Kohinoor Diamond: अब किसे मिलेगा कोहिनूर, जिसके लिए हुआ कत्लेआम, बेहद दिलचस्प है इस हीरे का इतिहास
दुनिया का सबसे मशहूर हीरा ब्रिटेन पहुंचने से पहले भारत के कई शाही खानदानों से होकर गुजरा. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, कोहिनूर जिसके हाथ लगा उसके लिए बदकिस्मती ही लेकर आया. इसे पाने के लिए न जाने कितनों का खून बहाया गया.
Kohinoor Diamond Story In Hindi: कोहिनूर हीरा तो अभी ब्रिटेन में हैं मगर उसपर दावा भारत के साथ-साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी करते हैं. दुनिया का सबसे मशहूर हीरा ब्रिटेन पहुंचने से पहले भारत के कई शाही खानदानों से होकर गुजरा. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, कोहिनूर जिसके हाथ लगा उसके लिए बदकिस्मती ही लेकर आया. इसे पाने के लिए न जाने कितनों का खून बहाया गया. Britain के नए सम्राट King Charles-III की लंदन में हुई ताजपोशी, राजशाही तौर-तरीकों में बदलाव के दिए संकेत
अब किसे मिलेगा कोहिनूर का ताज
महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के सात दशक लंबे शासन के बाद अब बेहद कीमती कोहिनूर हीरे (Kohinoor Diamond) से जड़ा हुआ मुकुट अगल पीढ़ी के पास चला जाएगा. महारानी के निधन के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब बेशकीमती कोहिनूर जड़ा मुकुट किसके सिर की शान बढ़ाएगा.
बता दें कि कोहिनूर हीरा वर्तमान में प्लेटिनम के मुकुट में है जिसे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने इंग्लैंड के सम्राट के रूप में अपने शासनकाल के दौरान पहना था.
महारानी एलिजाबेथ-II के निधन के बाद कई लोगों का सुझाव है कि कोहिनूर जड़ित मुकुट को अगले सम्राट यानी किंग चार्ल्स III को सौंप देना चाहिए. हांलाकि, ब्रिटेन के राज परिवार और कोहिनूर के इतिहास के अनुसार, हीरा अलगी रानी कंसोर्ट कैमिला पार्कर बाउल्स (Camilla Parker Bowles) को समर्पित किया जाना चाहिए.
महारानी की घोषणा
इस साल फरवरी में, महारानी ने घोषणा की थी कि जब चार्ल्स इंग्लैंड में राजशाही की बागडोर संभालेंगे तो कैमिला पार्कर बाउल्स क्वीन कंसोर्ट बनेंगी. अब, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि कैमिला कोहिनूर पहनेगी.
कोहिनूर का इतिहास
कोहिनूर को दुनिया के सबसे कीमती हीरे के रूप में जाना जाता है. इसका वजन 105.6 कैरेट है. यह हीरा भारत में 14वीं सदी में मिला था. यह आंध्र प्रदेश के गुंटूर में काकतीय राजवंश के शासनकाल में मिला था. वारंगल में एक हिंदू मंदिर में इसे देवता की एक आंख के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक मलिक काफूर ने इसे लूट लिया था.
लिखित में पहला रिकॉर्ड 1750 के आसपास मिलता है जब फारसी शासक नादिर शाह ने मुगलों की राजधानी दिल्ली पर धावा बोला था. नादिर शाह पूरी दिल्ली लूटकर अफगानिस्तान ले गया. कीमती रत्नों से जड़ा राजमुकुट भी जिसमें कोहिनूर भी शामिल था.
कोहिनूर के लिए खूब बहा है खून
डेलरिम्पल के अनुसार, उस राजमुकुट की कीमत ताजमहल से चार गुना ज्यादा थी. मुकुट में कई पीढ़ियों से जमा किए गए हीरे मुगलों ने जड़वाए थे, जब 1747 में नादिर शाह मारा गया तो कोहिनूर उसके पोते के पास आ गया. उसने 1751 में इसे अफगान साम्राज्य के संस्थापक, अहमद शाह दुर्रानी को दे दिया.
