यस मैडम लोगों का ध्यान खींचने के लिए झूठ बोलने वाली पहली कंपनी नहीं है. पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं. लेकिन इससे मार्केटिंग की नैतिकता पर सवाल खड़े होते हैं कि क्या लोकप्रिय होने के लिए झूठ बोलना जायज है?पाइरेट्स ऑफ दी कैरेबियन फिल्म के हिंदी डब वर्जन में जैक स्पैरो का किरदार एक डायलॉग बोलता है- बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा. भारत की कई कंपनियां अपने प्रचार के लिए यही तरीका अपना रही हैं. पहले वे कोई बेतुकी या हैरान करने वाली बात कहती हैं, फिर जब लोग उस बारे में बात करने लगते हैं तो वे कहती हैं कि अरे, हम तो इसके जरिए जागरूकता फैला रहे थे.
ताजा उदाहरण यस मैडम स्टार्टअप का है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक मेल का स्क्रीनशॉट वायरल हुआ. यह मेल कथित तौर पर यस मैडम की एचआर मैनेजर की ओर से कर्मचारियों को भेजा गया था. इसमें लिखा था कि कंपनी ने कर्मचारियों के तनाव का स्तर जानने के लिए एक सर्वे किया था और जिन कर्मचारियों में तनाव का गंभीर स्तर पाया गया, उन्हें कंपनी नौकरी से निकाल रही है.
सोशल मीडिया पर कंपनी के इस फैसले की जमकर आलोचना हुई. कुछ लोगों ने यह भी कहा कि यह कंपनी का कोई पब्लिसिटी स्टंट हो सकता है. अगले दिन यही बात सही साबित हुई. कंपनी ने तीन पन्नों का बयान जारी कर कहा कि किसी को नौकरी से नहीं निकाला गया है. कार्यस्थल पर होने वाले तनाव के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह कवायद की गई थी. इस बयान में कंपनी ने अपनी एक नई सेवा का प्रचार भी किया.
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आग की तरह क्यों फैली यह खबर
डॉ. प्राची दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में मनोविज्ञान की वरिष्ठ सलाहकार हैं. उनका कहना है कि भारत में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है, इसलिए नौकरी जाने की खबरें बहुत ध्यान खींचती हैं. डॉ. प्राची ने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "बड़ी संख्या में लोगों की जिंदगी नौकरी पर निर्भर रहती है. नौकरी जाने से बहुत बड़ा झटका लगता है. इसलिए ऐसी खबरें सुनकर लोगों को अंदर ही अंदर अपनी नौकरी की भी चिंता सताने लगती है कि कल को हमारे साथ ऐसा ना हो जाए.”
नौकरी जाने के साथ-साथ यह मामला मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है. जानकार मानते हैं कि तनाव से जूझ रहे लोगों को नौकरी से निकाल देने की बात आम लोगों को बेहद गलत लगी, इसलिए इसकी इतनी आलोचना हुई. दरअसल, नौकरीपेशा लोगों के लिए कार्यस्थल पर होने वाला तनाव एक गंभीर मुद्दा है. हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म मेडीबडी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 60 फीसदी से ज्यादा भारतीय कर्मचारी काम संबंधी तनाव और वर्क-लाइफ बैलेंस ना होने के चलते शारीरिक और मानसिक थकान का अनुभव करते हैं.
शॉक मार्केटिंग का किया गया इस्तेमाल
बलदेव राज मार्केटिंग एजेंसी प्रायस कम्युनिकेशंस के फाउंडर और सीईओ हैं. उन्हें इस क्षेत्र में करीब 25 वर्षों का अनुभव है. उनका कहना है कि इस मामले में यस मैडम ने शॉक मार्केटिंग का इस्तेमाल किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "आम जीवन और नियमित गतिविधियों से इतर, अगर कोई भी चीज अचानक से आपका ध्यान आकर्षित करती है तो वह एक शॉक है. मार्केटिंग में लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.”
वे आगे कहते हैं, "डिजिटल माध्यमों के बढ़ते चलन की वजह से लोगों का, खासकर युवा लोगों का अटेंशन स्पैन काफी कम हो गया है. तीन-चार सेकेंड के भीतर अगर कोई वीडियो अच्छी नहीं लगती तो हम उसे स्किप कर देते हैं. ऐसे में लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कई कंपनियां ऐसी रणनीति अपनाती हैं. इसके अलावा, विज्ञापनों पर खर्च किए बिना ही लाइमलाइट में आने के लिए भी कंपनियां यह रास्ता अपनाती हैं.”
हालांकि, यस मैडम शॉक मार्केटिंग का इस्तेमाल करने वाली पहली कंपनी या व्यक्ति नहीं है. इस साल जनवरी में फीवर एफएम के सीईओ ने घोषणा की थी कि वे अपना रेडियो स्टेशन बंद कर रहे हैं. यह सुनकर बड़ी संख्या में लोगों ने अपना दुख जाहिर किया. लेकिन बाद में सामने आया कि स्टेशन बंद नहीं हो रहा है बल्कि उसे नए रूप में दोबारा से लॉन्च किया जा रहा है. इसी तरह, पूनम पांडे का अपनी मौत की झूठी खबर फैलाना भी शॉक मार्केटिंग का एक उदाहरण है.
