लाल बहादुर शास्त्री जयंती विशेष: जय जवान जय किसान का नारा देने वाले महान शख्सियत से जुड़े रोचक तथ्य
देश को जय जवान जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री (Photo Credit- Twitter)

देश को जय जवान जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी की 2 अक्टूबर को जयंती है. शास्त्री जी देशभक्ति और ईमानदारी का बड़ा उदाहरण माने जाते हैं, उनका जीवन सादगी और महान कार्यों की मिसाल देता है. शास्त्री जी के जीवन का हर मोड़ उनके महान व्यक्तित्व का परिचय देता है. वे एक साफ-सुधरी छवि वाले लोकप्रिय नेता थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में देश को आगे ले जाने का हर संभव प्रयास किया और साथ ही देश को मुश्किल की घड़ी में संकट से भी उभारा.

शास्त्री जी के व्यक्तिव की सबसे खास बात यह है कि उनका सम्मान विपक्षी पार्टी के लोग भी उतना ही किया करते थे जितना कि उनकी खुद की पार्टी वाले. शास्त्री जी स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को निधन होने के बाद शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया.

शास्त्री जी 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे. 1966 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहां हुआ. लालबहादुर शास्त्री की मां का नाम रामदुलारी था.

जानिए उनके बारे में कुछ ऐसी बातें जिसे आप अभी तक नहीं जानते होंगे.

श्रीवास्तव छोड़ अपनाया था शास्त्री नाम

कायस्थ परिवार में जन्में लाल बहादुर शास्त्री के बचपन का नाम नन्हे था. इसके बाद काशी विद्यापीठ से उन्होंने 'शास्त्री' की उपाधि हासिल की और अपने उपनाम श्रीवास्तव को हटाकर शास्त्री कर लिया. जिसके बाद उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जाना जाने लगा.

गांधी जी के आह्वान पर छोड़ दी थी पढ़ाई

गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे. उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था. उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं. उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे.

9 साल जेल में रहे थे शास्त्री जी

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में देश के दूसरे प्रधानमंत्री 9 साल तक जेल में रहे. असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए लेकिन बालिग न होने की वजह से उनको छोड़ दिया गया. इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए. 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे है. इस तरह कुल 9 साल वह जेल में रहे.

दहेज में लिया था चरखा और खादी

1927 में उनकी शादी हो गई. उनकी पत्नी ललिता देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके उनके शहर, बनारस के पास ही था. उन्होंने अपनी शादी में दहेज के नाम पर एक चरखा और हाथ से बुनी खादी का कुछ मीटर कपड़ा लिया था. वह दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहते थे.

आम लाने पर किया अपनी ही पत्नी का विरोध

स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए दो आम छिपाकर ले आई थीं. इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया. शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है.

उनमें नैतिकता इस हद तक कूट कर भरी थी कि एक बार जेल से उनको बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन की पैरोल पर छोड़ा गया. लेकिन बीच में वह चल बसी तो शास्त्री जी वह अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस आ गए.

शास्त्री जी की देन है रेलवे का तीसरा दर्जा

आजाद भारत की पहली सरकार में शास्त्री जी ने विदेश मंत्री, गृहमंत्री और रेल मंत्री के पद संभाला. नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे. उनके रेल मंत्री रहते आम लोगों को रेलवे में थर्ड क्लास में सफर करने का मौका मिला था. इतना ही नहीं उन्होंने रेल यात्रा करने वाले यात्रियों के मन में असमानता न रहें इसलिए प्रथम श्रेणी और तीसरे दर्जे के फासले को खत्म किया था. वे खुद भी तीसरे दर्जे में सफर करते थे. उन्होंने ही तीसरे दर्जे के डिब्बों में पंखे लगावाए थे.

रेल दुर्घटना के चलते दिया था रेलमंत्री पद से इस्तीफा

शास्त्री जी अपने उच्च विचारों वाले व्यक्ति थे उन्हें कभी सत्ता का लालच नहीं था वह अपनी कमियों को भी खुद दूसरों के सामने लाकर कड़ा निर्णय लेते थे. उनके रेलमंत्री पद पर रहते हुए तमिलनाडु में एक रेल एक्सीडेंट हो गया. इस हादसे से शास्त्री जी को गहरा दुःख पहुंचा था. रेल हादसे के लिए अपनी मौलिक जिम्मेदारी मानते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

पाक को दी थी करारी शिकस्त

शास्त्री जी के शासनकाल में 1965 का भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया था. शास्त्री जी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. यह करारी हार पाकिस्तान के कल्पना से भी बाहर थी.

ऐसा था शास्त्री जी का घर खर्च

शास्त्री जी अपने शरीर पर खर्च होने वाले रुपये को भी देशवासियों से जोड़कर देखते थे. भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्हें लगता था कि जो खर्च उन पर हो रहा है उससे कितने देशवासियों को फायदा होगा. कहा जाता है कि शास्त्री जी ने अपने घर पर बाई को भी आने से मना कर दिया था. भारत-पाक युद्ध के समय शास्त्री जी ने घर में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने वाले टीचर को भी मना कर दिया. कई बार वे अपनी देश हित के लिए अपनी सैलरी भी नहीं लेते थे. यहां तक कि वह धोती फटने पर उसे सिलकर पहनते थे.

देश को कहा था सप्ताह में एक बार रखें उपवास

भारत पाक युद्ध के समय देश भुखमरी के दौर से गुजरने लगा था. यह देश के सामने एक बड़ा संकट था. अमेरिका से जब इस संबंध में मदद मांगी गई तो उसने सुअरों को खिलाया जाने वाला लाल गेंहूं भारत भेज दिया था. देश में अन्न का विकराल संकट था. इस समय लाल बहादुर शास्त्री जी देश के भंडारण में गेंहू व अन्य अनाजों की व्यवस्था कराने में जुटे थे, लेकिन इस दौरान उन्होंने लोगों से अपील की हर देशवासी सप्ताह में एक बार उपवास रखे. इससे एक दिन के उसके बचे खाने से उसके दूसरे भाई का पेट भरेगा. खुद शास्त्री जी ने भी सप्ताह में एक दिन सोमवार को खाना छोड़ दिया था. इसी दौरान उन्होंने 'जय जवान और जय किसान' का नारा दिया था.

मौत का अनसुलझा रहस्य

भारत पाकिस्तान के बीच 1965 की लड़ाई के बाद तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद में दोनों देशों के बीच 1966 में शांति समझौता हुआ था. इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया था. लेकिन शास्त्री जी की मौत का असली कारण बता पाना आसान नहीं है, क्योंकि उनके शव का न तो सोवियत संघ में पोस्टमार्टम किया गया था और न ही भारत में, लेकिन शक के पर्याप्त कारण थे.

इनमें एक था उनके शव का नीला हो जाना और शरीर पर कटने का दाग. इसलिए यह भी सवाल उठा कि क्या शास्त्री जी की मौत खाने में जहर देने से हुई थी? या समझौते को लेकर शास्त्री जी काफी मानसिक दबाव में थे और इसी कारण उन्हें दौरा पड़ा था.