Teachers' Day 2019 Speech: माननीय प्रधानाचार्य, सम्मानित शिक्षकगण एवं साथियों, आप सभी को यथायोग्य अभिवादन! आज मैं स्वयं को बड़ा भाग्यशाली समझ रहा हूं कि शिक्षक दिवस (Teachers' Day) जैसे पावन पर्व पर मुझे उन शिक्षकगणों के संदर्भ में दो बात कहने का अवसर मिला, जो देशहित के लिए एक सभ्य एवं शिक्षित समाज का निर्माण करते हैं. शिक्षा की महत्ता को कुछ शब्दों में समेट देना संभव नहीं है. क्योंकि शिक्षक (Teachers') और शिक्षण उस विशाल कल्पवृक्ष की तरह है जो आपको आपकी इच्छानुसार फल प्रदान करता है, आपको शिखर से शिखर तक पहुंचा देता है. एक शिक्षक सभ्य समाज को नेतृत्व करता है. वह गीली मिट्टी को मूर्त रूप प्रदान करता है और उसमें मानवता के प्राण फूंकता है.
सर्वप्रथम मैं आपसे पूछता हूं कि शिक्षक क्या है? शिक्षक कौन है? प्रातःकाल उठकर तैयार होकर समय से स्कूल पहुंचना, फिर पूरे दिन समय सारणी के अनुरूप विद्यार्थियों को ज्ञान बांचना.. छात्र की गल्तियों को सुधारना... जरूरत पड़ने पर दंड देना... अथवा बेहतर परिणामों पर पुरस्कृत करना... क्या एक शिक्षक का बस यही दायित्व होता है?
शायद नहीं! शिक्षण एक ऐसा पेशा है, जिसके लिए समर्पण, निरंतरता और बड़प्पन की आवश्यकता होती है. एक शिक्षक का कर्तव्य अथवा दायित्व केवल स्कूल या कॉलेज की दीवारों तक सिमट कर नहीं रहता. शिक्षक भावनात्मक रूप से अपने हर विद्यार्थी से जुड़ा होता है. फिर वह चाहे अमीर हो, गरीब हो, मेधावी हो अथवा पढ़ाई में बहुत ज्यादा अच्छा नहीं हो. उसे सारे विद्यार्थियों को एक नजर से देखना और गढना होता है. उसके लिए हर विद्यार्थी समान महत्व रखता है.
अब यह बात अलग है कि कक्षा के सभी विद्यार्थी टॉपर नहीं बन पाते. कुछ के मार्क्स अच्छे आते हैं तो कुछ के कम. हर विद्यार्थी का मनोविकास अथवा सेंस ऑफ ह्यूमर अलग-अलग होता है, जिसका असर उसके मार्क्स पर पड़ता है. लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं कि शिक्षक कमजोर बच्चों को साइड लाइन कर दे, वह हर संभव प्रयास करता है कि कमजोर बच्चा मेधावी बच्चे के समानांतर खड़ा हो. यह भी पढ़ें: Teachers' Day 2019: डॉ. राधाकृष्णन की जयंती पर ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, जानें इसका इतिहास और महत्व
अब हम आते हैं उस मुद्दे पर कि हम 5 सिंतबर को ही शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं, यह तो आप भी जानते होंगे कि 5 सितंबर को हम देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन की जयंती भी मनाते हैं. इस जयंती को ही हमने शिक्षक दिवस का रूप दे दिया. डॉक्टर राधाकृष्णन इस सम्मान के अधिकारी थे, क्योंकि वे न केवल मेधावी छात्र थे, बल्कि उन्होंने काफी संघर्ष करते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. अपनी पढाई का पूरा खर्च वे अपने स्कॉलरशिप से अर्न करते थे. वह पूरी दुनिया को ही एक स्कूल के रूप में देखते थे. देश का राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य 40 वर्ष अध्यापन को दिये. उनके छात्र उनसे बहुत प्यार करते थे.
एक बार उनके विद्यार्थियों ने उनका जन्मदिन सेलीब्रेट करने की योजना बनाई. इसके लिए जब छात्र उनसे इजाजत लेने उनके पास पहुंचे तो उन्होंने बड़ी सादगी से कहा मुझे बहुत अच्छा लगेगा अगर मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए. उनकी इस इच्छा को पूरा सम्मान देते हुए भारत सरकार ने उनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया. सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन ने अपने दमखम से यह दिखा दिया कि एक गरीब ब्राह्मण अपनी शिक्षा के दम पर देश का सर्वोच्च पद हासिल कर लेता है, एक विद्यार्थी के लिए इससे बड़ी प्रेरणा भला और क्या हो सकती है.
अपने भाषण के अंत में बस यही कहना चाहूंगा, कि आइये हम सब मिलकर उनके प्रयासों को मान-सम्मान दें, शिक्षा एवं देश के प्रति उनकी निष्ठा की, उनकी मेहनत की कद्र करें और उनका सम्मान करें. बहुत-बहुत धन्यवाद.