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Dowry Harassment Case: दहेज में सोने के 100 सिक्के ना मिलने पर तोड़ दी थी शादी, पति को सुप्रीम कोर्ट का झटका, पत्नी को मिलेगा 3 लाख रुपये का मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी को 3 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, जिसने सोने की मांग पूरी न होने पर शादी तोड़ दी थी. यह मामला 2006 का है. कोर्ट ने 19 साल के लंबे मुकदमे के बाद सजा को संशोधित करते हुए मुआवजे का आदेश दिया और कहा कि दोनों पक्ष अब अपने जीवन में आगे बढ़ चुके हैं.

देश Shubham Rai|
Dowry Harassment Case: दहेज में सोने के 100 सिक्के ना मिलने पर तोड़ दी थी शादी, पति को सुप्रीम कोर्ट का झटका, पत्नी को मिलेगा 3 लाख रुपये का मुआवजा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को उसकी पत्नी को 3 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसने सोने की मांग पूरी न होने पर शादी समाप्त कर दी थी. यह मामला [एम वेंकटेश्वरन बनाम द स्टेट] से संबंधित है.

जस्टिस केवी विश्वनाथन और एसवी भट्टी की पीठ ने आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एम वेंकटेश्वरन की सजा को बरकरार रखा. यह मामला तब सामने आया जब वेंकटेश्वरन ने दुल्हन के परिवार द्वारा 100 सोवरेन सोने की दहेज की मांग पूरी न करने पर शादी रिसेप्शन में सहयोग करने से इनकार कर दिया था.

पीठ ने कहा, "हम संतुष्ट हैं कि आईपीसी की धारा 498-ए के सभी तत्व पूरी तरह से सही हैं और यह कि अपीलार्थी (वेंकटेश्वरन) ने पीडब्ल्यू-4 (पत्नी) को सोने की अवैध मांग को पूरा करने के लिए प्रताड़ित किया. जब पीडब्ल्यू-4 और उसके रिश्तेदार इस मांग को पूरा करने में विफल रहे, तो उसने उन्हें प्रताड़ित करना जारी रखा. आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद हैं."

सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाई कोर्ट के 2022 के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वेंकटेश्वरन को आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया50, 420);" title="Share on Koo">

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Dowry Harassment Case: दहेज में सोने के 100 सिक्के ना मिलने पर तोड़ दी थी शादी, पति को सुप्रीम कोर्ट का झटका, पत्नी को मिलेगा 3 लाख रुपये का मुआवजा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को उसकी पत्नी को 3 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसने सोने की मांग पूरी न होने पर शादी समाप्त कर दी थी. यह मामला [एम वेंकटेश्वरन बनाम द स्टेट] से संबंधित है.

जस्टिस केवी विश्वनाथन और एसवी भट्टी की पीठ ने आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एम वेंकटेश्वरन की सजा को बरकरार रखा. यह मामला तब सामने आया जब वेंकटेश्वरन ने दुल्हन के परिवार द्वारा 100 सोवरेन सोने की दहेज की मांग पूरी न करने पर शादी रिसेप्शन में सहयोग करने से इनकार कर दिया था.

पीठ ने कहा, "हम संतुष्ट हैं कि आईपीसी की धारा 498-ए के सभी तत्व पूरी तरह से सही हैं और यह कि अपीलार्थी (वेंकटेश्वरन) ने पीडब्ल्यू-4 (पत्नी) को सोने की अवैध मांग को पूरा करने के लिए प्रताड़ित किया. जब पीडब्ल्यू-4 और उसके रिश्तेदार इस मांग को पूरा करने में विफल रहे, तो उसने उन्हें प्रताड़ित करना जारी रखा. आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद हैं."

सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाई कोर्ट के 2022 के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वेंकटेश्वरन को आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया था.

यह मामला वेंकटेश्वरन की पत्नी श्रीदेवी द्वारा लगाए गए आरोपों से शुरू हुआ, जिन्होंने उन पर दहेज उत्पीड़न और मानसिक क्रूरता का आरोप लगाया. उनकी शादी केवल तीन दिनों तक चली. आरोप था कि वेंकटेश्वरन ने दहेज की मांग पूरी न होने पर शादी रिसेप्शन में सहयोग करने से इनकार कर दिया था.

दोनों की शादी 2006 में हुई थी, लेकिन यह जल्द ही टूट गई. इसके बाद 2007 में वेंकटेश्वरन, उनके स्वर्गीय पिता और भाई के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के साथ क्रूरता), धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 506(2) (आपराधिक धमकी) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 (दहेज की मांग करने पर सजा) के तहत शिकायत दर्ज की गई.

ट्रायल कोर्ट ने अपीलार्थी के भाई को सभी आरोपों से बरी कर दिया और अपीलार्थी को धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन उसे धारा 498ए और 406 तथा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया. उसे धारा 498ए के तहत तीन साल की जेल और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एक साल की सजा सुनाई गई.

2017 में, अपीलार्थी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने धारा 406 के तहत सजा को रद्द कर दिया, लेकिन शेष सजा को बरकरार रखा. 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने भी सजा की पुष्टि की, लेकिन धारा 498ए के तहत सजा को घटाकर दो साल कर दिया, जबकि दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एक साल की सजा बरकरार रखी.

इसके बाद, अपीलार्थी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने 15 गवाहों के बयान सहित सबूतों की समीक्षा की, जिन्होंने दहेज उत्पीड़न के आरोपों की पुष्टि की. हालांकि, कोर्ट ने सजा को उस अवधि तक संशोधित कर दिया, जो अपीलार्थी ने पहले ही भुगत ली थी.

19 साल तक चले लंबे मुकदमे, दोनों पक्षों के जीवन में आगे बढ़ने और अपीलार्थी की समुदाय सेवा में योगदान देने की इच्छा को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपीलार्थी को चार हफ्ते के भीतर शिकायतकर्ता को 3,00,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया.

कोर्ट ने कहा, "इस घटना का संबंध वर्ष 2006 से है. शादी 31 मार्च 2006 को हुई थी और दंपति केवल तीन दिनों तक साथ रहे. हाई कोर्ट के आदेश से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता विदेश में बस गई है और उसकी शादी हो चुकी है. यह मामला लगभग 19 साल से चल रहा है. अपीलार्थी और पीडब्ल्यू-4 दोनों ने अपने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया है."

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर मुआवजा जमा नहीं किया गया, तो अपील खारिज कर दी जाएगी और शेष सजा लागू की जाएगी.

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