने की प्रस्तावित यात्रा को लेकर ग्रीनलैंड के लोगों में काफी गुस्सा था. ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री मुटे एगेडे ने इस यात्रा को ‘आक्रामक दबाव‘ बताया था. डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडेरिक्सन ने भी इसे ‘अस्वीकार्य दबाव‘ कहा था.

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ट्रंप ने दोहराई ग्रीनलैंड पर अधिकार की बात

अब अमेरिकी उप-राष्ट्रपति और उनकी पत्नी की यात्रा सिर्फ पिटुफिक स्पेस बेस तक ही सीमित रहेगी, जो ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिम में है. इस स्पेस बेस को अमेरिकी स्पेस फोर्स ऑपरेट करती है. अमेरिका को इसे चलाने की अनुमति नाटो के डेनमार्क के साथ हुए एक समझौते के तहत मिली हुई है.

इस बेस को अमेरिका का आर्कटिक शील्ड भी कहा जाता है. ट्रंप प्रशासन की ग्रीनलैंड में रुचि की वजह ग्रीनलैंड का संसाधन संपन्न होना और उसकी खास रणनीतिक स्थिति है. पहली बार ट्रंप ने साल 2019 में ग्रीनलैंड को खरीदने की बात कही थी.

अब भले ही जेडी वैंस या उषा वैंस ग्रीनलैंड ना जा रहे हों लेकिन ग्रीनलैंड को लेकर अमेरिका में राजनीति थम नहीं रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक पॉडकास्टर से कहा है कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अमेरिका को डेनमार्क के इस द्वीप की जरूरत है. उन्होंने पॉडकास्टर विंस कॉलेनीज से कहा, "अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए ग्रीनलैंड की जरूरत है. ये हमारे पास होना ही चाहिए. मुझे इस तरह से कहना पसंद नहीं लेकिन हम इसे हासिल करने जा रहे हैं."

बहुत अहम है ग्रीनलैंड

स्कैंडियम, बेरिलियम और गैलियम जैसे तत्वों का नाम भले ही हमें रोजमर्रा में सुनने को ना मिलते हों लेकिन हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर ये खूब असर डालते हैं. ऐसे ही तत्वों को हासिल करने के लिए अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसे देश प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. संसाधनों की इस प्रतिस्पर्धा के चलते ही ग्रीनलैंड की अहमियत बहुत ज्यादा हो जाती है. यहां पर कई संसाधन बहुतायत में मौजूद हैं.

यूरोपीय संघ को अपने कारोबारों के लिए लिथियम, कोबाल्ट, टाइटेनियम जैसे दुर्लभ खनिजों की जरूरत है. ग्रीन एनर्जी उद्योगों में इनकी काफी जरूरत होती है. ये खनिज बैटरी, सोलर पैनल और पवनचक्कियों में बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके अलावा इनकी जरूरत रक्षा उद्योग में भी होती है. फिलहाल यूरोपीय संघ की योजना रक्षा उद्योग पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की है.

चीन पर निर्भरता कम करने में मददगार

यूरोपीय संघ के पास दुर्लभ खनिजों का बेहद कम भंडार है. वर्तमान में इनका ज्यादातर हिस्सा चीन से आता है. इसके बाद तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और कांगो से भी इनकी सप्लाई होती है. यूरोपीय संघ को लेकर अनुमान है कि यहां साल 2030 तक लिथियम बैटरी की मांग में 12 गुना इजाफा हो जाएगा. जबकि 2050 तक यह मांग करीब 21 गुना बढ़ जाएगी. ऐसे में यूरोपीय संघ की दुर्लभ खनिजों की जरूरत भी 5 से 7 गुना बढ़ जाएगी.

इस मांग के हिसाब से दुर्लभ खनिजों का प्रबंध करने के लिए यूरोपीय संघ मई, 2024 में सीआरएम एक्ट लेकर आया था. इसके तहत यूरोप 2030 तक मांग की 10 फीसदी दुर्लभ धातुओं को अपनी खदानों से हासिल करेगा. इसके अलावा जरूरत के दुर्लभ खनिजों के 40 फीसदी की प्रॉसेसिंग करेगा. वहीं जरूरत के 25 फीसदी दुर्लभ खनिज रिसाइकिल करके हासिल करेगा.

बाधाएं भी कम नहीं

यूरोपीय संघ ने ऐसे 47 प्रोजेक्ट शुरू किए हैं ताकि इस मामले में चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके. पुर्तगाल में लिथियम और स्पेन में तांबा-मैंगनीज जैसी धातुएं पाई जाती हैं. पर यहां स्थानीय पानी के दूषित होने और अन्य तरह के प्रदूषण की चिंता में ऐसी योजनाओं का विरोध होता है.

हालांकि इन दुर्लभ खनिजों को ग्रीनलैंड से हासिल करना भी आसान नहीं है. वजह, यहां खनन काफी मुश्किल और महंगा है. यूक्रेन में भी इन दुर्लभ खनिजों का भारी भंडार है. यूक्रेन में मैंगनीज, टाइटेनियम और ग्रेफाइट बड़ी मात्रा में पाया जाता है. इनका बड़ा हिस्सा फिलहाल रूस के कब्जे वाले इलाकों में है.

ये दुर्लभ खनिज भी यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की एक वजह हैं. रूस इन्हें अपने उद्योगों के लिए हासिल करना चाहता है. रवांडा से भी ये दुर्लभ खनिज यूरोपीय संघ को मिलते हैं लेकिन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में एम23 विद्रोहियों को रवांडा के समर्थन का आरोप लगा है, इससे यह सप्लाई भी मुसीबत में आ गई है.

एडी/एनआर (रॉयटर्स, डीपीए)

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