कोहिनूर हीरा मुगल साम्राज्य के कई शासकों को सौंपे जाने के बाद, सिख महाराजा रणजीत सिंह लाहौर में इसे अपने अधिकार में ले लिया और पंजाब आ गए. महाराजा रणजीत सिंह की मौत से एक दिन पहले, 26 जून 1839 को दरबारियों में कोहिनूर को लेकर जंग छिड़ गई. महाराजा बेहद कमजोर थे और इशारों में बात कर रहे थे. आखिर में यह तय हुआ कि खड़क सिंह को ही कोहिनूर दिया जाएगा.
कत्लेआम
खड़क सिंह ने अक्टूबर 1839 में गद्दी संभाली मगर धियान सिंह ने बगावत कर दी. कोहिनूर अब धियान सिंह के भाई और जम्मू के राजा गुलाब सिंह के पास आ चुका था. जनवरी 1841 में गुलाब सिंह ने कोहिनूर को तोहफे के रूप में महाराजा शेर सिंह को दे दिया. यानी कोहिनूर वापस सिख साम्राज्य के पास आ चुका था मगर अभी इस हीरे के लिए और खून बहना था.डेलरिम्पल और आनंद की किताब के अनुसार, 15 सितंबर 1843 को शेर सिंह और प्रधानमंत्री धियान सिंह की तख्तापलट में हत्या कर दी गई. अगले दिन धियान के बेटे, हीरा सिंह की अगुवाई में हत्या का बदला ले लिया गया. 24 साल की उम्र में हीरा सिंह प्रधानमंत्री बने और 5 साल के दलीप सिंह को सम्राट के पद पर बिठाया. कोहिनूर अब एक नन्हे सम्राट की बांह से बंधा था.
अंग्रेजों के हाथ कैसे लगा कोहिनूर हीरा?
उस दौरान भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का दायरा बढ़ा रहे लॉर्ड डलहौजी की नजर कोहिनूर पर टिकी थी. सिखों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ाई छिड़ी. सिख साम्राज्य पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और 1849 की लाहौर संधि हुई. इसी संधि के तहत, महाराजा दलीप सिंह ने कोहिनूर हीरा 'तोहफे' के रूप में महारानी विक्टोरिया को दिया. फरवरी 1850 में कोहिनूर हीरे को एक तिजोरी में बंद करके HMS मेदेआ पर लादा गया और इंग्लैंड पहुंचाया गया।
महाराज रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह के शासन के दौरान पंजाब के कब्जे के बाद 1849 में महारानी विक्टोरिया को हीरा दिया गया था. कोहिनूर वर्तमान में ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में स्थापित है, जो टॉवर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में संग्रहीत है और जनता इसे देश सकती है.
यहां से ली गई ये जानकारी
उपर दी गई जानकारी ब्रिटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल और पत्रकार अनिता आनंद की किताब Koh-I-Noor : The Story of the World's Most Infamous Diamond से ली गई है. इस किताब में कोहिनूर के बारे में छोटी से छोटी जानकारी दी गई है.
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शहर | पेट्रोल | डीज़ल |
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New Delhi | 96.72 | 89.62 |
Kolkata | 106.03 | 92.76 |
Mumbai | 106.31 | 94.27 |
Chennai | 102.74 | 94.33 |
Currency | Price | Change |
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कोहिनूर का इतिहास
कोहिनूर को दुनिया के सबसे कीमती हीरे के रूप में जाना जाता है. इसका वजन 105.6 कैरेट है. यह हीरा भारत में 14वीं सदी में मिला था. यह आंध्र प्रदेश के गुंटूर में काकतीय राजवंश के शासनकाल में मिला था. वारंगल में एक हिंदू मंदिर में इसे देवता की एक आंख के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक मलिक काफूर ने इसे लूट लिया था.
