साल 1969 में 19 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था. अब 50-52 साल बाद नरेंद्र मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के दस बैंकों का निजीकरण कर रही है. इससे पूर्व 2017 में केंद्र ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मर्ज करने की योजना बनाई, साल 2019 में 10 बैंकों का विलय कर 12 बैंकों को विस्तार दिया. 2021-22 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव रखा. यह भी पढ़ें: Gatari Amavasya 2023 Messages: गटारी अमावस्या की इन मराठी Quotes, WhatsApp Wishes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
बता दें कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण एवं वर्तमान बैंकिंग व्यवस्था पर अर्थ विशेषज्ञ बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर भिन्न-भिन्न राय रखते हैं. कुछ राष्ट्रीयकरण को बैंकों की मूल भावना का विरोधी बता रहे हैं, तो कुछ वित्तीय समावेश के लिए जरूरी बताते हैं. फिलहाल वर्तमान में बैंकिंग व्यवस्था चुनौतियों से गुजर रही है. राष्ट्रीयकरण के 54 वें वर्ष में जानते हैं कि बैंकों के सरकारी नीतियों के आमूल परिवर्तन के पीछे क्या तर्क हो सकता है.
क्यों किया गया बैंकों का राष्ट्रीयकरण?
आजादी के बाद अधिकांश बैंकों पर औद्योगिक घरानों का वर्चस्व था, लेकिन 60 के दशक में कई प्राइवेट बैंक दिवालिया होने लगे. 1947 से 55 तक आते-आते 360 से ज्यादा बैंक फेल हो गए. हर साल करीब 40 बैंक बंद होने लगे. तब 12 जुलाई 1969 को बेंगलुरु में कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण की मंशा बताई और एक सप्ताह बाद 19 जुलाई 1969 को रात्रि 8 बजे उन्होंने 14 निजी बैंकों (सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र) के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की.
उस समय इनका डिपॉजिट 50 करोड़ रुपये से अधिक था. 1980 में 6 और बैंकों (आंध्र बैंक, कारपोरेशन बैंक, न्यू बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब एंड सिंध बैंक और विजया बैंक) का राष्ट्रीयकरण किया गया. हालांकि बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे आर्थिक फैसले में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर और वित्त मंत्रालय के सचिव को शामिल नहीं किया गया था.
सरकारी बैंकों का निजीकरण क्यों?
अप्रैल 2021 में नीति आयोग ने विनिवेश विभाग को 4 सरकारी बैंकों सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक के निजीकरण की सिफारिश की, लेकिन इनके निजीकरण पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया. 2021 के बजट-सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दोनों सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की. इसी साल सरकार ने बैंकिंग कानून (संशोधन) बिल, 2021 को संसद में पारित के लिए सूचीबद्ध किया था. इस बिल के तहत सरकार 1970 और 1980 के बैंकिंग कंपनी एक्ट में संशोधन करना चाहती है.
1991 के आर्थिक संकट के बाद बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के लिए नरसिंहम समिति बनी. समिति ने नए प्राइवेट बैंक खोलने का सुझाव दिया था, साथ ही सरकारी बैंकों के विलय की भी सिफारिश की. 2008 में पहली बार कुछ सरकारी बैंकों का विलय किया गया. इसके बाद 2017 और 2019 में कुछ छोटे बैंकों का बड़े बैंकों में विलय किया गया था. फिलहाल सरकारी क्षेत्र के सिर्फ 12 बैंक रह गए हैं.