Govatsa Dwadashi 2020: कब है गोवत्स द्वाद्वशी? क्या है व्रत एवं पूजा का विधान? जानें हिंदू धर्म में गाय को इतना पूज्यनीय क्यों मानते हैं?
गोवत्स द्वादशी 2019 (Photo Credits: File Image)

Govatsa Dwadashi 2020: सनातन धर्म में गाय को माता माना जाता है. गाय एवं उसके बछड़े के महात्म्य से जुड़ा ऐसा ही एक पर्व है गोवत्स द्वादशी व्रत. इस दिन महिलाएं गाय और बछड़ों की पूजा करती हैं. यह पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी के दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि गोवत्स द्वाद्वशी का यह व्रत एवं पूजा महिलाएं अपने पुत्र की मंगलकामना के लिए करती हैं. इसीलिए यह व्रत केवल पुत्रवती स्त्रियां ही करती हैं. हिंदू धर्म में इस व्रत का बहुत महत्व है. आइये जानें गोवत्स द्वादशी या 'बछ वारस' का व्रत कैसे किया जाता है. इस वर्ष गोवत्स द्वाद्वशी 11 नवंबर 2020 को मनाया जायेगा

कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की द्वादशी के दिन गोवत्स द्वादशी उत्सव पर गाय एवं उनके बछड़े की पूजा की जाती है. यह पर्व रमा एकादशी के अगले दिन और धनतेरस से एक दिन पूर्व सेलीब्रेट किया जाता है. इस पूजा की खास बात यह है कि यह गोधूलि बेला में की जाती है. इस व्रत को करने वाले गेहूं अथवा दूध निर्मित उत्पादों का सेवन नहीं करते. भारत में कहीं इसे 'बछ बारस' तो कहीं 'नंदिनी व्रत' और कहीं 'वाघ बरस' के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं में नंदिनी गाय को दिव्य गाय भी माना जाता है. यह भी पढ़े: गोवत्स द्वादशी 2019: संतान के लिए मां रखती हैं यह व्रत, गाय व बछड़े की होती है पूजा, जानें इसकी महात्म्य एवं व्रत-पूजा की विधि

व्रत एवं पूजा विधान

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वाद्वशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान से निवृत हों. अब गोवत्स द्वाद्वशी व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन फलाहार व्रत रखकर शाम के समय पूजा करना चाहिए. गाय एवं बछड़े को स्नान करा कर नये वस्त्र धारण करायें. उन्हें फूलों की माला पहनाएं. रोली से तिलक करें. चावल दूध चढ़ाएं. तांबे के लोटे में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा लाल फूल रखकर निम्न मंत्र का जाप करें.

मंत्र- क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।

सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥

अब गौमाता के पैरों में लगी मिट्टी का अपने माथे पर तिलक लगाएं. इसके बाद बक्ष बारस की पारंपरिक कथा सुनें और अंत में गोमाता की आरती उतारकर व्रत का पारण करें. कुंवारे बेटे की शर्ट पर सातियां उसे पहनाएं, मान्यता है कि ऐसा करने से वह सारी बुरी नजर एवं शक्तियों से बच जाता है. अगर आपके घर में गाय नहीं है तो पड़ोस की गाय की पूजा भी कर सकते हैं. और अगर यह भी संभव नहीं है तो आप गीली मिट्टी से गाय एवं बछड़े की मूर्ति गढ़कर उसकी पूजा कर सकती हैं.

भविष्य पुराण में उल्लेखित है कि गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित होते हैं. इसीलिए हिंदू धर्म में गाय को सबसे पूज्यनीय माना जाता है.