Yogini Ekadashi 2024: कब है योगिनी एकादशी व्रत? जानें इसका महात्म्य, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-अनुष्ठान आदि के नियम!
निर्जला एकादशी 2024 (Photo Credits: File Image)

निर्जला एकादशी के पश्चात एवं देवशयनी एकादशी से पहले की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष और दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ती है. अन्य एकादशी की तरह योगिनी एकादशी पर भी भगवान श्रीहरि एवं मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. विद्वानों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में विख्यात है. यह व्रत एवं अनुष्ठान करने वाले जातकों के सारे पाप कट जाते हैं, जीवन में हर तरह की खुशियां आती हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार योगिनी एकादशी 2 जुलाई 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं योगिनी एकादशी व्रत के बारे में विस्तार से...

योगिनी एकादशी मूल तिथि एवं मुहूर्त

योगिनी एकादशी प्रारंभः 10.26 AM (01 जुलाई 2024) से

योगिनी एकादशी समाप्तः 08.42 AM (02 जुलाई 2024) तक

उदया तिथि के अनुसार 2 जुलाई 2024 को योगिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा.

योगिनी एकादशी व्रत एवं पूजा के नियम

अन्य एकादशियों की तरह इस एकादशी में भी एक दिन पूर्व संध्याकाल से अन्न त्याग देना चाहिए. योगिनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. बेहतर होगा कि पूजा के लिए पीले रंग का वस्त्र धारण करें, क्योंकि श्रीहरि का यह प्रिय रंग है. अब पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और इस पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं. चौकी पर गंगाजल छिड़ककर श्रीहरि एवं मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. और निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

देवी लक्ष्मी को सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. भगवान विष्णु को पीला पुष्प, तुलसी दल, रोली, पीला चंदन, पान, सुपारी आदि अर्पित करें. भोग में पीले रंग की मिठाई और पीला फल चढ़ाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. योगिनी एकादशी व्रत की कथा सुनें और अंत में श्रीहरि की आरती उतारें.

योगिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

स्वर्गलोक में कुबेर नामक राजा भगवान शिव का भक्त था. हेम नामक माली उसके पूजा के लिए फूल लाता था. हेम की पत्नी विशालाक्षी बेहद सुंदर थी. एक बार हेम मानसरोवर से फूल तोड़कर लाया, लेकिन कामासक्त होकर वह पत्नी के साथ प्रेम में मग्न हो गया. इस वजह से राजा को उपासना में देरी हो गई. राजा क्रोधित हो उठे. उसने माली को श्राप देते हुए कहा कि तुमने ईश्वर-भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है. तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का सामना करोगे. हेम कुष्ठ होकर धरती पर आ गिरा. उसकी स्त्री भी अन्यंत्र चली गई. कई वर्षों तक धरती पर कष्ट सहते हुए एक बार माली को मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए. ऋषि ने अपने तपोबल से हेम की सारी सच्चाई जान गया. उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा करने की सलाह दी. हेम ने वैसा ही किया. व्रत एवं पूजा के पश्चात भगवान श्रीहरि उससे बहुत प्रसन्न हुए और उसके सारे पापों को नष्ट करते हुए उसे पुनः स्वर्गलोक में स्थान दिलाया.