Magical Stone: जैसलमेर के इस छोटे से पत्थर में हैं बड़े-बड़े गुण! सात समुद्र पार भी है इसकी भारी डिमांड! जानें क्या है इसका तिलिस्म?
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जैसलमेर (राजस्थान) में इन दिनों एक चमत्कारी पत्थर काफी सुर्खियों में है, जो दूध को दही बना देता है, आइये जाने क्या है, इस चमत्कारी पत्थर का रहस्य!

रेत और पत्थरों के बीच बसा राजस्थान देश का सबसे धनाध्य प्रदेश माना जाता है. कारण जानते हैं क्यों? क्योंकि पत्थरों के गर्भ में अतुल खनिज पदार्थ भरे पड़े हैं. इन पत्थरों की दुनिया से आये दिन कुछ-न-कुछ चौंकाने वाली खबरें हम पढ़ते-सुनते रहते हैं. पिछले दिनों राजस्थान के जैसलमेर से प्राप्त एक ऐसे ही चमत्कारी पत्थर की चर्चा इन दिनों तेजी से वायरल हो रही है.

दही एक ऐसा स्वादिष्ट एवं पौष्टिक पदार्थ है, जिसे हर कोई खाने के साथ खाना पसंद करता है. कोई दही के रूप में तो कोई छाछ, रायता, लस्सी आदि के रूप में. यहां तक कि भगवान को अर्पित की जाने वाली पंचामृत भी दही के बिना अधूरी है. कहने का आशय यह कि एक दही अनेक रूप में खाई जाती है. लेकिन जो दही दुकान में मिलती है, वैसी दही जमा पाना आसान नहीं, कुछ लोगों को तो दही जमाने के प्रोसेस तक का पता नहीं होता. अब कल्पना कीजिये कि ऐसे लोगों के हाथ में यह चमत्कारी पत्थर आ जाये तो दही जमाना कितना आसान हो जायेगा. हांलाकि दही जमाने के अलावा भी इस पत्थर में दूसरी कई खूबियां हैं, जिसके लिए इसे भारी मात्रा में विदेशों में निर्यात किया जाता है. यह भी पढ़ें : Dog Takes its Horse Friend for a Walk: क्यूट डॉग द्वारा अपने दोस्त घोड़े को सैर के लिए ले जाते हुए क्लिप वायरल, वीडियो देख हो जाएंगे हैरान

इस पत्थर में बड़े-बड़े गुण?

जैसलमेर से लगभग 40 किमी दूर स्थित एक गांव है हाबुर. यह चमत्कारी पत्थर इसी गांव में पायी जाती है. इस पत्थर को स्वर्णगिरि कहते हैं. यह पत्थर जामन का भी काम करती है, कि रात में दूध में इस पत्थर का टुकड़ा डाल दें तो अगली सुबह बाजार जैसी जमी हुई दही आपको प्राप्त होगी. इसके अलावा स्वर्णगिरी पत्थर का उपयोग खूबसूरत और आकर्षक बर्तन एवं सजावट के सामान इत्यादि बनाने के भी काम आता है. इसकी बहुपयोगिता को देखते हुए विदेशों में भी इसकी भारी मांग है.

क्या है इस पत्थर का तिलिस्म?

सामान्य लोग स्वर्णगिरी पत्थर को दैवीय गुण बताते हैं, लेकिन विज्ञान जो दैवीय गुणों अथवा चमत्कारों को नहीं मानता. देश विदेश के वैज्ञानिकों ने इस पत्थर पर काफी शोध करने के बाद पाया कि इसमें बायो केमिकल, अमीनो एसिड, फिनायल एलीनिया एवं रिफ्टोफेन टायरोसीन मौजूद होता है, जिसमें दूध को दही बनाने रासायनिक गुण होते हैं. कहा जाता है कि हजारों साल पहले यह जगह समुद्र से घिरा हुआ था. बीतते समय के साथ-साथ समुद्र सूखता गया. समुद्र सूखने के कारण समुद्री जीवाश्म में बदल गये. इसके बाद यहां पहाड़ों का निर्माण होता गया. लिहाजा पत्थरों से खनिजों का निर्माण होना शुरु हो गया. जीवाश्म होने से पत्थरों में तमाम कलर उभरकर आये, जिसकी वजह से इससे खूबसूरत बर्तन आदि बनाने के काम भी आये.