जियोथर्मल एनर्जीः पैरों तले की जमीन बन सकती है बड़ा ऊर्जा स्रोत
जियोथर्मल एनर्जी को अभी तक ऊर्जा स्रोतों में उतनी जगह नहीं मिली है, जितनी इसमे संभावनाएं हैं.

जियोथर्मल एनर्जी को अभी तक ऊर्जा स्रोतों में उतनी जगह नहीं मिली है, जितनी इसमे संभावनाएं हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दशकों में जियोथर्मल एनर्जी वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र को क्रांतिकारी रूप से बदल सकती है.अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक भू-तापीय ऊर्जा दुनिया की 15 फीसदी बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. अभी इसकी हिस्सेदारी केवल एक फीसदी है.
यह लक्ष्य तभी हासिल हो सकता है जब भू-तापीय क्षमता को 800 गीगावॉट तक बढ़ाया जाए. यह क्षमता अमेरिका और भारत की कुल सालाना बिजली खपत के बराबर होगी. हालांकि, आईईए ने कहा है कि इसे संभव बनाने के लिए तकनीकी विकास और लागत में कमी लाना जरूरी है.
नवीकरणीय ऊर्जा में नई उम्मीद
भू-तापीय ऊर्जा, जो धरती के नीचे की गर्मी से मिलती है, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में खास जगह बना सकती है. सौर और पवन ऊर्जा के उलट, यह ऊर्जा स्थिर और लगातार सप्लाई देती है. इस वजह से इसे बिजली के बेसलोड (आधार) के लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है.
आईईए ने सुझाव दिया है कि तेल और गैस उद्योग के अनुभव का फायदा उठाया जाए. उनकी ड्रिलिंग तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करके भू-तापीय प्रोजेक्ट्स की लागत घटाई जा सकती है.
जर्मनी ने हाल ही में भू-तापीय ऊर्जा के विस्तार को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई है. सरकार ने भू-तापीय संयंत्रों के लिए स्वीकृति प्रक्रिया तेज करने पर जोर दिया है. यह कदम यूरोप के ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों का हिस्सा है. 2023 में ऊर्जा क्षेत्र के उत्सर्जन ने नया रिकॉर्ड बनाया है. इस विषय पर सोमवार को होने वाली यूरोपीय संघ के ऊर्जा मंत्रियों की बैठक में चर्चा होगी.
भू-तापीय ऊर्जा कैसे काम करती है?
भू-तापीय ऊर्जा धरती के केंद्र से आती है. यह गर्मी रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय और धरती के निर्माण से बची हुई ऊर्जा के कारण बनती है. यह गर्मी सतह के नीचे गर्म पानी और भाप के रूप में जमा होती है. इस ऊर्जा को इस्तेमाल में लाने के लिए भू-तापीय संयंत्र तीन प्रमुख तकनीकों का उपयोग करते हैं.
पहली है, ड्राई स्टीम प्लांट्स, जिनमें सीधे भाप का इस्तेमाल कर टर्बाइन चलाई जाती हैं. फ्लैश स्टीम प्लांट्स में उच्च दबाव वाले गर्म पानी को भाप में बदलकर बिजली बनाई जाती है. और तीसरी है, बाइनरी साइकिल प्लांट्स, जिनमें भू-तापीय गर्मी को एक सेकंडरी फ्लूइड में बदलते हैं. इसका उबलने का तापमान कम होता है और इससे टर्बाइन चलाई जाती हैं.
इसके अलावा घरों और व्यवसायों के लिए जियोथर्मल एनर्जी पैदा करने के लिए ग्राउंड-सोर्स हीट पंप्स का उपयोग किया जाता है. ये सिस्टम धरती के नीचे के स्थिर तापमान का उपयोग करके हीटिंग और कूलिंग देते हैं.
दुनिया भर में सफलता की कहानियां
कई देशों ने भू-तापीय ऊर्जा को अपने पावर ग्रिड में शामिल किया है और इस ऊर्जा स्रोत ने अहम कामयाबी हासिल कि है. आइसलैंड भू-तापीय ऊर्जा में दुनिया में सबसे आगे है. यहां 25 फीसदी बिजली इसी स्रोत से मिलती है, और लगभग सभी घर इसी से गर्म किए जाते हैं. हेल्लीशेदी पावर प्लांट इसकी क्षमता का बेहतरीन उदाहरण है.
केन्या की रिफ्ट वैली में स्थित ओल्कारिया भू-तापीय संयंत्र केन्या की 30 फीसदी बिजली जरूरतें पूरी करता है. केन्या अफ्रीका में इस ऊर्जा के विकास में सबसे आगे है. अमेरिका में भी जियोथर्मल पावर का इस्तेमाल बढ़ रहा है. उत्तरी कैलिफोर्निया में "द गीजर्स" भू-तापीय कॉम्प्लेक्स दुनिया का सबसे बड़ा संयंत्र है, जहां से 7,25,000 घरों के लिए बिजली पैदा होती है.
‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर‘ पर स्थित इंडोनेशिया के पास विशाल भू-तापीय संसाधन हैं. वायांग विंडू पावर प्लांट देश की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति का अहम हिस्सा है.
चुनौतियां और संभावनाएं
भू-तापीय ऊर्जा के लिए शुरुआती ड्रिलिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत सबसे बड़ी चुनौती है. इसके अलावा, यह ऊर्जा स्थान पर निर्भर है क्योंकि हर क्षेत्र में यह उपलब्ध नहीं होती.
हालांकि, तकनीकी विकास इन बाधाओं को दूर कर रहा है. एन्हांस्ड भू-तापीय सिस्टम (ईजीएस) उन क्षेत्रों में कृत्रिम जलाशय बनाते हैं जहां प्राकृतिक स्रोत नहीं हैं. क्लोज्ड-लूप सिस्टम भी विकसित हो रहे हैं. इनमें तरल पदार्थ को सील्ड सिस्टम में फिर से बहाया जाता है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है.
आईईए ने भू-तापीय ऊर्जा की क्षमता को वैश्विक नेट-जीरो लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण बताया है. पवन और सौर ऊर्जा के उलट, यह ऊर्जा मौसम पर निर्भर नहीं करती और लगातार बिजली सप्लाई कर सकती है.
कई शहर जिले के स्तर पर जियोथर्मल हीटिंग सिस्टम पर जोर दे रहे हैं. पेरिस जैसे शहर अपनी ऊर्जा जरूरतें भू-तापीय स्रोतों से पूरी करने की दिशा में काम कर रहे हैं. जर्मनी और जापान जैसे देश भी इस क्षेत्र में अपने निवेश बढ़ा रहे हैं.
आगे की राह
विशेषज्ञों का कहना है कि भू-तापीय ऊर्जा की पूरी क्षमता को हासिल करने के लिए सरकारों और उद्योगों को लागत घटाने और तकनीकी विकास में तेजी लाने की जरूरत है. तेल और गैस क्षेत्र के साथ सहयोग इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है.
आईईए की रिपोर्ट कहती है कि भू-तापीय ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा की दौड़ में एक छिपा हुआ ताकतवर खिलाड़ी है. सही निवेश और नीति समर्थन के साथ, यह ऊर्जा स्रोत वैश्विक ऊर्जा संक्रमण में अहम भूमिका निभा सकता है.
धरती के नीचे छिपा यह समाधान हमारे पैरों तले मौजूद है और इसके इस्तेमाल से दुनिया की ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा किया जा सकता है.
जियोथर्मल एनर्जी को अभी तक ऊर्जा स्रोतों में उतनी जगह नहीं मिली है, जितनी इसमे संभावनाएं हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दशकों में जियोथर्मल एनर्जी वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र को क्रांतिकारी रूप से बदल सकती है.अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक भू-तापीय ऊर्जा दुनिया की 15 फीसदी बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. अभी इसकी हिस्सेदारी केवल एक फीसदी है.
यह लक्ष्य तभी हासिल हो सकता है जब भू-तापीय क्षमता को 800 गीगावॉट तक बढ़ाया जाए. यह क्षमता अमेरिका और भारत की कुल सालाना बिजली खपत के बराबर होगी. हालांकि, आईईए ने कहा है कि इसे संभव बनाने के लिए तकनीकी विकास और लागत में कमी लाना जरूरी है.
नवीकरणीय ऊर्जा में नई उम्मीद
भू-तापीय ऊर्जा, जो धरती के नीचे की गर्मी से मिलती है, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में खास जगह बना सकती है. सौर और पवन ऊर्जा के उलट, यह ऊर्जा स्थिर और लगातार सप्लाई देती है. इस वजह से इसे बिजली के बेसलोड (आधार) के लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है.
आईईए ने सुझाव दिया है कि तेल और गैस उद्योग के अनुभव का फायदा उठाया जाए. उनकी ड्रिलिंग तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करके भू-तापीय प्रोजेक्ट्स की लागत घटाई जा सकती है.
जर्मनी ने हाल ही में भू-तापीय ऊर्जा के विस्तार को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई है. सरकार ने भू-तापीय संयंत्रों के लिए स्वीकृति प्रक्रिया तेज करने पर जोर दिया है. यह कदम यूरोप के ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों का हिस्सा है. 2023 में ऊर्जा क्षेत्र के उत्सर्जन ने नया रिकॉर्ड बनाया है. इस विषय पर सोमवार को होने वाली यूरोपीय संघ के ऊर्जा मंत्रियों की बैठक में चर्चा होगी.
भू-तापीय ऊर्जा कैसे काम करती है?
