चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक विवाहित महिला को ओवेरियन कैंसर का पता चलने के बाद उसका गर्भाशय निकाल दिया जाना, जिससे वह गर्भधारण करने में असमर्थ हो जाए, इसे उसके पति के प्रति मानसिक क्रूरता नहीं कहा जा सकता है. जस्टिस आरएमटी टीका रमन और जस्टिस पीबी बालाजी की उच्च न्यायालय की पीठ ने 22 दिसंबर को फैसला सुनाया और परिवार अदालत के एक आदेश को बरकरार रखा. पारिवारिक अदालत ने मानसिक क्रूरता, परित्याग और तथ्यों को छिपाने के आधार पर अपनी शादी को खत्म करने की एक व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया था. करवा चौथ पर पत्नी का व्रत न रखना क्रूरता नहीं, हाईकोर्ट ने कहा- इस आधार पर नहीं दे सकते तलाक.
वर्तमान मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ता व्यक्ति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी ने अपने स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए थे. महिला के पति ने तर्क दिया कि उनकी पत्नी का गर्भाशय निकाले जाने के बाद बच्चे पैदा करने में असमर्थता हिंदू विवाह अधिनियम के तहत परिभाषित मानसिक क्रूरता के समान है.
ओवेरियन कैंसर के कारण पत्नी ने हटाया गर्भाशय
Wife removing uterus due to cancer leaving her unable to conceive not cruelty to husband: Madras High Court
report by @ayeshaarvind https://t.co/Tjm7WdW7se
— Bar & Bench (@barandbench) January 3, 2024
हालांकि, उच्च न्यायालय ने माना कि पारिवारिक अदालत ने ऐसी याचिका को खारिज करके सही किया था क्योंकि महिला को उसकी शादी के बाद कैंसर का पता चला था. उच्च न्यायालय ने कहा कि शादी से पहले उसमें कोई लक्षण नहीं थे और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने कोई चिकित्सीय जानकारी छिपाई थी.
कोर्ट ने कहा, “पत्नी कैंसर सर्वाइवर है. वह कैंसर की खतरनाक बीमारी से बची है. हालांकि, कैंसर से लड़ने के लिए इलाज के दौरान जीवन-घातक स्थिति के कारण डॉक्टर ने उसका गर्भाशय हटा दिया और इसकी सूचना पति को भी दे दी गई. पत्नी कैंसर से पीड़ित थी जिसके परिणामस्वरूप गर्भाशय को हटा दिया गया था, इसे तलाक के लिए मानसिक क्रूरता का आधार नहीं कहा जा सकता है."