सनातन धर्म में निर्जला एकादशी सभी एकादशियों से ज्यादा महत्वपूर्ण व्रत माना गया है, जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इसके साथ ही यह अन्य सभी एकादशी व्रतों में सबसे कठिन व्रत होता है, क्योंकि इसमें उपवासी व्यक्ति को 30 घंटे निर्जल व्रत रखना होता है. निर्जला एकादशी का यह व्रत ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की ग्यारहवें दिन रखा जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून 2024, मंगलवार के दिन रखा जायेगा. आइये जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत का महात्म्य, मुहूर्त, मंत्र, पूजा-विधि एवं व्रत कथा इत्यादि.
निर्जला एकादशी व्रत का महात्म्य
निर्जला यानि बिना जल के यह व्रत रखा जाता है. यह एक कठिन व्रत है. हिन्दू पंचाग के अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार पांच पांडवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था, और बैकुंठ को गए थे. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी 25 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है. निर्जला व्रत होने से यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है. यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा रखा जा सकता है. यह भी पढ़ें : Nirjala Ekadashi 2024 Messages: हैप्पी निर्जला एकादशी! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और Photo SMS
निर्जला एकादशी तिथि एवं शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 04.43 AM(17 जून 2024, सोमवार)
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 06.24 AM(18 जून 2024, मंगलवार)
सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है. इसलिए निर्जला एकादशी व्रत 18 जून 2024 को रखा जाएगा.
पूजा विधिः
ज्येष्ठ मास के एकादशी पर निर्जला एकादशी व्रत के नियम दशमी की संध्या काल से शुरू हो जाता है, अर्थात सूर्यास्त के पश्चात जल अथवा भोजन नहीं किया जा सकता. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर गंगा-स्नान अथवा घर पर ही गंगाजल की दो बूंद नहाने के जल में मिलाकर स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान श्री हरि का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें, तथा अपनी मनोकामना पूर्ति की याचना करें. अब मंदिर के निकट एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर श्रीहरि की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित कर इस पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
'ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्'
श्रीहरि को पीला पुष्प, पीला चंदन, पीतांबर, तुलसी दल, अर्पित करें. प्रसाद में श्रीहरि की पसंदीदा दूध से बनी मिठाई एवं फल चढ़ाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. व्रत कथा सुनें अथवा सुनाएं. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती उतारकर करें. संभव हो तो मध्यरात्रि तक जागकर भगवान का कीर्तन करें. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं, और जातक की हर मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा कर व्रत का पारण कर सकते हैं. पारण से पूर्व किसी ब्राह्मण को भोजन एवं दक्षिणा देंगे, तो शुभ होगा.
निर्जला एकादशी व्रत कथा
वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो युधिष्ठिर ने कहा, ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसका वर्णन सुनाइये. वेदव्यास ने कहा, कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न का सेवन वर्जित है, द्वादशी को स्नान कर फूलों से श्रीहरि की पूजा करें. भीमसेन बोले, मेरे उदर में वृक नामक अग्नि प्रज्वलित रहती है, अधिक खाने से ही वह शांत होती है. ऐसा उपाय बताएं कि साल में एक दिन उपवास रखना पड़े. व्यासजी ने कहा- ज्येष्ठ मास में जब सूर्य वृष या मिथुन राशि में हो, तो विधि पूर्वक निर्जला व्रत करो. लेकिन अन्न का एक कण या जल की एक बूंद भी गले न जाए, वरना व्रत भंग हो जाएगा. यह व्रत करने से साल की सभी 25 एकादशी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है. पांडव पुत्र ! निर्जला एकादशी पर व्रत पूजा करने के पश्चात ब्राह्मण को गौदान कर आशीर्वाद प्राप्त करें. तभी मोक्ष प्राप्त होगी. पांचों पांडवों के साथ भीम ने भी निर्जला एकादशी का व्रत एवं पूजा का धर्म निभाया. इस तरह उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि कामनापूर्ति हेतु निर्जला एकादशी पर व्रती को यह कथा सुनना आवश्यक होता है.