
Cancer Warning on Alcohol Bottles: बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल करके केंद्र, महाराष्ट्र सरकार और खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) से शराब की बोतलों पर कैंसर संबंधी चेतावनी लेबल लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है. यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता यश चिलवार ने दायर की है, जिसमें दावा किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शराब को 'क्लास 1 कार्सिनोजन' (कैंसरकारक पदार्थ) घोषित किए जाने के बावजूद इसकी जानकारी आम जनता तक नहीं पहुंचाई जा रही है.
याचिका में क्या है मुख्य मांग?
याचिका के अनुसार, शराब का सेवन कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों को न्यौता देता है, लेकिन भारत में अल्कोहल उत्पादों के पैकेजिंग और लेबलिंग पर इसके स्वास्थ्य जोखिमों को स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया जाता. याचिकाकर्ता का तर्क है कि नशीले पदार्थों की बिक्री करने वाली कंपनियों को उपभोक्ताओं को इसके दुष्प्रभावों के बारे में बताना कानूनी कर्तव्य है. साथ ही, यह उपभोक्ता के 'सूचना के अधिकार' का भी मुद्दा है.
Petition before Bombay High Court seeks cancer warning on alcohol bottles
Read story here: https://t.co/10OnjRctHf pic.twitter.com/7vxOYAcQwu
— Bar and Bench (@barandbench) January 30, 2025
WHO की रिपोर्ट और वैश्विक उदाहरण
याचिका में WHO की 2021 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि शराब के सेवन से मुंह, गले, लीवर, स्तन और आंतों का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ ही आयरलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का उदाहरण दिया गया है, जहां शराब की बोतलों पर 'कैंसरकारक' चेतावनी लेबल लगाना अनिवार्य है. याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत में भी ऐसी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए.
"शराब बेचने वाली कंपनियां छिपा रहीं जानकारी"
यश चिलवार ने याचिका में आरोप लगाया है कि शराब निर्माता कंपनियां जानबूझकर इसके नुकसान को लेकर जागरूकता फैलाने से बच रही हैं. उन्होंने कहा, "जब कोई उपभोक्ता शराब खरीदता है, तो उसे यह जानने का पूरा अधिकार है कि यह उसके स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है. मगर, वर्तमान लेबलिंग में केवल 'शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' जैसा अस्पष्ट संदेश दिया जाता है, जो पर्याप्त नहीं है."
अगला कदम क्या?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभी तक इस याचिका पर सुनवाई की तारीख तय नहीं की है. हालांकि, इस मामले ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और उपभोक्ता अधिकारों से जुड़ी बहस को फिर से गर्मा दिया है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह याचिका मंजूर होती है, तो भारत में शराब की खपत कम करने और कैंसर के मामलों में कमी लाने में मदद मिल सकती है.