लिखित में पहला रिकॉर्ड 1750 के आसपास मिलता है जब फारसी शासक नादिर शाह ने मुगलों की राजधानी दिल्ली पर धावा बोला था. नादिर शाह पूरी दिल्ली लूटकर अफगानिस्तान ले गया. कीमती रत्नों से जड़ा राजमुकुट भी जिसमें कोहिनूर भी शामिल था.
कोहिनूर के लिए खूब बहा है खून
डेलरिम्पल के अनुसार, उस राजमुकुट की कीमत ताजमहल से चार गुना ज्यादा थी. मुकुट में कई पीढ़ियों से जमा किए गए हीरे मुगलों ने जड़वाए थे, जब 1747 में नादिर शाह मारा गया तो कोहिनूर उसके पोते के पास आ गया. उसने 1751 में इसे अफगान साम्राज्य के संस्थापक, अहमद शाह दुर्रानी को दे दिया.
कोहिनूर हीरा मुगल साम्राज्य के कई शासकों को सौंपे जाने के बाद, सिख महाराजा रणजीत सिंह लाहौर में इसे अपने अधिकार में ले लिया और पंजाब आ गए. महाराजा रणजीत सिंह की मौत से एक दिन पहले, 26 जून 1839 को दरबारियों में कोहिनूर को लेकर जंग छिड़ गई. महाराजा बेहद कमजोर थे और इशारों में बात कर रहे थे. आखिर में यह तय हुआ कि खड़क सिंह को ही कोहिनूर दिया जाएगा.
कत्लेआम
खड़क सिंह ने अक्टूबर 1839 में गद्दी संभाली मगर धियान सिंह ने बगावत कर दी. कोहिनूर अब धियान सिंह के भाई और जम्मू के राजा गुलाब सिंह के पास आ चुका था. जनवरी 1841 में गुलाब सिंह ने कोहिनूर को तोहफे के रूप में महाराजा शेर सिंह को दे दिया. यानी कोहिनूर वापस सिख साम्राज्य के पास आ चुका था मगर अभी इस हीरे के लिए और खून बहना था.डेलरिम्पल और आनंद की किताब के अनुसार, 15 सितंबर 1843 को शेर सिंह और प्रधानमंत्री धियान सिंह की तख्तापलट में हत्या कर दी गई. अगले दिन धियान के बेटे, हीरा सिंह की अगुवाई में हत्या का बदला ले लिया गया. 24 साल की उम्र में हीरा सिंह प्रधानमंत्री बने और 5 साल के दलीप सिंह को सम्राट के पद पर बिठाया. कोहिनूर अब एक नन्हे सम्राट की बांह से बंधा था.
अंग्रेजों के हाथ कैसे लगा कोहिनूर हीरा?
उस दौरान भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का दायरा बढ़ा रहे लॉर्ड डलहौजी की नजर कोहिनूर पर टिकी थी. सिखों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ाई छिड़ी. सिख साम्राज्य पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और 1849 की लाहौर संधि हुई. इसी संधि के तहत, महाराजा दलीप सिंह ने कोहिनूर हीरा 'तोहफे' के रूप में महारानी विक्टोरिया को दिया. फरवरी 1850 में कोहिनूर हीरे को एक तिजोरी में बंद करके HMS मेदेआ पर लादा गया और इंग्लैंड पहुंचाया गया।
महाराज रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह के शासन के दौरान पंजाब के कब्जे के बाद 1849 में महारानी विक्टोरिया को हीरा दिया गया था. कोहिनूर वर्तमान में ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में स्थापित है, जो टॉवर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में संग्रहीत है और जनता इसे देश सकती है.
यहां से ली गई ये जानकारी
उपर दी गई जानकारी ब्रिटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल और पत्रकार अनिता आनंद की किताब Koh-I-Noor : The Story of the World's Most Infamous Diamond से ली गई है. इस किताब में कोहिनूर के बारे में छोटी से छोटी जानकारी दी गई है.