पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विघ्नहर्ता श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. लेकिन इस चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित माना गया है. जिस चंद्रमा को शीतलता का प्रतीक माना जाता है, आखिर ऐसा क्या हुआ, कि उसे देखने मात्र से कलंक लग जाता है. आइये जानें इस रहस्य के पीछे की कहानी क्या है.
यूं तो श्रीगणेश जी की हर चतुर्थी की पूजा की पूर्णता चंद्रदर्शन के बाद ही होती है. पुराणों में भी चंद्रदर्शन को बेहद शुभ माना गया है. लेकिन पूरे वर्ष में आखिर भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को ऐसा क्या होता है कि इस दिन लोग चंद्रमा के साये से भी बचने की कोशिश करते हैं. कहते हैं कि इस दिन चंद्र दर्शन की नकारात्मकता इतनी ज्यादा प्रभावशाली होती है कि इससे भगवान श्रीकृष्ण तक नहीं बच सके थे. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण पर स्मनतक नामक अत्यंत दुर्लभ मणि चुराने का आरोप लग गया. श्रीकृ्ष्ण जानते थे कि मणि उन्होंने नहीं चुराई है, इसलिए इस आरोप से वे काफी व्यथित थे. श्रीकृष्ण के धीर-गंभीर चेहरे को देखकर महर्षि नारद से नहीं रहा गया. उन्होंने श्रीकृष्ण को बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी के दिन अनजाने में उन्होंने चंद्रमा का दर्शन कर लिया था, इसी वजह से उन पर यह झूठा आरोप लगा है. श्रीकृष्ण महर्षि की बात समझ नहीं सके. उन्होंने महर्षि नारद से निवेदन किया कि वे इस विषय पर विस्तार से बतायें. नारद जी ने बताया कि एक बार रात के समय गणेशजी अपने मूषक पर सवार होकर खेल रहे थे, तभी मूषकराज को एक सांप दिख गया, वे डरकर उछल पड़े, जिससे गणेशजी मूषकराज की पीठ से भूमि पर जा गिरे. गणेश जी ने सोचा कि रात के वक्त उन्हें इस तरह गिरते किसी ने नहीं देखा होगा. वह तुरंत उठ खड़े हुए. लेकिन चंद्रदेव ने उन्हें गिरते देख लिया था, और वे खिलखिलाकर हंस पड़े. यह भी पढ़ें-Happy Ganesh Chaturthi 2020 Greetings: गणपति बप्पा मोरया, इन शानदार हिंदी Facebook Messages, WhatsApp Wishes, GIF Stickers, Photo SMS, Wallpapers, Quotes, Images के जरिए अपनों से कहें शुभ गणेश चतुर्थी
चंद्रदेव को खुद पर हंसते देख गणेशजी क्रोधित हो उठे. उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दिया कि आज के बाद तुम्हें जो भी देखेगा, वह किसी न किसी वजह से जीवन भर के लिए कलंकित हो जायेगा. संयोगवश उस दिन भाद्रपद की गणेश चतुर्थी का दिन था. गणेशजी का श्राप सुनकर चंद्रदेव घबरा गये. उन्होंने गणेशजी से श्राप वापस लेने की प्रार्थना की. चंद्रदेव के अनुनय-विनय पर गणेश जी का क्रोध शांत हो गया, उन्होंने चंद्रदेव के श्राप को भाद्रपद की शुक्लपक्ष की चतुर्थी यानी एक दिन के लिए सीमित कर दिया. श्रीकृ्ष्ण ने नारद से पूछा, -हे महर्षि कृपया इस कलंक से बाहर निकलने का मार्ग बतायें. तब नारद मुनि के सुझाव पर श्रीकृष्ण ने भाद्रपद की शुक्लपक्ष की चतुर्थी के दिन गणेशजी की पूजा-अर्चना की और असत्य चोरी के कलंक से मुक्ति पा सके.
कलंक निवारण मन्त्र-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद चतुर्थी के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिए वर्जित माना जाता है. धर्मसिन्धु के नियमानुसार भी भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी पर चंद्रोदय से लेकर चंद्रास्त तक चंद्र-दर्शन वर्ज्य माना गया है. अगर भूलवश भी इस दौरान चंद्र दर्शन हो जाये तो लगने वाले कलंक से मुक्ति पाने के लिए निम्न मंत्र का जाप करने से कलंक का प्रभाव काफी हद तक मिट सकता है. ये मंत्र है,
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