Jawaharlal Nehru Death Anniversary 2019: 11 बार नॉमिनेट होने के बावजूद भी जवाहरलाल नेहरू नहीं पा सके नोबेल पुरस्कार, जानिए क्यों?
पंडित जवाहरलाल नेहरू (Photo Credits: Getty Images)

Pandit Jawaharlal Nehru Death Anniversary 2019: नोबल पुरस्कार फाउंडेशन संस्था यूं तो पूर्व में नामांकित हो चुके लोगों के नामों का खुलासा नहीं करती, लेकिन पिछले दिनों इस संस्था ने 1901 से 1956 तक नोबल पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए नामांकित हुए ऐसे नामों का खुलासा किया, जिन्हें नोबल पुरस्कार पाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ. इस सूची का अध्ययन करने के पश्चात हैरानी इस बात को लेकर हुई कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) को 1950 से 1955 यानी पांच सालों में 11 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन नोबल पुरस्कार के लिए उन्हें स्टॉक होम जाने का सौभाग्य कभी भी प्राप्त नहीं हुआ. आइये जानें उन्हें कब-कब और क्यों नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और क्यों नहीं मिला उन्हें यह पुरस्कार...

नोबल पुरस्कार यानी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारों में एक. समाज में विशिष्ठ योगदान के लिए विभिन्न क्षेत्र के लोगों को स्टॉक होम में आमंत्रित कर नोबल पुरस्कार देने की व्यवस्था है. गौरतलब है कि यह पुरस्कार स्वीडन के अल्फ्रेड नोबल के नाम से शुरू किया गया है. जहां तक भारत की बात है तो अब तक रविंद्रनाथ टैगोर, हरगोविंद खुराना, सीवी रमण, वीएएस नायपॉल, वेंकट रामाकृष्णन, मदर टेरेसा, सुब्रहमण्यम चंद्रशेखर, कैलाश सत्यार्थी, आर के पचौरी, अमर्त्य सेन को उनके विशिष्ठ सामाजिक कार्यों के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. लेकिन पिछले दिनों नोबल पुरस्कार फाउंडेशन संस्था द्वारा पूर्व के नामित सदस्यों की सूची जारी होने के बाद यह देखकर हैरानी हुई कि पांच सालों में 11 बार नामांकित होने के बावजूद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु इस पुरस्कार से अंतिम समय तक वंचित रहे.

कब-कब और क्यों नामांकित हुए नेहरू?

नोबेल फाउंडेशन की वेबसाइट में दर्ज रिकॉर्ड के अनुसार, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत में संसदीय सरकार स्थापित करने की पहल की. भारत की आजादी की लड़ाई के प्रमुख नायकों में उन्हे भी गिना जाता है. 1950 में उन्हें तटस्थ विदेश नीति और गांधीजी के मूल्यों पर चलने के लिए शांति नोबल पुरस्कार के लिए उन्हें दो लोगों की तरफ से नामांकित किया गया था, लेकिन अंतिम समय में उनकी जगह यह शांति पुरस्कार अमरीकी कूटनयिक राल्फ बूंचे को फलस्तीनी इलाकों में मध्यस्थता स्थापित करने के एवज में दे दिया गया. सन 1951 में नेहरू को तीन अलग-अलग लोगों ने नामांकित किया था, जिसमें एक थे 1946 में नोबल पुरस्कार जीत चुके अमेरिका के एमिली ग्रीन बाल्च, लेकिन शांति का यह नोबल पुरस्कार अंततः फ्रांसीसी ट्रेड यूनियन नेता लिओन यूहॉक्स को मिला.

इसके पश्चात 1953 में नेहरू जी को 3 बार शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया. इस बार उनके लिए तीनों नामांकन बेल्जियम नेशनल असेंबली के सदस्यों की तरफ से आये थे, लेकिन यह शांति पुरस्कार मिला जॉर्ज सी मार्शन को. ध्यान हो कि जॉर्ज सी मार्शन ने दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना का नेतृत्व किया था. 1954 में नेहरू (और पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री एटली) को ब्रिटेन और भारत के बीच शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालने के एवज में दो बार नामांकित किया गया था. नेहरू को प्रोफेसर सीप ने ही दोनों बार नामित किया था. यह नामांकन उन्हें 1947 में ब्रिटेन और भारत के बीच शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालने के लिए गया था. यह भी पढ़ें: Jawaharlal Nehru Death Anniversary 2019: लाल किले पर तिरंगा फहराने वाले पहले शख्स थे पंडित जवाहर लाल नेहरू, जानें उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से

अंतिम बार नेहरू जी को साल 1955 में एक बार फिर नामांकित किया गया था, इस वर्ष किसी को भी यह पुरस्कार नहीं दिया गया. लिहाजा इस बार भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

क्यों नहीं मिला नेहरू को नोबल पुरस्कार

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ ‘पंचशील का समझौता’ किया था, ताकि देश के सैन्य संसाधनों का अनावश्यक विस्तार नहीं करते हुए देश के विकास पर ध्यान दिया जा सके. 1940 में शीत युद्ध के दरम्यान अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने भारत को एक बेहतर सहयोगी मानते थे. लेकिन नेहरू ने गुट निरपेक्षता की नीति को महत्व दिया. अमेरिका को यह नीति रास नहीं आयी.

पं जवाहरलाल नेहरू ने विश्व शांति को ध्यान में रखते हुए 1948 में जम्मू और कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले को नजरंदाज किया. 1962 में चीन के साथ युद्ध टालने का अंतिम समय तक कोशिश की. लेकिन चीन ने भारत पर युद्ध थोपकर नेहरू की छवि खराब कर दी. इस तरह ऐन वक्त पर पंडित जवाहरलाल नेहरू शांति का नोबल पुरस्कार पाते-पाते रह गये.