भू-तापीय ऊर्जा धरती के केंद्र से आती है. यह गर्मी रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय और धरती के निर्माण से बची हुई ऊर्जा के कारण बनती है. यह गर्मी सतह के नीचे गर्म पानी और भाप के रूप में जमा होती है. इस ऊर्जा को इस्तेमाल में लाने के लिए भू-तापीय संयंत्र तीन प्रमुख तकनीकों का उपयोग करते हैं.
पहली है, ड्राई स्टीम प्लांट्स, जिनमें सीधे भाप का इस्तेमाल कर टर्बाइन चलाई जाती हैं. फ्लैश स्टीम प्लांट्स में उच्च दबाव वाले गर्म पानी को भाप में बदलकर बिजली बनाई जाती है. और तीसरी है, बाइनरी साइकिल प्लांट्स, जिनमें भू-तापीय गर्मी को एक सेकंडरी फ्लूइड में बदलते हैं. इसका उबलने का तापमान कम होता है और इससे टर्बाइन चलाई जाती हैं.
इसके अलावा घरों और व्यवसायों के लिए जियोथर्मल एनर्जी पैदा करने के लिए ग्राउंड-सोर्स हीट पंप्स का उपयोग किया जाता है. ये सिस्टम धरती के नीचे के स्थिर तापमान का उपयोग करके हीटिंग और कूलिंग देते हैं.
दुनिया भर में सफलता की कहानियां
कई देशों ने भू-तापीय ऊर्जा को अपने पावर ग्रिड में शामिल किया है और इस ऊर्जा स्रोत ने अहम कामयाबी हासिल कि है. आइसलैंड भू-तापीय ऊर्जा में दुनिया में सबसे आगे है. यहां 25 फीसदी बिजली इसी स्रोत से मिलती है, और लगभग सभी घर इसी से गर्म किए जाते हैं. हेल्लीशेदी पावर प्लांट इसकी क्षमता का बेहतरीन उदाहरण है.
केन्या की रिफ्ट वैली में स्थित ओल्कारिया भू-तापीय संयंत्र केन्या की 30 फीसदी बिजली जरूरतें पूरी करता है. केन्या अफ्रीका में इस ऊर्जा के विकास में सबसे आगे है. अमेरिका में भी जियोथर्मल पावर का इस्तेमाल बढ़ रहा है. उत्तरी कैलिफोर्निया में "द गीजर्स" भू-तापीय कॉम्प्लेक्स दुनिया का सबसे बड़ा संयंत्र है, जहां से 7,25,000 घरों के लिए बिजली पैदा होती है.
‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर‘ पर स्थित इंडोनेशिया के पास विशाल भू-तापीय संसाधन हैं. वायांग विंडू पावर प्लांट देश की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति का अहम हिस्सा है.
चुनौतियां और संभावनाएं
भू-तापीय ऊर्जा के लिए शुरुआती ड्रिलिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत सबसे बड़ी चुनौती है. इसके अलावा, यह ऊर्जा स्थान पर निर्भर है क्योंकि हर क्षेत्र में यह उपलब्ध नहीं होती.
हालांकि, तकनीकी विकास इन बाधाओं को दूर कर रहा है. एन्हांस्ड भू-तापीय सिस्टम (ईजीएस) उन क्षेत्रों में कृत्रिम जलाशय बनाते हैं जहां प्राकृतिक स्रोत नहीं हैं. क्लोज्ड-लूप सिस्टम भी विकसित हो रहे हैं. इनमें तरल पदार्थ को सील्ड सिस्टम में फिर से बहाया जाता है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है.
आईईए ने भू-तापीय ऊर्जा की क्षमता को वैश्विक नेट-जीरो लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण बताया है. पवन और सौर ऊर्जा के उलट, यह ऊर्जा मौसम पर निर्भर नहीं करती और लगातार बिजली सप्लाई कर सकती है.
कई शहर जिले के स्तर पर जियोथर्मल हीटिंग सिस्टम पर जोर दे रहे हैं. पेरिस जैसे शहर अपनी ऊर्जा जरूरतें भू-तापीय स्रोतों से पूरी करने की दिशा में काम कर रहे हैं. जर्मनी और जापान जैसे देश भी इस क्षेत्र में अपने निवेश बढ़ा रहे हैं.
आगे की राह
विशेषज्ञों का कहना है कि भू-तापीय ऊर्जा की पूरी क्षमता को हासिल करने के लिए सरकारों और उद्योगों को लागत घटाने और तकनीकी विकास में तेजी लाने की जरूरत है. तेल और गैस क्षेत्र के साथ सहयोग इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है.
आईईए की रिपोर्ट कहती है कि भू-तापीय ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा की दौड़ में एक छिपा हुआ ताकतवर खिलाड़ी है. सही निवेश और नीति समर्थन के साथ, यह ऊर्जा स्रोत वैश्विक ऊर्जा संक्रमण में अहम भूमिका निभा सकता है.
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