क्या शॉक मार्केटिंग का इस्तेमाल करना सही है?
बलदेव राज का मानना है कि शॉक मार्केटिंग कोई बुरी चीज नहीं है लेकिन इसका इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "अगर शॉक मार्केटिंग से लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो इससे कंपनी को भी नुकसान होगा. जैसा कि यस मैडम के मामले में हो रहा है. वे लोग यह नहीं समझ पाए कि उनका तरीका लोगों को नकारात्मक रूप से चौंका रहा है.”
बलदेव राज शॉक मार्केटिंग का एक सकारात्मक उदाहरण भी बताते हैं. वे कहते हैं, "करीब दो महीने पहले जमैटो के सीईओ दीपिंदर गोयल डिलीवरी बॉय बनकर सामने आए थे और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर खाना डिलीवर किया था. यह भी लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी लेकिन इससे दीपिंदर की एक पॉजिटिव इमेज बनी कि वे खुद जमीन पर उतरकर डिलीवरी बॉयज की परेशानी समझ रहे हैं. इससे उन्हें और उनकी कंपनी को फायदा हुआ.”
हालांकि पिछले महीने एक जॉब ऑफर की वजह से जमैटो की आलोचना भी हुई. दरअसल, दीपिंदर गोयल ने एक पोस्ट किया था कि उन्हें चीफ ऑफ स्टाफ पद के लिए एक व्यक्ति की जरूरत है. इसमें शर्त यह थी कि इस काम के लिए पहले साल कोई वेतन नहीं दिया जाएगा, बल्कि उम्मीदवार को 20 लाख रुपए जोमैटो को देने होंगे. इस अजीब शर्त ने खूब सुर्खियां बटोरीं. हालांकि, बाद में दीपिंदर अपनी बात से पलट गए और उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक फिल्टर था, जिसे सही उम्मीदवार ढूंढ़ने के लिए लगाया गया था. इसके बाद उन पर लोगों की नजर में बने रहने के लिए झूठ बोलने के आरोप लगे.
मार्केटिंग एक्सपर्ट क्या कहते हैं
मार्केटिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों ने यस मैडम के हालिया अभियान की काफी आलोचना की है. उन्होंने इसे पब्लिसिटी स्टंट और मार्केटिंग गिमिक बताया है. वे इसे कंपनी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं मानते. जानकार कहते हैं कि मार्केटिंग में रचनात्मकता होनी चाहिए और लोगों को झूठी जानकारी देना कोई रचनात्मकता नहीं है. वे ब्रांडों को सलाह देते हैं कि ऐसे लापरवाह स्टंट करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश से बचना चाहिए.
संचार विशेषज्ञ कार्तिक श्रीनिवासन अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि ऐसे तरीकों का इस्तेमाल सभी कंपनियां कर सकती हैं लेकिन वे ऐसा नहीं करतीं, क्योंकि लोगों को झूठी जानकारी देकर भ्रमित करना गलत है. वे आगे लिखते हैं, "निश्चित तौर पर अब ज्यादा लोग यस मैडम के बारे में जानते हैं, लेकिन यह क्यों मान लिया जाए कि जो लोग उसके बारे में जान गए हैं, वे उसकी सेवाओं पर भी भरोसा कर लेंगे. आखिर कंपनी से उनका परिचय एक झूठ की वजह से हुआ है.”
यस मैडम को फायदा होगा या नुकसान
हालिया घटनाक्रम के बाद यस मैडम को काफी लोकप्रियता हासिल हो गई है. लेकिन क्या इससे उसे कुछ फायदा भी होगा. बलदेव राज कहते हैं, "यस मैडम ने लोगों का ध्यान तो खींच लिया है. लेकिन अगर इस वजह से उनके खिलाफ कोई केस दर्ज हो गया या कोर्ट में पीआईएल दाखिल हो गई तो कंपनी के प्रमोटर और निवेशक छिटक सकते हैं, क्योंकि ब्रांड की नकारात्मक छवि बन रही है.”
वहीं, डॉ. प्राची कहती हैं, "अगर आप पहले गलत करके फिर कुछ सही करते हैं या बाद में उस बारे में स्पष्टीकरण देते हैं तो लोग उस चाल को समझ जाते हैं. जैसे, अगर कोई बच्चा रोकर अपनी बात मनवा लेता है तो तब के लिए तो उसका काम बन जाता है लेकिन फिर यह धारणा बन जाती है कि यह बच्चा अपनी बात मनवाने के लिए रोता है. इसी तरह अगर कोई कंपनी ध्यान खींचने के लिए ऐसे काम करती है, तो लोगों को लंबे समय तक वह बात याद रहती है.”